मिलना बड़ी बात नहीं, मिलकर संभालना बड़ी बात है: डॉ. समकित मुनि

‘उवसग्गहर स्तोत्र’ आराधना का 11वां दिवस मनाया गया

मिलना बड़ी बात नहीं, मिलकर संभालना बड़ी बात है: डॉ. समकित मुनि

गलत कार्य करने से सौभाग्य धीरे-धीरे दुर्भाग्य में बदल जाता है

चेन्नई/दक्षिण भारत। यहां पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल ट्रस्ट में विराजमान डॉ. समकित मुनिजी म.सा के सान्निध्य में रविवार को ‘उवसग्गहर स्तोत्र’ आराधना का 11वां दिवस मनाया गया। आगे प्रवचन में मुनिश्री ने कहा कि अच्छे खानदान में जन्म लेकर, अच्छे गुरु को पाकर, अच्छी वाणी और अच्छे संस्कारों को पाकर भी यदि जीवन में दुर्गति हो रही है तो इसका कारण बाहरी परिस्थितियाँ नहीं बल्कि हमारी अपनी करणी है। 

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उन्होंने कहा कि यह आवश्यक नहीं कि केवल हिंसक या अधर्मी कुल में जन्म लेने वाले की ही दुर्गति हो, बल्कि अच्छे घराने, अच्छे गुरु, अच्छे संस्कार और धर्म को पाकर भी यदि व्यक्ति गलत कार्य करता है तो वह भी पतन की ओर बढ़ता है। 

मुनिश्री ने समझाया, हम अक्सर कहते हैं कि धर्म की कृपा हम पर क्यों नहीं बरसती, गुरु की कृपा क्यों नहीं होती, भगवान की कृपा क्यों नहीं होती? इसका कारण यह है कि जिन कार्यों का लाइसेंस हमें हमारे धर्म ने, हमारे संस्कारों ने और हमारे कर्मों ने नहीं दिया, उन्हीं कार्यों को हम करते हैं। जैसे बिना लाइसेंस की दुकान खोलने वाला व्यापारी हमेशा डर में रहता है, वैसे ही धर्म और गुरु का सौभाग्य पाकर भी यदि हम गलत कार्य करें तो वह सौभाग्य धीरे-धीरे दुर्भाग्य में बदल जाता है। 

मुनिश्री ने कहा कि जब अच्छे कर्मों के कारण हमें धर्म, गुरु और भगवान का सान्निध्य प्राप्त होता है तो न्हमें गलत कामों से बचना चाहिए। जिस दिन हमें अपने धर्म और गुरु पर गर्व होगा, उसी दिन हम गलत रास्तों पर जाने से बच जाएंगे। 

उन्होंने बताया कि विदेशी लोग भारत में अधिक रहते हैं या भारतवासी विदेश में? इसका उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि किसके भीतर भारत माता के प्रति गर्व है। जिसे अपने देश पर गर्व होगा वह कभी इसे छोड़कर नहीं जाएगा। भारत जब तक ‘सोने की चिड़िया’ कहलाता था, तब तक लोगों की सोच यही थी कि सूखी रोटी भी खाऊँगा लेकिन भारत में रहूँगा। यही सोच भारत की समृद्धि का कारण थी। इसी प्रकार जिसे अपने धर्म और अपने संस्कारों पर गर्व है, वह कभी उन्हें त्यागकर बाहर नहीं जाएगा।

मुनिश्री ने आगे कहा कि हमारे 24 तीर्थंकरों ने भारत में ही जन्म लिया, दीक्षा ली और सिद्धि प्राप्त की क्योंकि उन्हें अपनी मातृभूमि, अपनी माटी और अपने धर्म पर गर्व था। आज यदि हम इतने अच्छे गुरु, भगवान और संस्कार पाकर भी गलत कर रहे हैं तो यह समझ लेना चाहिए कि हम अपने धर्म के साथ छल कर रहे हैं। धर्म के साथ गद्दारी करना अपने ही सौभाग्य के द्वार बंद करना है। 

उन्होंने चेताया-जहाँ लोभ होगा वहाँ राग होगा और जहाँ राग होगा वहाँ द्वेष जन्म लेगा। द्वेष को समाप्त करना है तो ममत्व वोसीरामी’ का अभ्यास करना होगा। यह एक गहन साधना है। न्यायालयों में चल रहे अनेक मुकदमे केवल राग-द्वेष के कारण चलते हैं। यदि मनुष्य ममत्व ‘‘वोसीरामी’ मंत्र की आराधना करे तो ऐसे मुकदमे समाप्त हो सकते हैं। 

प्रवचन के अंत में मुनिजी ने कहा कि मिलना बड़ी बात नहीं है, बल्कि मिलने के बाद उसे संभालकर रखना ही सबसे बड़ी बात है। नवरात्रि पर 22 सितम्बर से 1 अक्टूबर तक नौ दिनों तक विशेष नवरात्रि जाप का आयोजन होगा, जो प्रतिदिन रात्रि 8:15 से 9:15 बजे तक संपन्न होगा।

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