परपदार्थों में रही आसक्ति ही दुःख लाती है: आचार्य विमलसागरसूरी

किसी को प्राप्त करने से ज्यादा उन्हें खोने का दुःख होता है

परपदार्थों में रही आसक्ति ही दुःख लाती है: आचार्य विमलसागरसूरी

'अनासक्त भाव से कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवनयापन करना ही सर्वश्रेष्ठ निरापद जीवनशैली है'

गदग/दक्षिण भारत। शहर के राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में सोवार को जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि अपनी आत्मा के अलावा जीवन में कुछ भी शोशत नहीं है। हर संयोग का किसी दिन अवश्यमेव वियोग होगा। जो कुछ भी हमें बाहर से प्राप्त होता है, वह एक न एक दिन नष्ट हो जाता है अथवा हमसे छीन लिया जाता है। 

Dakshin Bharat at Google News
उसे अपना समझना गहरी भूल है, इसलिए व्यक्ति, वस्तु, पद, सत्ता, शरीर, धन, वैभव आदि किसी को भी हमेशा के लिए अपना मानना दुःखों को निमंत्रण देने जैसा है। परपदार्थों के प्रति रही हुई हमारी आसक्ति ही हमें सर्वाधिक दुःखी करती है। जो इस सत्य को समझकर आत्मतत्व में निमग्न रहता है, वह कभी दुःखी या पीड़ित नहीं होता। 

भगवान महावीर स्वामी का उपदेश है कि अनासक्त भाव से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवनयापन करना ही सर्वश्रेष्ठ निरापद जीवनशैली है। 

जैनाचार्य ने कहा कि इच्छा, तृष्णा, आशा, अपेक्षा, अभिलाषा, कामना, वासना, सब दुःख के मार्ग हैं। जिन्हें इस सत्य पर विश्वास न हो, वे जीवन में इसके प्रयोग कर प्रतीति कर सकते हैं। जब भी मनुष्य की आशाएं-अपेक्षाएं धूमिल होती हैं और चाहकर भी इच्छाएं पूरी नहीं होतीं तो मन विषाद से भर जाता है। दूसरी एक वास्तविकता भी समझने की आवश्यकता है कि ज्यों ज्यों हम किसी व्यक्ति या वस्तु को चाहते हैं, त्यों त्यों वे हमसे दूर होते जाते हैं।

किसी को प्राप्त करने से ज्यादा उन्हें खोने का दुःख होता है लेकिन जब हम अनासक्त भाव से सहज जीवन जीते हैं तो बिना चाहे भी बहुत कुछ प्राप्त होता है। इसलिए संसार में जीने की एक अनूठी मनःस्थिति बनाई जानी चाहिए।

संघ के सचिव हरीश शाह ने बताया कि सोवार को प्रवचन में भाजपा के जिला अध्यक्ष कोट्टपा राजू, पार्षद अनिल अभिगेरी, राजू यलवती तथा पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष उषा दासर आदि ने जैनाचार्य के दर्शन किए।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download