छत्तीसगढ़ में आयोजित हुआ “चित्रकोट कन्नड़-छत्तीसगढ़ी संगम” कार्यक्रम
दिखी छत्तीसगढ़ व कर्नाटक की संस्कृति की झलक
इंद्रावती नदी में कावेरी, महानदी और तुंगभद्रा नदी का जल प्रवाहित
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काशी तमिल संगम से प्रेरित होकर और भारत की भाषाई समरसता और भावात्मक एकता को और अधिक सुदृढ़ करने की दिशा में छत्तीसगढ़ बस्तर जिले के चित्रकोट में 9 अगस्त को जलप्रपात के पास कन्नड़-छत्तीसगढ़ी संगम कार्यक्रम का प्रथम चरण संपन्न हुआ । अगले दिन 10 अगस्त को जगदलपुर में दिनभर विभिन्न सत्रों में मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह जानकारी आयोजन समिति के संयोजक व वरिष्ठ पत्रकार आकाश वर्मा ने बेंगलूरु के प्रेस क्लब में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि इस आयोजन में समिति के सदस्यों व उपस्थित अतिथियों ने इंद्रावती नदी के तट पर आपसी संगम के द्योतक के रूप में कावेरी, महानदी और तुंगभद्रा नदी के पवित्र जल को इन्द्रावती नदी में मिलाया।
वर्मा ने बताया कि इस जल संगम कार्यक्रम के बाद एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन जगदलपुर के संभागीय मुख्यालय के एक होटल में किया गया। इस दो दिवसीय सांस्कृतिक और बौद्धिक सम्मेलन में कर्नाटक और छत्तीसगढ़ की अनेक प्रतिष्ठित हस्तियों, कलाकारों, राजघरानों के वंशजों और नागरिकों को एकजुट किया गया। इस मौके पर विजयनगर राजघराने के कृष्ण देवराय, सिरसी की यक्षगान कलाकार निर्मला हेगड़े, विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) सुदर्शन, टेकविद् अधिवक्ता उदय रघुनाथ बिरजे, कर्नाटक व तमिलनाडु से प्रकाशित हिंदी दैनिक “दक्षिण भारत राष्ट्रमत” के समूह सम्पादक श्रीकांत पाराशर, सुप्रसिद्ध गायक व कलाकार पद्मिनी ओक, वरिष्ठ सम्पादक एनडीटीवी के सुमित अवस्थी, जयदीप कार्णिक, संस्कार भारती संस्था के वरिष्ठ प्रचारक रविकुमार अय्यर, रायपुर के निवासी, दिल्ली प्रवासी टीवी कार्यक्रमों में प्रवक्ता मोहम्मद फैज खान, नासिक से सांस्कृतिक दूत रवि बाडेकर आदि शामिल हुए। जगदलपुर के मेयर संजय पांडे ने हवाई अड्डे पर सभी अतिथियों का स्वागत किया।सभी अतिथियों ने बस्तर स्थित दंतेश्वरी माता मंदिर के दर्शन किए तथा बस्तर के राजा कमल कुमार भंज से सौहार्द भेंट की।भारत के नियाग्रा फॉल के नाम से प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात का भम्रण किया। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में अनेक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी हुई। आकाश वर्मा ने पत्रकारों से कहा कि देश भर में गत कई दशकों से बस्तर की पहचान केवल नक्सली और नकारात्मक गतिविधियों के लिए होती रही है जिसको बदलने तथा दो राज्यों के बीच परस्पर लौह प्रगाढ़ हो इस के प्रयास में यह आयोजन किया गया जो कि बहुत ही सफल रहा। वर्मा ने बताया कि इस प्रकार के कार्यक्रम उसी प्रयास की ओर उठाया हुआ एक कदम है जिससे बस्तर को एक अलग पहचान मिलेगी। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम की संकल्पना स्वयं उनकी व जम्मू-कश्मीर की शिक्षिका व उनकी धर्मपत्नी सीमा महरोत्रा वर्मा की है । प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कुछ अतिथियों ने अपने अनुभव साझा किए और कहा कि ऐसे आयोजन विभिन्न प्रदेशों में होने चाहिए।


