समाज का विकास उसकी संख्या से नहीं, उसकी सही नीति-रीतियों से होता है: आचार्य विमलसागरसूरी
वीवीपुरम में जैनाचार्यों का हुआ आध्यात्मिक मिलन

भेदभाव समाज के अस्वस्थ हाेने का संकेत है
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के वीवीपुरम स्थित संभवनाथ जैन मंदिर के प्रांगण में गुरुवार काे जैन समाज के विविध वर्गाें की सभा काे संबाेधित करते हुए आचार्य विमलसागर सूरीश्वरजी ने कहा कि किसी भी समाज का विकास उसकी संख्या, बुद्धिमत्ता अथवा समृद्धि से नहीं, उसकी सही नीति-रीति से हाेता है। गलत नीतियां समाज के भविष्य काे अंधकारमय बना देती हैं। समाज में छाेटे-बड़े, सामान्य-विशेष, सभी वर्गाें के लाेग हाेते हैं। सबकी बुद्धि, क्षमता, संपत्ति और सामर्थ्य एक जैसे नहीं हाेते। ऐसे में सबके हिताें का चिंतन करके ही समाज काे अखंडित, स्वच्छ, प्रगतिशील और मज़बूत रखा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि ऊंच-नीच का भेदभाव और धन का बाेलबाला समाज के अस्वस्थ हाेने के संकेत हैं। समाज की अच्छी और बहुहितकारी नीति-रीति ही उसकी परिपक्वता का निर्धारण करती है, इसलिए यह आवश्यक है कि समाज प्रभुत्वशाली श्रीमंताें की मनमानी से नहीं, ज्ञानियाें और गुणवान लाेगाें के आधार पर गति करे।उन्होंने कहा कि समाज राजनीतिक उठापटक का अखाड़ा न बने। समाज के दीर्घकालीन समुचित विकास के लिए लाेगाें का जागरूक और सामाजिक संगठनाें का मजबूत हाेना भी अत्यंत जरूरी है। जिसका सांगठनिक ढांचा कमजाेर हाेता है और जिस समाज का प्रबुद्ध वर्ग उदासीन हाेता है, वह समाज आपसी विवादाें और मनमानियाें में तबाह हाे जाता है।
जैनाचार्य विमलसागर सूरीश्वरजी ने कहा कि दान की घाेषणा कर धनराशि तत्काल जमा करवाई जानी चाहिए। दान देने के बाद भी धनराशि पर अपना अधिकार रखना अथवा उसे जमा न करवाना निकृष्ट पाप प्रवृत्ति है। धर्मस्थानाें के संचालन भी याेग्य लाेगाें के हाथाें में हाेने चाहिए। आज संस्थाओं में अयाेग्य और नासमझ लाेगाें की संख्या बढ़ती जा रही है।
सामाजिक-धार्मिक स्थानाें पर धर्म के नीति-नियमाें के विरुद्ध आचरण हाेने लगे हैं। ज्ञानी साधु-संताें के मार्गदर्शन में ही धर्म और समाज की व्यवस्थाओं का संचालन किया जा सकता है। जाे लाेग सामाजिक धार्मिक स्थानाें पर रात्रिभाेजन, अभक्ष्य-जमीकंद आदि का सेवन, शराब, जुआ, किराए के डांसर तथा अन्य अनुचित प्रवृत्तियाें काे समर्थन देते हैं, वे अपने समाज व धर्म काे बिलकुल सुरक्षित नहीं रख पाएंगे। किसी भी कीमत पर समाज की शादियाें में भी शराब, धूम्रपान, हुक्का, जुआ आदि काे मान्यता नहीं मिलनी चाहिए।
ऐसे कुकृत्याें के हिमायती लाेगाें काे हाशिये पर धकेल कर ही हम समाज काे स्वच्छ और सुरक्षित रख सकते हैं। जाे लाेग चार और पांच सितारा हाेटलाें में अपने कार्यक्रम आयाेजित करना चाहते हैं, वे समाज की गाैरवशाली उज्ज्वल परंपराओं काे धूमिल कर उसकी गरिमा काे समाप्त कर रहे हैं। आज नहीं ताे कल, वैभव प्रदर्शन की यह मानसिकता उन्हें और समाज का भारी नुकसान पहुंचाएंगी।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने आगे कहा कि अंतरजातीय विवाहाें काे मिलती सामाजिक स्वीकृति भी अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। एक तरफ जहां समाज में कन्याओं की संख्या कम हैं और पर्याप्त उम्र हाेने के बाद भी युवकाें काे कन्याएं नहीं मिल रही हैं, ऐसी विकट स्थिति में अंतरजातीय विवाहाें काे मिल रही स्वीकृति भारी सामाजिक असंतुलन पैदा करेगी। इससे समाज में पाखंड बढ़ेगा और समाज रुग्ण बन जाएगा। वर्तमान में यह समस्या समाज की बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा कि कन्याओं के लिए गांवाें और कस्बाें से लाेग निरंतर पलायन कर रहे हैं। दक्षिण भारत में पिछले दस वर्षाें में बीस हजार से अधिक परिवार महानगराें के लिए विदा हुए हैं। इससे गांवाें और कस्बाें की धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं तथा उनकी संपत्तियाें पर विपत्तियाें के बादल मंडराने लगे हैं। निकट भविष्य में समाज संस्थाओं और उसकी संपत्तियाें की बदहाली देखेगा।
इससे पूर्व प्रातः बीबीयूएल जैन विद्यालय से आचार्य अभयशेखरसूरीश्वरजी, आचार्य विमलसागर सूरीश्वरजी, गणि पद्मविमलसागरजी आदि साधु-साध्वीगण का गाजेबाजे के साथ स्वागत किया गया। जगह-जगह श्रद्धालुओं ने स्वस्तिक रचना कर संताें काे बधाया। महिलाओं ने मंगल कलशाें से स्वागत किया। फिर संभवनाथ जिनालय में चतुर्विध संघ ने सामूहिक चैत्यवंदना की। आचार्य अभयशेखरसूरीश्वरजी ने भी धर्मसभा काे संबाेधित किया।