पर कतरने की तैयारी
इमरान सियासत छोड़कर नहीं भाग सकते, क्योंकि उस सूरत में भगौड़ा कहलाएंगे
इमरान जो वादे कर सत्ता में आए थे, उन्हें पूरा नहीं कर सके
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को यह समझ आते बहुत देर हो गई कि उन्होंने तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा के कार्यकाल में बढ़ोतरी कर ज़िंदगी की बड़ी ग़लती कर दी थी। इमरान भूल गए कि उन्हें राजनीति में लाने वाली सेना ही थी, जिस प्रकार जुल्फिकार अली भुट्टो, नवाज शरीफ को सेना ही राजनीति में लाई, कुर्सी पर बैठाया और फिर तख्ता उलट दिया। इमरान की स्थिति एक लोककथा के उस पात्र जैसी हो गई है, जो खीर खाने आया था, लेकिन जल्दबाजी और स्वाद के लालच में अपना सिर उस बर्तन में फंसा बैठा।
इमरान सियासत छोड़कर नहीं भाग सकते, क्योंकि उस सूरत में भगौड़ा कहलाएंगे। उनका राजनीतिक भविष्य अनिश्चित है, चूंकि सेना के इशारे पर चुनाव आयोग उनके पर कतरने की तैयारी में है। वह उन्हें पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष पद से हटाने की पहल शुरू कर चुका है। हालांकि अभी उन्हें नोटिस दिया है और 13 दिसंबर को मामले की सुनवाई हो सकती है। अगर पाकिस्तान की सेना मन बना ले कि उसे इमरान से निजात पानी है और उन्हें 'सियासी शहीद' भी नहीं होने देना है तो यह हथकंडा कारगर हो सकता है।चूंकि इमरान तोशाखाना मामले में संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जा चुके हैं। अब अगर पीटीआई के अध्यक्ष पद से भी उनकी छुट्टी हो जाती है तो वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। यूं तो इमरान जो वादे कर सत्ता में आए थे, उन्हें पूरा नहीं कर सके। न अर्थव्यवस्था बेहतर हुई, न भारत के साथ संबंध सुधरे और न आतंकवाद पर लगाम लगी। इमरान ने अपनी जनता और सेना दोनों को हर मोर्चे पर निराश ही किया। इस पर भी वे सेना से टक्कर लेने लगे थे, जिसे बाजवा बर्दाश्त नहीं कर सके और उनकी कुर्सी चली गई।
इमरान को यह अंदेशा जरूर है कि चुनाव आयोग उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा सकता है, लिहाजा वे जनता से सहानुभूति पाने की पुरजोर कोशिश करेंगे। इसके अलावा सेना, चुनाव आयोग और सत्तारूढ़ पीएमएल एन पर उनके हमले तेज हो सकते हैं। मौजूदा सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। दरअसल इमरान यह नहीं चाहते कि सेना राजनीति में हस्तक्षेप न करे। बल्कि वे यह चाहते हैं कि सेना उनका साथ दे। यह उनके पूर्व भाषणों में देखा जा सकता है, जब वे प्रधानमंत्री थे और बाजवा की खूब तारीफें करते थे। उन्हें लोकतंत्र समर्थक सेना प्रमुख की उपाधि देते नहीं थकते थे। अब वे उन्हीं बाजवा को कोसने का कोई मौका नहीं गंवा रहे।
वास्तव में इमरान की यह पूरी जद्दोजहद सिर्फ सत्ता पाने के लिए है। अब वे अपने भाषणों में भारतीय विदेश नीति की खुलकर तारीफ कर रहे हैं तो इसका यह आशय नहीं है कि उनका हृदय-परिवर्तन हो गया है। वे अपनी सेना को चिढ़ाने के लिए भारत का इस प्रकार उल्लेख कर रहे हैं। जिस दिन वे सत्ता पाने के करीब होंगे, तुरंत यूटर्न ले लेंगे। उनके बयानों में भारत को लेकर तल्खी आनी शुरू हो जाएगी। फिर वे जनरल मुनीर की शान में नई उपाधियां ईजाद कर लेंगे।
अभी सेना उन्हें 'दबोचने' के लिए हर कानूनी दांव-पेच आजमाना चाहेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि तमाम विफलताओं और हर मोर्चे पर खराब प्रदर्शन के बावजूद पाकिस्तान में एक बड़ा वर्ग इमरान का समर्थक है, जो चाहता है कि उसका नेता फिर प्रधानमंत्री बने। पाक में अगला साल चुनावी साल होने की उम्मीद है, जिसमें सेना अपने नेताओं को कदम-कदम पर अपनी 'ताक़त का अहसास' करवाएगी। इस मुकाबले में जिसका रवैया ज्यादा अनुकूल होगा, उसके ही सत्ता में आने के प्रबल योग होंगे।