चंद्रयान से लेकर रक्षाबंधन तक ... मन की बात में यह बोले मोदी
प्रधानमंत्री ने 'मन की बात' कार्यक्रम की 104वीं कड़ी में देशवासियों को संबोधित किया
'हमने इतनी ऊंची उड़ान इसलिए पूरी की है, क्योंकि आज हमारे सपने भी बड़े हैं'
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम की 104वीं कड़ी में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि मुझे याद नहीं आता कि कभी ऐसा हुआ हो कि सावन के महीने में दो-दो बार ‘मन की बात’ का कार्यक्रम हुआ, लेकिन, इस बार ऐसा ही हो रहा है। सावन यानी महाशिव का महीना, उत्सव और उल्लास का महीना। चंद्रयान की सफलता ने उत्सव के इस माहौल को कई गुना बढ़ा दिया है। चंद्रयान को चंद्रमा पर पहुंचे तीन दिन से ज्यादा का समय हो रहा है। यह सफलता इतनी बड़ी है कि इसकी जितनी चर्चा की जाए, वो कम है। जब आज आपसे बात कर रहा हूं तो एक पुरानी मेरी कविता की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं ...
आसमान में सिर उठाकरघने बादलों को चीरकर
रोशनी का संकल्प ले
अभी तो सूरज उगा है।
दृढ़ निश्चय के साथ चलकर
हर मुश्किल को पार कर
घोर अंधेरे को मिटाने
अभी तो सूरज उगा है।
आसमान में सिर उठाकर
घने बादलों को चीरकर
अभी तो सूरज उगा है।
मेरे परिवारजन, 23 अगस्त को भारत ने और भारत के चंद्रयान ने यह साबित कर दिया है कि संकल्प के कुछ सूरज चांद पर भी उगते हैं। मिशन चंद्रयान नए भारत की उस भावना का प्रतीक बन गया है, जो हर हाल में जीतना चाहता है, और हर हाल में जीतना जानता भी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस मिशन का एक पक्ष ऐसा भी रहा, जिसकी आज मैं आप सब के साथ विशेष तौर पर चर्चा करना चाहता हूं। आपको याद होगा इस बार मैंने लाल किले से कहा है कि हमें महिला नेतृत्व विकास को राष्ट्रीय चरित्र के रूप में सशक्त करना है। जहां महिला शक्ति की सामर्थ्य जुड़ जाती है, वहां असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। भारत का मिशन चंद्रयान, नारीशक्ति का भी जीवंत उदाहरण है। इस पूरे मिशन में अनेक महिला वैज्ञानिक और इंजीनियर सीधे तौर पर जुड़ी रही हैं। इन्होंने अलग-अलग सिस्टम के परियोजना निदेशक, प्रोजेक्ट मैनेजर ऐसी कई अहम जिम्मेदारियां संभाली हैं। भारत की बेटियां अब अनंत समझे जाने वाले अंतरिक्ष को भी चुनौती दे रही हैं। किसी देश की बेटियां जब इतनी आकांक्षी हो जाएं, तो उसे उस देश को विकसित बनने से भला कौन रोक सकता है!
