'वंदे मातरम्' एक मंत्र है, एक ऊर्जा, प्रण और संकल्प है: जेपी नड्डा

'वंदे मातरम्' के 150 साल पूरे होने पर राज्यसभा में बोले नड्डा

'वंदे मातरम्' एक मंत्र है, एक ऊर्जा, प्रण और संकल्प है: जेपी नड्डा

Photo: @BJP4India X account

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। 'वंदे मातरम्' के 150 साल पूरे होने पर राज्यसभा में विशेष चर्चा के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने भाषण दिया। उन्होंने कहा कि पिछले दो दिनों में लगभग 80 से ज़्यादा हमारे सांसदों ने वंदे मातरम् पर अपने वक्तव्य दिए हैं। यह बताता है कि उक्त विषय कितना समसामयिक है।

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जेपी नड्डा ने कहा कि हम वंदे मातरम् पर चर्चा करते हुए आज की युवा पीढ़ी, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई नहीं देखी, जिन्होंने आज़ादी के बारे में सिर्फ इतिहास के पन्नों में पढ़ा है, उन्हें भी यह जानकारी इस चर्चा के माध्यम से गहराई से मिलने वाली है। जो युवा पीढ़ी को प्रेरित करेगी।

जेपी नड्डा ने कहा कि वंदे मातरम्, इतिहास की बहुत-सी घटनाओं का साक्षी है। जो घटनाएं आज़ादी के समय घटित हुईं, उनमें वंदे मातरम् के मंत्र ने ऊर्जा का काम किया है। वंदे मातरम् एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक प्रण है, एक संकल्प है। वंदे मातरम् मां भारती की साधना है, सेवा है और आराधना है।

जेपी नड्डा ने कहा कि बंकिम बाबू ने वंदे मातरम् तब लिखा, जब अंग्रेजों ने यह रिवायत बना ली थी कि भारत की संस्कृति को तोड़ा जाए और उसे नीचा दिखाया जाए, ताकि भारतीयों की ‘स्व’ की भावना कुंठित की जा सके।

जेपी नड्डा ने कहा कि ऐसे समय में बंकिम बाबू ने कहा कि भारत माता ज्ञान और समृद्धि की देवी है। उन्होंने मां लक्ष्मी, मां दुर्गा, मां सरस्वती यानी शक्ति, धन-धान्य और विद्या दायिनी का स्वरूप बताया। बंकिम बाबू ने देश के इस भाव को जाग्रत किया।

जेपी नड्डा ने कहा कि कल जयराम रमेश ने अपने वक्तव्य का समापन करते समय कहा कि इस चर्चा का एक ही मकसद है— जवाहरलाल नेहरू को बदनाम करना। लेकिन मैं स्पष्ट कहना चाहता हूं कि हमारा उद्देश्य भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बदनाम करना नहीं है, बल्कि हमारा उद्देश्य भारत के इतिहास को रिकॉर्ड पर ‘स्ट्रेट’ रखने का जरूर है।

जेपी नड्डा ने कहा कि मैं जयराम रमेश को कहना चाहूंगा कि जब कोई घटना घटित होती है, तब जिम्मेदार सरदार ही होता है, और उस समय कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस पार्टी की सरकार के सरदार जवाहरलाल नेहरू ही थे। जो आपको सूट करता है, तब आप नेहरू काल की चर्चा करते हैं, और जो आपको सूट नहीं करता है तब आप सुभाष चंद्र बोस को ले आते हैं, रवींद्रनाथ टैगोर को ले आते हैं। श्रेय लेना है, तो तकलीफ़ में जब देश आया, उसकी जिम्मेदारी भी लेनी होगी।

जेपी नड्डा ने कहा कि मैं राष्ट्रगान का पूरे मन से सम्मान करता हूं और उसके सम्मान में अपना पूरा जीवन समर्पित करता हूं। लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि संविधान सभा में राष्ट्रगान पर कितनी देर चर्चा हुई? राष्ट्रीय ध्वज पर तो आपने कमेटी बिठाई, कमेटी की रिपोर्ट आई और उस पर विस्तृत चर्चा हुई, लेकिन जब राष्ट्रगान की बारी आई, तब आपने क्या किया?

जेपी नड्डा ने कहा कि संविधान सभा में भारत के राष्ट्रगान के चयन के दौरान जो हुआ, और वंदे मातरम् के प्रति जो उदासीनता और उपेक्षा का भाव रहा, उसके लिए पूरी तरह जवाहरलाल नेहरू ही जिम्मेदार थे।

जेपी नड्डा ने कहा कि संविधान की तीन प्रतियों पर हस्ताक्षर करने के लिए 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई। उसमें बिना किसी चर्चा और बिना किसी नोटिस के एक वक्तव्य पढ़ दिया गया, जिसमें भारत के राष्ट्रगान का निर्णय सुना दिया गया। ‘जन गण मन’ को भारत का राष्ट्रगान घोषित कर दिया गया और साथ ही यह भी कहा गया कि ‘वंदे मातरम्’ का सम्मान भी ‘जन गण मन’ के समान ही किया जाएगा। यह निर्णय किस प्रकार संवैधानिक प्रक्रिया के तहत और लोकतांत्रिक निर्णय कहा जा सकता है, यह संविधान-निर्माताओं पर छोड़ा जाता है।

जेपी नड्डा ने कहा कि 21 जून, 1948 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखी गई चिट्ठी में नेहरूजी ने साफ कर दिया था कि वे वंदे मातरम् को नेशनल एंथम के योग्य नहीं मानते। 15 अक्टूबर, 1937 को लखनऊ सेशन में मोहम्मद अली जिन्ना ने वंदे मातरम् के खिलाफ फतवा जारी किया था। इसका विरोध करने के बजाय नेहरूजी ने वंदे मातरम् पर ‘पड़ताल’ शुरू कर दी थी।

जेपी नड्डा ने कहा कि 20 अक्टूबर को नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस को चिट्ठी लिखी थी कि ‘वंदे मातरम्’ की आनंदमठ वाली पृष्ठभूमि मुसलमानों को भड़का सकती है। कोलकाता में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कांग्रेस ने वंदे मातरम् की समीक्षा की थी। वंदे मातरम् को न वह सम्मान दिया गया और न ही वह स्थान।

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