नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के ये कैसे घोषणा-पत्र!
ये घोषणा-पत्र बुनियादी तौर पर भारत-विरोधी लगते हैं
फोटो: संबंधित पार्टियों के फेसबुक पेजों से
.. डॉ. आशीष वशिष्ठ ..
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जम्मू-कश्मीर चुनाव के मद्देनजर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने अपने घोषणा-पत्र जारी किए हैं, जो बुनियादी तौर पर भारत-विरोधी लगते हैं| मोदी सरकार ने ऐतिहासिक पहल की और ५ अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 और 35-ए को निरस्त करने का बिल संसद से पारित करा दिया| अब 2024 में विधानसभा चुनावों की घोषणा की गई है, तो पुराने मुद्दों को नए संदर्भों में उठाया जा रहा है|
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने अनुच्छेद 370, 35-ए की बहाली का आश्वासन दिया है| जम्मू-कश्मीर के ‘अलग झंडे’ की बात कही गई है| ऐसा है, तो आने वाली विधानसभा में ‘अलग संविधान’ का प्रस्ताव भी पारित किया जा सकता है| इसके लिए दलीलें दी जाती रही हैं कि विलय के समझौता-पत्र में उल्लेख था कि कश्मीर का अपना ‘अलग झंडा’ और ‘अलग संविधान’ होगा| ये दलीलें कुतर्क हैं, क्योंकि विलय-पत्र में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है| सियासतदानों को जरा पढ़ लेना चाहिए| बहरहाल पत्थरबाजों की दोबारा सरकारी नौकरी में बहाली होगी और जेल से सियासी कैदियों की रिहाई की जाएगी| ऐसे कैदियों को माफ भी किया जा सकता है| पाकिस्तान से सटी ‘नियंत्रण रेखा’ पर कारोबार की नई शुरुआत के साथ-साथ पाकिस्तान के साथ बातचीत और जनसंपर्क भी शुरू किया जाएगा|
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी सोच के स्तर पर पाक परस्त रही हैं, लेकिन सवाल है कि क्या एक विधानसभा ऐसे मुद्दों को पारित कर सकती है? विदेश और रक्षा नीतियां केंद्र सरकार तय करेगी अथवा संघशासित क्षेत्र की विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया जा सकता है? भारतीय संसद ने अनुच्छेद 370 और 35-ए को निरस्त किया था और सर्वोच्च अदालत ने भी उसे उचित, ‘संवैधानिक निर्णय’ माना था| तो विधानसभा चुनाव में पार्टियां इनकी बहाली और ‘विशेष दर्जे’ की वापसी का वायदा कैसे कर सकती हैं? यह सवाल नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से पूछा गया था| उनका जवाब था कि आने वाली सर्वोच्च अदालत में कश्मीर की बुनियादी सोच वाले न्यायाधीश भी आ सकते हैं! केंद्र में मौजूदा सरकार की विदाई हो सकती है तथा विपक्षी ‘गठबंधन इंडिया’ की सरकार बन सकती है! हमने जम्मू-कश्मीर के अवाम को आश्वस्त किया है कि तब तक हम इंतजार करेंगे, लेकिन लड़ाई लगातार लड़ते रहेंगे| हम चुप नहीं बैठेंगे|
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणा-पत्र में कहा है कि ‘शंकराचार्य के पर्वत’ का इस्लामी नाम ‘तख्त-ए-सुलिमान’ रखा जाएगा| और हरी पर्वत को कोह-ए-मरान लिखा था| इस सवाल को गृह मंत्री अमित शाह ने भी उठाया था और कांग्रेस से सवाल पूछा था कि क्या वह शंकराचार्य पर्वत की पहचान खत्म करने की साजिश को समर्थन करती है| ऐसे में अहम सवाल यह है कि क्या क्या नेशनल कांफ्रेंस कश्मीर को एक बार फिर ‘इस्लामिक’ बनाने के मंसूबे हैं? नेशनल कांफ्रेंस के घोषणापत्र में शंकराचार्य पर्वत को तख्त-ए-सुलेमान बताने पर कश्मीरी हिंदुओं में आक्रोश फूट पड़ा है और इसे संस्कृति और पहचान को खत्म करने की साजिश करार दिया है| शंकराचार्य पर्वत व हरि पर्वत कश्मीरी हिंदुओं की आस्था के प्रतीक हैं| कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि से पड़ा| यह भूमि ऋषियों की भूमि है| इस भूमि से कश्मीरी हिंदुओं की आस्था, संस्कृति जुड़ी है| इनके नाम कैसे बदले जा सकते हैं| नेकां गंदी राजनीति खेल रही है| आज नेकां ने अपनी मंशा लोगों के सामने रख दी है|
