शब्दों की खतरनाक हेराफेरी
'मिलिटेंट' और 'टेररिस्ट' में बहुत अंतर होता है

शब्दों की यह हेराफेरी एक धीमे जहर की तरह है
पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देशवासियों की आंखें नम कर दीं, वहीं कुछ पश्चिमी मीडिया समूह अपनी ख़बरों में आपत्तिजनक शब्दावली का इस्तेमाल कर रहे हैं। खुद को निष्पक्ष और आधुनिक दिखाने की कोशिश में ये समूह भारतवासियों का उपहास उड़ा रहे हैं। न्यूयॉर्क के एक अख़बार ने उक्त हमले की ख़बर अपनी वेबसाइट पर जिन शब्दों में प्रकाशित की, उससे उसकी खूब किरकिरी हो रही है। उसने पहलगाम में हिंदू पर्यटकों की हत्या करने वालों को 'मिलिटेंट्स' लिखा है! क्या यह 'टेररिस्ट्स' के गुनाहों को कम करके दिखाने की साजिश नहीं है? भारत में भी कई लोग 'मिलिटेंट' और 'टेररिस्ट' में अंतर नहीं कर पाते। ऑक्सफ़ोर्ड शब्दकोश के अनुसार, 'मिलिटेंट' का अर्थ होता है- अभीष्ट की प्राप्ति के लिए बलप्रयोग या तगड़ा दबाव डालने के लिए तत्पर, जुझारू, संघर्ष का इच्छुक, लड़ाका। 'टेररिस्ट' का अर्थ होता है- आतंकवादी। आम लोगों का कत्ल कर दहशत पैदा करने वालों को 'मिलिटेंट्स' कहना वैसा ही है, जैसे पूर्व में कुछ बुद्धिजीवी उन्हें 'भटके हुए नौजवान, नादान युवक' आदि कहा करते थे। अमेरिका के कई अख़बार और समाचार चैनल पिछली सदी तक आतंकवाद के भयावह चेहरे से परिचित नहीं थे। जब भारत सरकार पाकिस्तान की आतंकवादी हरकतों का जिक्र करती तो वे उन घटनाओं को बहुत हल्के में लेते थे। उन्हें 9/11 के बाद कुछ एहसास हुआ कि ऐसा भी होता है। हालांकि पश्चिमी मीडिया में आतंकवादियों को सम्मान देने का रिवाज जारी है। जिस दिन पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, ब्रिटेन की एक चर्चित समाचार वेबसाइट (जो हिंदी, उर्दू समेत कई भाषाओं में ख़बरें देती है) ने आतंकवादियों को उर्दू में 'अस्करियत पसंद' और हिंदी में 'चरमपंथी' लिखा।
शब्दों की यह हेराफेरी एक धीमे जहर की तरह है, जिसके प्रभाव में आकर लोग झूठ को सच मान लेते हैं। इसके पीछे बड़ी रणनीति होती है। भारत में कई ख़बरों, कहानियों और किताबों में विदेशी आक्रांताओं को इस तरह पेश किया गया है कि उनसे बड़ा बहादुर, न्यायप्रिय और दूरदर्शी व्यक्ति कोई दूसरा नहीं हुआ। भारतवासियों को बार-बार इस बात का झूठा एहसास कराया गया है कि विदेशी आक्रांताओं ने यहां आकर संस्कृति को समृद्ध किया, सुंदर इमारतें बनवाईं। कई लोग इस दुष्प्रचार के ऐसे शिकार हो चुके हैं कि अजीब दलीलें देते हैं, जैसे- 'अगर यहां अंग्रेज नहीं आते तो हम बस, कार, ट्रेन आदि के बजाय बैलगाड़ी से सफर कर रहे होते!' क्या जिन देशों में अंग्रेजों ने शासन नहीं किया, वहां परिवहन के आधुनिक साधन नहीं हैं? जम्मू-कश्मीर के कई लोगों के दिलो-दिमाग में अलगाववादियों ने भारतविरोध की ऐसी भावना भर दी कि वे जाने-अनजाने में उन शब्दों का इस्तेमाल करने लगे, जिनका 'मतलब' बहुत ध्यान देने पर ही समझ में आता है। पूर्व में जब लोग कश्मीर गए और उनसे पूछा गया कि आप कहां से आए हैं तो (अपने शहर या गांव का नाम बताने पर) उन्हें यह सुनने को मिला- 'अच्छा, आप भारत से आए हैं!' पहलगाम हमले के बाद एक कश्मीरी बुजुर्ग सोशल मीडिया पर इन शब्दों के साथ दु:ख जताते दिखे- 'हम पूरे इलाके के लोग ... इस घिनौनी साजिश की निंदा करते हैं ... हिंदुस्तान से आए हुए जिन नौजवानों के साथ यह वाकया हुआ ...।' हो सकता है कि उन बुजुर्ग ने भी अनजाने में कहा हो, लेकिन ऐसे शब्द दुष्प्रचार की जड़ें गहरी करते हैं। इनमें तुरंत सुधार करना जरूरी है। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। अगर कोई भारतीय नागरिक वहां जाता है तो वह अपने देश में ही होता है। देशविरोधी शब्दों के जाल में न फंसें। चाहे, कहने वाला कोई व्यक्ति हो या मीडिया समूह। देशप्रेम की डोर हर स्थिति में मजबूत रहनी चाहिए।