न बाजा और न दहेज, अफसर बिटिया ने संविधान को साक्षी मानकर की शादी

न बाजा और न दहेज, अफसर बिटिया ने संविधान को साक्षी मानकर की शादी

सुरेश अग्रवाल और निशा बांगरे

बैतूल/दक्षिण भारत डेस्क। समाज में महिला शिक्षा के लाख दावों के बावजूद यह हकीकत है कि आज भी काफी लोग बेटियों की पढ़ाई से ज्यादा उनकी शादी की फिक्र करते हैं। अक्सर मध्यम वर्ग देखादेखी के कारण शादियों को भव्य बनाने और दहेज देने के लिए भारी कर्ज लेता है। बाद में वह सूदखोरों को ब्याज की किस्तें चुकाते हुए परेशान रहता है। देश की एक बेटी ने जब समाज का यह दृश्य देखा तो उसने ठान लिया कि वह ऐसी किसी फिजूलखर्ची का हिस्सा नहीं बनेगी। उसने खूब मेहनत कर पढ़ाई की और प्रशासनिक अधिकारी बनी। अब उसने शादी भी की तो तमाम फिजूलखर्चियों से दूर रहकर।

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की उप-जिलाधिकारी निशा बांगरे ने भारतीय संविधान को साक्षी मानकर शादी की है। इसके बाद उन्हें और उनके जीवनसाथी सुरेश अग्रवाल को देशभर से बधाइयां मिल रही हैं। निशा और सुरेश परिवार सहित थाईलैंड घूमने गए थे। वहां बैंकॉक में दोनों हमसफर बन गए। यहां न तो कोई धूमधड़ाका था और न ही दहेज। निशा ने बताया कि उनके लिए देश का संविधान सर्वोच्च है। भारत का संविधान अनेकता में एकता का संदेश देता है। यह हर नागरिक को बराबरी का दर्जा देता है। वे इसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान मानती हैं।

शादी के लिए दोनों एक बौद्ध मंदिर में गए। वहां एक-दूसरे को वरमाला पहनाई गई। इस दौरान उन्होंने देश के संविधान के साथ तस्वीरें भी खिंचाईं। भारत में इस शादी का विधिवत पंजीकरण कराया जाएगा। निशा का ताल्लुक बालाघाट की तहसील किरनापुर के एक गांव चिखला से है। उनके परिजनों का जीवन बहुत कष्टपूर्ण रहा था। उनके पिता ने काफी मुश्किलों का सामना कर शिक्षा पाई और प्रधानाचार्य बने। पिता से प्रेरणा लेकर बेटी ने भी उच्च शिक्षा प्राप्त की।

उन्होंने इंजीनियरिंग के बाद गुड़गांव स्थित एक कंपनी में नौकरी की। इस दौरान वे प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी करती रहीं। पहले उनका चयन डीएसपी पद पर हुआ। बाद में उप-जिलाधिकारी पद पर चयन हो गया। उन्होंने पहले ही तय कर लिया था कि वे फिजूलखर्ची वाली परंपराओं को अपनी शादी में कोई स्थान नहीं देंगी। निशा ने देश की बेटियों को शिक्षा प्राप्त करने और समाज के लिए प्रेरणा बनने का संदेश दिया है।

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