सिंधुदेश की मांगः क्या फिर होंगे पाकिस्तान के टुकड़े?

सिंधुदेश की मांगः क्या फिर होंगे पाकिस्तान के टुकड़े?

सिंधुदेश की मांगः क्या फिर होंगे पाकिस्तान के टुकड़े?

फोटो स्रोतः PixaBay

अक्सर कहा जाता है कि दुनिया के विभिन्न देशों के पास अपनी फौज है लेकिन पाकिस्तानी फौज के पास एक देश है। गौरी, गजनवी जैसे बर्बर आक्रांताओं को अपना नायक मानने वाला और पूरी दुनिया में आतंक का जहरीला बीज बोने वाला पाकिस्तान विखंडनवादी मानसिकता का शिकार रहा है।

Dakshin Bharat at Google News
चूंकि उसका अस्तित्व ही घृणा और विखंडन पर टिका है तो उसके कर्ताधर्ताओं ने इसी सोच की घुट्टी पिलाकर अपनी पीढ़ियों को पाला है। उसका सपना है कि वह अमेरिका के टुकड़े करे, इजरायल को तबाह करे… और खैर भारत तो उसके आतंकवाद से पीड़ित ही है। कुल मिलाकर यह कि जहां भी रहना है, अशांति का वातावरण बनाना है।

कुदरत का दस्तूर है कि आप जो देते हैं, देर-सबेर वह आपकी ओर वापसी जरूर करता है। विखंडनवादी पाक के 1971 में दो टुकड़े हुए और बांग्लादेश ने सुकून की सांस ली। अब बलोचिस्तान पाक फौज के आतंक से कराह रहा है, सिंध भी अलग वतन सिंधुदेश की मांग कर रहा है।

सिंध के जमसोरो जिला स्थित सना में निकली सिंधुदेश समर्थकों की रैली इस बात का एक और प्रमाण है कि नफरत और कट्टरता पर टिके कृत्रिम राष्ट्र की नींव खोखली होती है, वह ज्यादा समय तक बोझ बर्दाश्त नहीं कर पाती।

उक्त रैली में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला पहलू यह है कि वहां प्रदर्शनकारियों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पोस्टर लहराए। उनके अलावा बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और अन्य वैश्विक नेताओं के पोस्टर भी देखे गए।

यूं तो सिंधुदेश की मांग नई नहीं है। बांग्लादेश बनने के करीब चार साल पहले ही 1967 में जीएम सैयद और पीर अली मोहम्मद रशदी ने पाक से अलग देश की मांग कर दी थी, लेकिन वहां की फौज और खुफिया एजेंसियों ने इस आंदोलन को दबा दिया और कई कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिया।

उन्होंने यही सब बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में दोहराया, पर वहां पासा उलटा पड़ा और भारतीय सेना ने अक्ल ठिकाने लगा दी। पाकिस्तानी फौज ने बांग्लादेश में मिली शिकस्त की खीझ बलोच राष्ट्रवादियों पर निकाली और चुन-चुनकर मारना शुरू कर दिया। यह सिलसिला आज तक जारी है। कनाडा में करीमा बलोच की संदिग्ध स्थिति में मृत्यु के बाद यह आरोप और पुष्ट हो गया है।

खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बलोचिस्तान की दौलत रावलपिंडी में बैठे जनरलों के खजाने भरती रही है। अब उनकी जमीन चीन को देने की तैयारी हो रही है। इसी तरह सिंध में भी दो टापू चीन को ‘तोहफे’ में देने की बातें सामने आई हैं। पीओके का एक बड़ा हिस्सा तो वह पहले ही चीन को सुपुर्द कर चुका है।

ऐसे में, यह कहना गलत नहीं होगा कि भविष्य में पाकिस्तान अपनी और जमीन चीन के हवाले कर सकता है, चूंकि वह उसके भारी कर्ज तले दबा है। भारत के लिए भी यह चिंता का विषय है क्योंकि पाक के कंधे पर बंदूक रखकर चीन घेराबंदी कर रहा है। अगर वह सिंध में अपने सैन्य ठिकाने बना लेता है तो किसे निशाना बनाने की कोशिश करेगा, यह समझना मुश्किल नहीं है।

कश्मीर को लेकर वैश्विक मंचों पर रुदन करते फिर रहे पाक को अपने घर की आग भारत से अंधी दुश्मनी के कारण दिखाई नहीं देती। अगर बलोचिस्तान के बाद सिंध भी आज़ादी मांगने लगेगा तो उसके पास बचेगा क्या?

अपनी पहचान के संकट के कारण गफलत में पाकिस्तान कभी ईरानी बनने की कोशिश करता है, तो कभी अरबी, तुर्क और चीनी! जो अपने पूर्वजों, अपने संस्कारों, अपनी भाषा और अपनी मिट्टी को लेकर शर्मिंदा होता है, उसका हाल वही होता है जो आज पाकिस्तान का है।

पाकिस्तान के हुक्मरानों ने मज़हबी उन्माद और आतंकवाद के कारण अपनी चार पीढ़ियों का नाश कर दिया, आधा देश गंवा दिया, महंगाई आसमान छू रही है, गली-मोहल्लों में खुद के पाले आतंकवादी ही बम फोड़ रहे हैं, कोई निवेश करना नहीं चाहता और भविष्य अंधकारमय दिखता है।

अगर पाक अपना अस्तित्व बचाए रखना चाहता है तो सबसे पहले जरूरी है कि वह दुश्मनी के पागलपन से बाहर निकलकर सामान्य स्थिति में आए, आतंकवाद बंद करे और भारत से संबंध सुधारे। इसका उसे फायदा होगा। अगर इसके उलट, वही सब करना है जो 1947 से करता रहा है तो वह दिन दूर नहीं जब बलोचिस्तान, सिंध से उठ रही आवाज रावलपिंडी और इस्लामाबाद में गूंजेगी, पाक का फिर विखंडन होगा और आतंकवाद का रोग मिटेगा।

Tags:

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download