कश्मीरी पंडित कॉन्फ्रेंस ने इस विषय पर फारूक अब्दुल्ला को सीधा पत्र लिखा है| उन्होंने फारूक अब्दुल्ला से पीएसए हटाने के वादे और अन्य बिंदुओं को भी हटाने की मांग उठाई है| अन्य कश्मीरी हिंदू संगठन भी इस नेशनल कांफ्रेंस की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं| कश्मीर पंडित कॉन्फ्रेंस ने चुनाव आयोग को भी पत्र लिखा है और मांग उठाई है कि कश्मीरी हिंदुओं की पहचान को खत्म करने के प्रयास को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाएं| वास्तव में, कश्मीरी हिंदू घाटी की हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता और संस्कृति के संवाहक हैं| कश्मीर पंडित कॉन्फ्रेंस के अनुसार नेशनल कांफ्रेंस हमारी सभ्यता के तमाम निशान मिटाना चाहती है| यह प्रयास नया नहीं है| कुछ कट्टरवादी तत्व पहले से इस प्रोपेगेंडा पर काम कर रहे हैं और लैलेश्वरी को लैला अरिफा और श्रीनगर को शहर-ए-खास बताने का प्रयास हो रहा है|
असल में नेशनल कॉन्फ्रेंस तो शेख अब्दुल्ला की ही विरासत है, लिहाजा उनकी सियासत भी वही होगी| पीडीपी ने यहां तक घोषणा की है कि जमात-ए-इस्लामी’ पर से प्रतिबंध हटा दिया जाएगा| यानी कश्मीर में अलगाववाद, आतंकवाद, हड़ताल और बंद की पुरानी स्थितियों की वापसी के रास्ते तैयार किए जा रहे हैं? घोषणा-पत्र में आरक्षण खत्म करने का आश्वासन दिया गया है| क्या गुर्जर, बकरवाल, दलित, पहाड़ी जातियों के आरक्षण खत्म किए जाएंगे? यह निर्णय कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति पर आघात की तरह साबित हो सकता है| ऐसे कई आश्वासन घोषणा-पत्रों में दिए गए हैं| बेशक ये देश-विरोधी घोषणाएं हैं| इसमें कोई दो राय नहीं है कि केवल कश्मीरी पंडित ही नहीं बल्कि दुनियाभर में रचने बसने वाले हर हिंदू के लिए जहॉं शंकराचार्य पर्वत एक पवित्र स्थान है| वहीं इस्लामी कट्टरपंथियों की आँख में इसकी पवित्रता खटकती रहती है| जगहों के नाम बदलने की रिवायत उन्होंने इस स्थान के लिए प्रयोग की हुई है| आप अगर इंटरनेट पर देखेंगे तो पाएंगे कि कई जगह इस जगह को लोग तख्त-ए-सुलेमान का नाम देकर आज भी बुलाते हैं और शंकराचार्य पर्वत का नाम लोगों की स्मृति से मिटाने का काम करते हैं| मालूम हो कश्मीर का ये कोई पहला ऐसा स्थान नहीं है जिसका नाम बदलकर वहां का इस्लामीकरण करने का प्रयास किया गया हो| इसी कश्मीर के अनंतनाग जिले को इस्लामाबाद कहते भी कई लोगों को सुना जा चुका है|
कश्मीरी हिंदुओं का कहना है कि नेशनल कांफ्रेंस ने बता दिया है कि वह कश्मीरी हिंदुओं के पूरी तरह से खिलाफ है| नेशनल कांफ्रेंस एक तरफ कश्मीरी हिंदुओं की घर वापसी की बात करती है और दूसरी ओर अलगाववादी स्वर को बढ़ाना चाहती है| कश्मीरी हिंदुओं की आम राय है कि जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के कदम आतंकवाद को बढ़ावा देंगे| नेशनल कांफ्रेंस के प्रयासों को लेकर कश्मीरी हिंदू संगठन आने वाले समय में आंदोलन छेड़ने का भी मन बना रहे हैं| वर्ष 2014 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पीडीपी 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी| हालांकि, 2018 में भाजपा द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद भाजपा के साथ उसकी गठबंधन सरकार गिर गई थी| दस साल बाद जम्मू कश्मीर में चुनाव भले ही हो रहे हैं, लेकिन वहां के क्षेत्रीय दलों और नेताओं का रवैया जस का तस है| उनके घोषणा पत्रों और वादों में उनके नीति और नीयत साफ तौर पर झलकती है| ऐसे में अहम सवाल यह भी है कि विधानसभा चुनाव के बाद जम्मू कश्मीर संविधान के रास्ते पर चलता हुए विकास के नये कीर्तिमान स्थापित करेगा या फिर से घाटी में अशांति, पत्थरबाजी और खून खराबे का दौर शुरू होगा| उम्मीद बेहतर की करनी चाहिए, सुख और शांति की करनी चाहिए, लेकिन क्षेत्रीय दल सियासत के लिए अमन चैन का दांव पर लगाने को अमादा दिखते हैं|