कोरोना वैक्सीन निर्माण के साथ टेक्नोलाॅजी भी हो स्वदेशी
कोरोना वैक्सीन निर्माण के साथ टेक्नोलाॅजी भी हो स्वदेशी
हमारे जीवन में पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह इंटरनेट का दखल तेजी से बढ़ा है, उससे जुड़ीं समस्याएं भी सामने आ रही हैं। हैकिंग, ऑनलाइन फ्राॅड, ब्लैकमेलिंग जैसे अपराधों ने जांच एजेंसियों की चुनौतियां बढ़ा दी हैं।
इसके अलावा डेटा लीक जैसे मामले भी सामने आते रहे हैं। ऐसी कई खबरें आईं जब जानीमानी वेबसाइट्स के उपयोगकर्ताओं का बड़ी संख्या में डेटा उन लोगों के हाथ लग गया, जो इसका दुरुपयोग कर सकते हैं।आप किसी वेबसाइट पर अपना ऑनलाइन अकाउंट बनाते हैं, उसमें नाम, जन्मतिथि, स्थायी और अस्थायी पता भरते हैं। कुछ दिन बाद आपके पास किसी अनजान शख्स का फोन आता है जो जन्मदिन की बधाई देते हुए बीमा पाॅलिसी खरीदने का आग्रह करता है।
अब आपके लिए यह पता लगाना आसान नहीं होता कि इस ‘शुभचिंतक’ को जन्मदिन के बारे में कैसे मालूम हुआ! कुछ दिन बीते नहीं कि फिर एक फोन आता है कि कब तक किराएदार बन रहेंगे, शहर के फलां मोहल्ले में नए फ्लैट तैयार हैं!
आम नागरिक ऐसी बेतहाशा फोन काॅल्स सुनकर सिर धुन लेता है। ये इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की निजता से जुड़े मामलों की दो मामूली झलक हैं, जिन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
हाल में वाॅट्सऐप की निजता नीति पर छिड़े घमासान के मद्देनजर देश को इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। बड़ा सवाल यह है कि ‘देश का डेटा विदेश के हाथों में क्यों दिया जाए?’
हालांकि, वाॅट्सऐप ने अभी अपने कदम पीछे खींच लिए हैं लेकिन इससे उक्त विषय की गंभीरता कम नहीं हो जाती। जब निजता नीति पर बहस छिड़ी तो दिग्गज उद्योगपति भी दूसरे मैसेजिंग ऐप का रुख करने लगे। क्या यह कदम निजता के लिहाज से सुरक्षित है? अगर दूसरा ऐप भी कुछ महीनों या वर्षों बाद अपनी नीतियों में ऐसा बदलाव करे तो अगली मंजिल क्या होगी?
अक्सर देखने में तो यह भी आता है कि सरकारी विभागों, दफ्तरों का ईमेल पता उन कंपनियों का होता है जो विदेशी हैं। क्या इस तरह हम अपने शासन और नागरिकों की महत्वपूर्ण जानकारी उनके हाथों में नहीं दे रहे होते? क्या यह हमारे भविष्य के लिए उपयुक्त होगा?
पिछले साल भारत सरकार ने चीन के कई ऐप पर पाबंदी लगाई जिसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और निजता को महत्वपूर्ण कारण माना गया था। चूंकि विदेशों में स्थित चीनी टेक कंपनियों पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वे उपयोगकर्ताओं का डेटा बीजिंग भेजती हैं जहां पीएलए और खुफिया एजेंसियों की सीधी पहुंच है। क्या गैर-चीनी विदेशी कंपनियां इस लिहाज से सुरक्षित मानी जा सकती हैं?
इस समय देश में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है। अब मोबाइल फोन महानगरों की शोभा नहीं रह गया है। इसकी गांव-ढाणियों तक पहुंच है। डिजिटल लेनदेन में वृद्धि हो रही है। अब तो पढ़ाई भी मोबाइल फोन से होने लगी है। ऑनलाइन खरीदारी युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक को आकर्षित कर रही है।
ये सभी पहलू इस का संकेत दे रहे हैं कि अब भारत का ‘अपना मैसेजिंग ऐप’ होना चाहिए। ऐसा ऐप जो विशाल जनसंख्या के लिए सहज, सुलभ और सक्षम हो। यह निजता का सम्मान करता हो और स्वदेशी व सुरक्षित हो। इससे देश का डेटा बाहर जाने से बचेगा। वक्त-जरूरत भारतीय जांच एजेंसियों का काम आसान होगा।
अगर निजता की सुरक्षा के बदले कुछ शुल्क भी लिया जाएगा तो लोग सहर्ष स्वीकार करेंगे। अब जरूरत है कि ‘स्वदेशी’ और ‘मेड इन इंडिया’ जैसी पहल कोरोना वैक्सीन निर्माण के साथ टेक्नोलाॅजी के क्षेत्र में भी हो। भारत ऐसी प्रतिभाओं से भरा हुआ है जो यह कर सकते हैं। उद्योग जगत भी उनकी ओर सहयोग का हाथ बढ़ाए और प्रोत्साहित करे।