'अति' से बचें

जिन लोगों को नोमोफोबिया होता है, उनके मन में यह भय बना रहता है कि उनका स्मार्टफोन संचालन योग्य नहीं है

'अति' से बचें

अगर कोई विद्यार्थी अपने जीवन में अनुशासन लाना चाहता है तो ऐसा कर सकता है

सोशल मीडिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल को लेकर जो शोध हो रहे हैं, उनके निष्कर्षों की ओर ध्यान देने की जरूरत है। खासतौर से युवाओं के लिए ये शोध उनके भविष्य को नई दिशा देनेवाले हो सकते हैं। चीन, ताइवान और मलेशियाई विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों पर किए गए एक शोध के नतीजे कहते हैं कि सोशल मीडिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से उनमें आत्मविश्वास की कमी हो रही है। यही नहीं, वे मानसिक रोगों के शिकार बन रहे हैं। स्मार्टफोन से दूर रहने के डर के कारण वे अवसाद की समस्या से भी जूझ रहे हैं। 

जो समय पूरे जीवन की आधारशिला समझा जाता है, जब ज्ञानार्जन के साथ व्यक्तित्व का निर्माण होता है, अगर उस दौरान कोई इन समस्याओं के शिकंजे में फंस जाएगा तो भविष्य कैसा होगा? हमारा समाज आधुनिक जीवन शैली से जुड़ीं जिन समस्याओं से आज जूझ रहा है, उनसे सावधान रहने के संकेत सदियों पहले संतों-ऋषियों ने दे दिए थे। 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' अर्थात् 'अति करने से हमेशा बचना चाहिए', यूं ही नहीं कहा गया है। 'अति' सदैव हानिकारक होती है। 

बात जब सोशल मीडिया की हो तो यह शोध इसी सूक्ति को दोहराता नजर आता है। इसमें कहा गया है कि स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने वालों को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित बीमारी की आशंका हो सकती है। हालांकि यही शोध कहता है कि सोशल मीडिया के सभी प्रभाव नकारात्मक नहीं होते, लेकिन जिन लोगों को इसकी लत लग जाती है, वे इसके 'शिकार' होते हैं और उन्हें मदद की जरूरत होती है। 

आज यह देखने में आता है कि कई विद्यार्थी अपना सोशल मीडिया अकाउंट चेक करते हैं तो वहां ज्यादातर सामग्री ऐसी पाते हैं, जो उनके लिए उपयोगी नहीं होती है। वे रील्स देखते रहते हैं। कुछ समय बाद सोचते हैं कि 'बस, एक और देख लेता/ती हूं, फिर इसे बंद कर दूंगा/गी', लेकिन अगली रील ऐसी मिल जाती है कि एक और देख लेने का लोभ छोड़ा नहीं जाता।

अगर सोशल मीडिया पर सिर्फ ऐसी सामग्री देखी जाए, जिसका संबंध उनके अध्ययन से हो, जो उनका ज्ञानवर्धन करे, सकारात्मकता का संचार करे ... तब तो उसकी उपयोगिता है। जब उस पर ऐसी सामग्री आने लगे, जो ध्यान भटकाने वाली हो, जिसकी विद्यार्थी के लिए कोई उपयोगिता न हो, जो जीवन में कोई बेहतरी न लाए ... तो उससे दूर रहने में ही कल्याण है। 

उक्त शोध एक और समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करता है। इसके अनुसार, सोशल मीडिया का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल 'नोमोफोबिया' की वजह बन सकता है। दरअसल जिन लोगों को नोमोफोबिया होता है, उनके मन में यह भय बना रहता है कि उनका स्मार्टफोन संचालन योग्य नहीं है। लगातार एक ही जगह बैठकर मोबाइल फोन में व्यस्त रहने से विद्यार्थियों को वजन बढ़ने जैसी समस्या हो सकती है। इससे वे चिंता से जूझते रहते हैं। उन्हें इस बात को लेकर आशंका रहती है कि लोग उन्हें दूसरों से कमतर आंकेंगे। इसका असर नकारात्मक भावनाओं और कम आत्मविश्वास के रूप में सामने आता है। 

सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से कई विद्यार्थियों में अवसाद, घबराहट और तनाव के लक्षण पाए गए। जो विद्यार्थी रोजाना औसतन पौने पांच घंटे सोशल मीडिया पर बिताते थे, उनमें से 40 प्रतिशत से ज्यादा में सोशल मीडिया की लत का जोखिम पाया गया। वहीं, जो विद्यार्थी रोजाना सोशल मीडिया पर साढ़े चार घंटे बिताते थे, उनमें से एक तिहाई से ज्यादा में सोशल मीडिया की लत का जोखिम पाया गया। सवाल है- जब ये विद्यार्थी इतने समय तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते थे, तो पढ़ाई कब करते थे? यह लत एक तरह का नशा है, जिसके बारे में व्यक्ति जानता है कि वह हानिकारक है, लेकिन उससे पीछा नहीं छुड़ा पाता। उसके लिए अपनी लालसा पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। 

हालांकि यह काम असंभव नहीं है। अगर कोई विद्यार्थी अपने जीवन में अनुशासन लाना चाहता है तो ऐसा कर सकता है। इसके लिए उन समस्त ऐप्स / ग्रुप्स को हटा दें, जिनमें समय बर्बाद होता है। सिर्फ उन ऐप्स / ग्रुप्स को रखें, जो उनके लिए उपयोगी हैं। एक हफ्ते तक अपने मन पर अच्छी तरह से काबू रखें। उसके बाद इसकी तलब कमजोर पड़ती जाएगी। धीरे-धीरे नकारात्मक प्रभाव भी दूर हो जाएंगे और अध्ययन में एकाग्रता आने लगेगी।

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