स्कूली किताबों से टैगोर, गालिब और पाश को हटाने की मांग!

स्कूली किताबों से टैगोर, गालिब और पाश को हटाने की मांग!

नई दिल्ली। स्कूली किताबों से टैगोर, गालिब और पाशा के विचार को हाटाने की मांग कई गई है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् यानी एनसीईआरटी से ये मांग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जु़डे शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने की है। इस सिलसिले में संस्कृति उत्थान न्यास ने एनसीईआरटी को पांच पन्नों का एक सुझाव भेजा है। आपको बता दें कि एनसीईआरटी ने हाल ही में आम जनता से पाठ्य पुस्तकों में बदलाव से जु़डे सुझाव मांगे थे। न्यास ने एनसीईआरटी को पांच पन्ने में अपने सुझाव भेजे हैं। न्यास के प्रमुख दीनानाथ बत्रा संघ के शैक्षणिक शाखा विद्या भारती के प्रमुख भी रह चुके हैं। बताया जा रहा है कि न्यास के सचिव और संघ के वरिष्ठ प्रचारक रहे अतुल कोठारी ने कहा है कि इन किताबों में कई चीजें आधारहीन और पक्षपातपूर्ण हैं। यह एक कोशिश है एक ही समुदाय के लोगों को अपमानित करने की। इसमें तुष्टीकरण भी झलकता है। उन्होंने सवाल किया है कि आप कैसे बच्चों को दंगों के बारे में प़ढा सकते हैं और आप उन्हें कैसे प्रेरित करना चाहते हैं? शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, विवेकानंद और सुभाष चंद्र बोस जैसी महान हस्तियों के लिए कोई जगह नहीं है। कोठारी ने कहा कि हमें ये चीजें आपत्तिजनक लगीं और हमने अपना सुझाव एनसीईआरटी को भेजा है और हमें आशा है कि ये सुझाव लागू होंगे।साथ ही न्यास ने चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन की आत्मकथा के अंश, मुगल बादशाहों की रहमदिली का जिक्र, भारतीय जनता पार्टी को एक हिन्दू पार्टी बताना, नेशनल कॉन्फ्रेंस को ’’सेकुलर’’, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा सिख दंगे पर मांगी गई माफी और ’’गुजरात दंगे में करीब दो हजार लोग मारे गए थे’’ जैसे वाक्य हटाने के सुझाव भी एनसीईआरटी को दिए हैं।न्यास के पांच पन्ने के सुझाव में एनसीईआरटी की क्लास ११ की किताब में वर्ष १९८४ में कांग्रेस को मिले भारी बहुमत का जिक्र होने लेकिन वर्ष १९७७ के चुनाव का ब्यौरा न होने पर भी आपत्ति जताई गई है। क्लास १२वीं की किताब में जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस को सेकुलर संगठन बताने पर एतराज जताया गया है। न्यास चाहता है कि एनसीईआरटी की हिन्दी भाषा की पाठ्यपुस्तक में प़ढाया जाए कि मध्यकालीन कवि अमीर खुसरो ने हिन्दू और मुसलमान के बीच विभेद को ब़ढावा दिया था।

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