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने इतनी ऊंची उड़ान इसलिए पूरी की है, क्योंकि आज हमारे सपने भी बड़े हैं और हमारे प्रयास भी बड़े हैं। चंद्रयान-3 की सफलता में हमारे वैज्ञानिकों के साथ ही दूसरे सेक्टर्स की भी अहम भूमिका रही है। तमाम पार्ट्स और तकनीकी जरूरतों को पूरा करने में कितने ही देशवासियों ने योगदान दिया है। जब सबका प्रयास लगा, तो सफलता भी मिली। यही चंद्रयान-3 की सबसे बड़ी सफलता है। मैं कामना करता हूँ कि आगे भी हमारा अंतरिक्ष क्षेत्र सबका प्रयास से ऐसे ही अनगिनत सफलताएं हासिल करेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सितम्बर का महीना, भारत की सामर्थ्य का साक्षी बनने जा रहा है। अगले महीने होने जा रही जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए भारत पूरी तरह से तैयार है। इस आयोजन में भाग लेने के लिए 40 देशों के राष्ट्राध्यक्ष और अनेक वैश्विक संगठन राजधानी दिल्ली आ रहे हैं। जी-20 सम्मेलन के इतिहास में यह अब तक की सबसे बड़ी भागीदारी होगी। अपनी प्रेसीडेंसी के दौरान भारत ने जी-20 को और ज्यादा समावेशी मंच बनाया है। भारत के निमंत्रण पर ही अफ़्रीकी संघ भी जी-20 से जुड़ा और अफ्रीका के लोगों की आवाज दुनिया के इस अहम प्लेटफार्म तक पहुंची।
पिछले साल बाली में भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलने के बाद से अब तक इतना कुछ हुआ है, जो हमें गर्व से भर देता है। दिल्ली में बड़े-बड़े कार्यक्रमों की परंपरा से हटकर, हम इसे देश के अलग-अलग शहरों में ले गए। देश के 60 शहरों में इससे जुड़ी करीब-करीब 200 बैठकों का आयोजन किया गया। जी-20 प्रतिनिधि जहां भी गए, वहां लोगों ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। ये प्रतिनिधि हमारे देश की विविधता देखकर, हमारा जीवंत लोकतंत्र देखकर बहुत ही प्रभावित हुए। उन्हें यह भी एहसास हुआ कि भारत में कितनी सारी संभावनाएं हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस समय देश में ‘मेरी माटी, मेरा देश’ देशभक्ति की भावना को उजागर करने वाला अभियान जोरों पर है। सितंबर के महीने में देश के गांव-गांव में, हर घर से मिट्टी जमा करने का अभियान चलेगा। देश की पवित्र मिट्टी हजारों अमृत कलश में जमा की जाएगी। अक्टूबर के अंत में हजारों अमृत कलश यात्रा के साथ देश की राजधानी दिल्ली पहुंचेंगे। इस मिट्टी से ही दिल्ली में अमृत वाटिका का निर्माण होगा। मुझे विश्वास है, हर देशवासी का प्रयास, इस अभियान को भी सफल बनाएगा।
इस बार मुझे कई पत्र संस्कृत भाषा में मिले हैं। इसकी वजह यह है कि सावन मास की पूर्णिमा, इस तिथि को विश्व संस्कृत दिवस मनाया जाता है।
सर्वेभ्य: विश्व-संस्कृत-दिवसस्य हार्द्य: शुभकामना:
आप सभी को विश्व संस्कृत दिवस की बहुत-बहुत बधाई। हम सब जानते हैं कि संस्कृत दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओँ में से एक है। इसे कई आधुनिक भाषाओं की जननी भी कहा जाता है। संस्कृत अपनी प्राचीनता के साथ-साथ अपनी वैज्ञानिकता और व्याकरण के लिए भी जानी जाती है।भारत का कितना ही प्राचीन ज्ञान हजारों वर्षों तक संस्कृत भाषा में ही संरक्षित किया गया है। योग, आयुर्वेद और दर्शन जैसे विषयों पर शोध करने वाले लोग अब ज्यादा से ज्यादा संस्कृत सीख रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अक्सर आपने एक बात ज़रूर अनुभव की होगी, जड़ों से जुड़ने की, हमारी संस्कृति से जुड़ने की, हमारी परम्परा का बहुत बड़ा सशक्त माध्यम होती है- हमारी मातृभाषा। जब हम अपनी मातृभाषा से जुड़ते हैं, तो हम सहज रूप से अपनी संस्कृति से जुड़ जाते हैं। अपने संस्कारों से जुड़ जाते हैं, अपनी परंपरा से जुड़ जाते हैं, अपने चिर पुरातन भव्य वैभव से जुड़ जाते हैं। ऐसे ही भारत की एक और मातृभाषा है, गौरवशाली तेलुगु भाषा। 29 अगस्त तेलुगु दिवस मनाया जायेगा।
