समता और निष्काम भावना है तपस्या का प्राणतत्त्व: आचार्य विमलसागरसूरी

तीन सौ तपस्वियों के हुए सामूहिक पारणे

समता और निष्काम भावना है तपस्या का प्राणतत्त्व: आचार्य विमलसागरसूरी

बाल, किशोर व युवावर्ग की तपस्या देखकर लोग भावविभोर हो उठे

गदग/दक्षिण भारत। स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में आठ उपवास से लगाकर तीस उपवास तक की तीन सौ साधकों की तपस्या की मंगलमय पूर्णाहुति हुई। स्थानीय पार्श्व बुद्धि वीर वाटिका के विशाल सभागृह में लालीदेवी रूपचंद बाफना परिवार ने तपस्वियों को मूंग के पानी से पारणा करवाया। 

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आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी और गणि पद्मविमलसागरजी के सान्निध्य में आयोजित इस दो दिवसीय तपोत्सव में देशभर से करीब चार हजार श्रद्धालु सम्मिलित हुए। गुरुवंदना और विशिष्ट मंगलपाठ से समारोह का शुभारंभ हुआ। सबसे पहले साधकों ने चक्रेेशरी, अंबिका, महाकाली, पद्मावती, सरस्वती और कुलदेवी आदि दैविक शक्तियों की पूजा-अर्चना की। 

श्रमण परिवार ने सामूहिक मंत्रोच्चार कर विधि-विधान संपन्न करवाए। संगीत की मधुर सुरवाली के बीच भागवंती गांधीमेहता परिवार ने साधकों को भालतिलक किया। इंद्रकुमार बाफना परिवार ने सभी को माल्यार्पण कर और नाजुबाई श्रीश्रीमाल परिवार ने श्रीफल अर्पण कर तपस्वियों का सम्मान किया। सुआबाई भंसाली परिवार ने शगुन सामग्री अर्पित की। 

गदग में इतना विशाल तपोत्सव पहली बार आयोजित हुआ। बाल, किशोर व युवावर्ग की तपस्या देखकर लोग भावविभोर हो उठे। 

इस अवसर पर आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि समताभावना तप साधना का प्राणतत्व है। क्रोध या दुर्भावनापूर्वक किया गया तप निष्फल जाता है। प्राचीन आचार्य मुनिसुन्दरसूरीश्वर ने आध्यत्म कल्पद्रु नामक ग्रंथ में लिखा है कि जो निष्काम भाव से तपस्या करते हैं, वे सचमुच पूजनीय हैं। ऐसे तपस्वी का सान्निध्य और उसके वचन अत्यंत प्रभावशाली होते हैं। वे चमत्कारों का सृजन कर सकते हैं। 

भगवान महावीरस्वामी का उपदेश हैं कि भोजन के अभाव में भूखे मरना तपस्या नहीं है। विविध भोजन सामग्री उपलब्ध होने पर भी जो संकल्प पूर्वक निराहार उपवास करते हैं, वे तपस्वी हैं। समय समय पर देश-विदेश के अनेक वैज्ञानिकों ने लंबी तपस्या करने वाले साधकों के परीक्षण किये हैं। आज इक्कीसवीं शताब्दी में भी जैन परंपरा की लंबी तपस्याएं वैज्ञानिकों के लिये आश्चर्य और शोधखोल का विषय हैं।

जैनाचार्य ने आगे कहा कि तपस्या के निमित्त होते अनावश्यक व्यय और आडंबरों को रोकना चाहिए। जो उचित व व्यवहारिक हों, वैसा ही उत्सव करना चाहिए। तपस्या के निमित्त एक दूसरे को देखकर बढ़-चढ़कर धनखर्च करना साधना को कलंकित करता है। भगवान महावीरस्वामी की परंपरा अनावश्यक आडंबरों को स्वीकृति नहीं देती। 

संयमित जीवन तपस्या का सार है। तपस्वी की परीक्षा उपवास में नहीं, तपस्या के बाद की जीवनचर्या में है। जो साधक खानपान, रहन-सहन, पारिधन, मनोविचार और भोग-उपभोग की मर्यादाएं निर्धारित नहीं करते, वे तपस्या को सार्थक नहीं कर सकते। इसीलिए तप करना सरल नहीं, कठिन साधना है। संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने तप अनुमोदना की।

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