रोजगार और युवा वर्ग

रोजगार और युवा वर्ग

युवा वर्ग का स्वप्न देखना स्वाभाविक है लेकिन देश में सरकार प्रचार ने माहौल कुछ ऐसा बना दिया गया है जैसे कि नौकरी करना ही जीवन की सफलता है। जो भी आर्थिक सर्वे आ रहे हैं, उनमें बताया जा रहा है कि निजी और सरकारी क्षेत्रों में रोजगार की नई संभावनाएं तलाशना ब़डी चुनौती बनकर उभरा है। वहीं, ब़डी संख्या में शिक्षित युवा नौकरियों की तलाश में हैं्। ऐसी विकट स्थिति में युवाओं ने स्वावलंबन के अन्य उपाय नहीं तलाशे तो उनके लिए आर्थिक स्वतंत्रता सपना ही बनी रह जाएगी। ऐसी हालत में रोजगार मांगने की बजाय रोजगार देने की कोशिश शुरू करने की सलाह दी जाती रही है। वर्तमान नीतिगत उपायों और कृत्रिम बौद्धिकता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) को संरक्षण देने के कारण यह आशंका प्रबल है कि जिस अनुपात में बेरोजगारी है, उस तुलना में नए रोजगारों का सृजन केंद्र या राज्य सरकारों के वश की बात रह ही नहीं गई है। ऐसे में आर्थिक उदारवाद के लागू होने के बाद से औद्योगिक घरानों के हित साधने के लिए पारंपारिक रोजगारों पर जिस तरह से कुठाराघात किया गया है, उससे भी ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का भयावह संकट पैदा हुआ है। इस लिहाज से एक बार फिर यह जरूरत अनुभव हो रही है कि युवा पारंपारिक लघु और कुटीर उद्योगों के महत्व को रेखांकित करें।प्राचीन और मध्यकालीन भारत में कृषि, पशुधन व अन्य पेशेवर हुनर आजीविका की राह बनाती थी। यहां एक ऐसी सामाजिक सरंचना थी, जिसके आधार पर वस्तुओं का उत्पादन होता था। यह कार्यसंस्कृति स्थानीय संसाधनों से गतिशील होती थी। कृषि के साथ-साथ व्यापारिक संघ भी थे, जो देश के साथ विदेश में भी उत्पादित माल निर्यात करने का रास्ता बताते थे। इन देशज उपायों के बूते भारत १८वीं शताब्दी तक वैश्विक उत्पादन में अग्रणी रहा। अंग्रेजों की पक्षपातपूर्ण नीति ने इस ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया और लोग ब़डी संख्या में बेरोजगार हो गए। कालांतर में बेरोजगारी ब़डी समस्या बनती चली गई। आज रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकारों की ओर से दावे तो बहुत किए जाते हैं, लेकिन रोजगार दूर की कौ़डी ही साबित हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि वर्ष २०१८ में भी नए रोजगार सृजन की संभावना न्यूनतम है। भारत की ६५ प्रतिशत आबादी युवा है। इस हिसाब से करीब ८१ करो़ड लोग युवा हैं लेकिन बेरोजगार हैं। १५ से २९ वर्ष की आयु के युवाओं में से ३०.२८ प्रतिशत के पास रोजगार नहीं है। बेरोजगारी के इस बोझ से छुटकारा पाने के लिए युवाओं की मानसिकता और व्यापारिक वातावरण विकसित करने की जरूरत है। पारंपरिक लघु एवं कुटीर उद्योगों को रोजगारमूलक बनाना होगा। स्टार्टअप और स्टैंडअप योजनाओं की तरह लघु और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करना होगा।

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