संस्कार युक्त शिक्षा

किसी दार्शनिक ने कहा था कि एक स्कूल खोलने का अर्थ होता है, एक जेल बंद करना

संस्कार युक्त शिक्षा

आज जरूरत इस बात की है कि शिक्षा में संस्कारों को शामिल किया जाए

राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने विकास के साथ जेलों में कमी नहीं आने को लेकर जो चिंता जाहिर की है, उस पर अध्ययन एवं मनन होना चाहिए। राष्ट्रपति ने उचित ही कहा है कि जैसे-जैसे विकास हो, जेल खत्म होने चाहिएं, लेकिन धरातल पर ऐसा नहीं है। 

देखा तो यह जा रहा है कि जिस तरह लोगों के पास सहूलियत आई है, पढ़ाई-लिखाई का इंतजाम बेहतर हुआ है, उसके अनुपात में अपराधों में कमी नहीं आई है। अंग्रेज़ों के ज़माने में क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों को शासकवर्ग दुर्भावनावश जेल भेज देता था। हालांकि अपराधी भी जेल जाते थे, जिनमें बड़ी तादाद कम पढ़े-लिखे लोगों की होती थी। अब जेलों में ऐसे उच्च डिग्रीधारी बहुतायत में मिल जाते हैं, जो गंभीर अपराधों की धारा में दोषी साबित हो चुके हैं। 

सदियों पहले किसी दार्शनिक ने कहा था कि एक स्कूल खोलने का अर्थ होता है, एक जेल बंद करना। हालांकि मौजूदा परिस्थितियों में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। सवाल है- आधुनिक शिक्षा और इतनी जागरूकता के बावजूद अपराधों में कमी क्यों नहीं आ रही है? क्या हमारे शैक्षणिक तंत्र में कहीं कमी है या अपराध एक जन्मजात प्रवृत्ति है, जो परिस्थितियों के कारण जाग्रत हो जाती है, अन्यथा यह सुषुप्त अवस्था में होती है? 

इन दिनों श्रद्धा हत्याकांड चर्चा में है, जिसका आरोपी आफताब पूनावाला उच्च शिक्षित है। वह फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है, अंग्रेजी उपन्यासों और अमेरिकी अपराध कथाओं पर आधारित सीरीज का बड़ा शौकीन बताया जाता है।

अगर रोजमर्रा की बात करें तो मीडिया में चोरी, डकैती, हत्या, दुष्कर्म, रिश्वतखोरी, अपहरण, आतंकवाद, राष्ट्रविरोध कृत्यों की ख़बरें लगातार आ रही हैं। इनमें शामिल अपराधियों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि ऐसे कृत्यों में उच्च डिग्रीधारी, साधारण या कम पढ़े-लिखे और अनपढ़ यानी सब तरह के लोग हैं। 

आखिर हम शिक्षा के क्षेत्र में इतनी मेहनत, इतने संसाधन लगाने के बावजूद ऐसा समाज क्यों नहीं बना पाए, जिसमें अपराध की स्थिति न्यूनतम हो? अपराधमुक्त समाज बनाने की बात तो दूर की कौड़ी लगती है। इसलिए न्यूनतम पर ही विचार करना उचित है। बढ़ते अपराधों के लिए बेलगाम सोशल मीडिया, पुलिस व्यवस्था की खामियां, अदालतों में फैसलों की लंबी प्रक्रिया समेत कई बिंदु गिनाए जा सकते हैं, जो अपनी जगह वाजिब हैं, लेकिन इतनेभर से समाज को बेहतर नहीं बनाया जा सकता। 

आज जरूरत इस बात की है कि शिक्षा में संस्कारों को शामिल किया जाए। यहां संस्कारों से आशय है- बच्चों को स्कूल में पढ़ाई के अलावा उन अच्छी आदतों को सिखाने पर जोर दिया जाए, जिससे अच्छे नागरिकों का निर्माण हो। यूं तो इसकी शुरुआत परिवार से होनी चाहिए, लेकिन स्कूलों का यह विशेष दायित्व है। 

वे बच्चे को इस सांचे में ढालें कि वह नैतिकता, ईमानदारी, देशप्रेम, सद्भाव, करुणा, समन्वय और परस्पर सहयोग जैसे सद्गुणों को स्वयं धारण करता जाए। संस्कार युक्त शिक्षा ही श्रेष्ठ नागरिक तैयार कर सकती है और श्रेष्ठ नागरिकों से ही ऐसा समाज बनाया जा सकता है, जहां अपराध न्यूनतम हों।

Google News

About The Author

Post Comment

Comment List

Advertisement

Latest News

बेंगलूरु: स्वस्थ जीवनशैली का संदेश देकर कैंसर से बचाव के लिए जागरूक किया बेंगलूरु: स्वस्थ जीवनशैली का संदेश देकर कैंसर से बचाव के लिए जागरूक किया
सेमिनार में विभिन्न क्षेत्रों से 350 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया
जम्मू-कश्मीर: वायुसेना के काफिले पर हमले के बाद 'इधर' भाग गए आतंकवादी!
ओडिशा: सुचरिता मोहंती के टिकट लौटाने के बाद कांग्रेस ने इन्हें बनाया पुरी से उम्मीदवार
एचडी रेवन्ना को एसआईटी अधिकारियों ने हिरासत में लिया
अरविंदर सिंह लवली समेत कांग्रेस के कई नेता भाजपा में शामिल
एक ओर गर्मियों में थाईलैंड जाने वाले राहुल हैं, दूसरी ओर बिना छुट्टी लिए देशसेवा करने वाले मोदी हैं: शाह
पाक फौज को इमरान की दो टूक- सिर्फ एक शर्त पर हो सकती है बातचीत, अगर ...