अन्दरिकी तेलुगु भाषा दिनोत्सव शुभाकांक्षलु।
आप सभी को तेलुगु दिवस की बहुत-बहुत बधाई। तेलुगु भाषा के साहित्य और विरासत में भारतीय संस्कृति के कई अनमोल रत्न छिपे हैं। तेलुगु की इस विरासत का लाभ पूरे देश को मिले, इसके लिए कई प्रयास भी किए जा रहे हैं।
‘मन की बात’ के कई एपिसोड में हमने पर्यटन पर बात की है। चीजों या स्थानों को साक्षात् खुद देखना, समझना और कुछ पल उनको जीना, एक अलग ही अनुभव देता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कोई समंदर का कितना ही वर्णन कर दे, लेकिन हम समंदर को देखे बिना उसकी विशालता महसूस नहीं कर सकते। कोई हिमालय का कितना ही बखान कर दे, लेकिन हम हिमालय को देखे बिना उसकी सुन्दरता का आकलन नहीं कर सकते। इसलिए ही मैं अक्सर आप सभी से ये आग्रह करता हूँ कि जब मौका मिले, हमें अपने देश की सुंदरता, अपने देश की विविधता उसे ज़रूर देखने जाना चाहिए। अक्सर हम एक और बात भी देखते हैं, हम भले ही दुनिया का कोना-कोना छान लें लेकिन अपने ही शहर या राज्य की कई बेहतरीन जगहों और चीजों से अनजान होते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कई बार ऐसा होता है कि लोग अपने शहर के ही ऐतिहासिक स्थलों के बारे में ज्यादा नहीं जानते। ऐसा ही कुछ धनपालजी के साथ हुआ। धनपालजी, बेंगलूरु के परिवहन कार्यालय में ड्राइवर का काम करते थे। करीब 17 साल पहले उन्हें साइटसीइंग विंग में ज़िम्मेदारी मिली थी। इसे अब लोग बेंगलूरु दर्शिनी के नाम से जानते हैं। धनपालजी पर्यटकों को शहर के अलग-अलग पर्यटन स्थलों पर ले जाया करते थे। ऐसी ही एक ट्रिप पर किसी पर्यटक ने उनसे पूछ लिया, बेंगलूरु में टैंक को सेंकी टैंक क्यों कहा जाता है। उन्हें बहुत ही ख़राब लगा कि उन्हें इसका जवाब पता नहीं था। ऐसे में उन्होंने खुद की जानकारी बढ़ाने पर फोकस किया। अपनी विरासत को जानने के इस जुनून में उन्हें अनेक पत्थर और शिलालेख मिले। इस काम में धनपालजी का मन ऐसा रमा – ऐसा रमा कि उन्होंने एपिग्राफी यानी शिलालेखों से जुड़े विषय में डिप्लोमा भी कर लिया। हालांकि अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं, लेकिन बेंगलूरु के इतिहास खंगालने का उनका शौक अब भी बरक़रार है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अब त्योहारों का मौसम भी आ ही गया है। आप सभी को रक्षाबंधन की भी अग्रिम शुभकामनाएं। पर्व-उल्लास के समय हमें वोकल फॉर लोकल के मंत्र को भी याद रखना है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ यह अभियान हर देशवासी का अपना अभियान है। और जब त्योहार का माहौल है तो हमें अपनी आस्था के स्थलों और उसके आसपास के क्षेत्र को स्वच्छ तो रखना ही है, लेकिन हमेशा के लिए। अगली बार आपसे फिर ‘मन की बात’ होगी, कुछ नए विषयों के साथ मिलेंगें। हम देशवासियों के कुछ नए प्रयासों की उनके सफलता की जी-भर करके चर्चा करेंगे। तब तक के लिए मुझे विदा दीजिए। बहुत-बहुत धन्यवाद।