हत्यारा है कौन?
हत्यारा है कौन?
आरुषि हत्याकाण्ड इस दशक के आपराधिक मामलों में सबसे रहस्यात्मक हादसों में से एक रहा है। गुरूवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को पलट कर आरुषि के अभिभावक राजेश और नूपुर तलवार को बरी करने का फैसला सुना दिया है। इस फैसले ने केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई सहित पुलिस के रवैये पर भी सवाल उठा दिये हैं। सच यह है कि देश भर में लोगों ने इस मामले में अपनी अपनी राय बना ली थी। आखिरकार नौ सालों तक कानूनी ल़डाई ल़डने के बाद तलवार दंपत्ति अपनी ही बेटी की निर्मम हत्या करने के कलंक को मिटने में सफल रहे हैं हालाँकि यह मामला अभी भी उच्चतम न्यायालय जा सकता है। बेटी आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या के आरोप में सजा काट रहे तलवार दंपत्ति को गुरूवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सुबूतों के अभाव के कारण रिहा करने का फैसला लिया। लगभग चार साल पूर्व इस हत्याकांड में गाजियाबाद की सीबीआई अदालत ने तलवार दंपत्ति को हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सीबीआई अदालत ने अपने फैसले में जिन सुबूतों को आधार माना था उच्च न्यायालय ने उन सुबूतों को ठुकराते हुए सीबीआई द्वारा तलवार दम्पति पर लगाए गए आरोपों को ख़ारिज कर दिया। साथ ही यह बात भी कही कि जांच एजेंसी ने आरोपों को ठीक से साबित करने की भी कोशिश नहीं की थी और राजेश और नूपुर तलवार को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। अभी इस बात की जानकारी नहीं है कि सीबीआई इस फैसले को उच्चतम न्यायलय में चुनौती देगा या नहीं, लेकिन यह सवाल जरूर उठ रहा है कि अगर आरुषि और हेमराज को तलवार दंपत्ति ने नहीं मारा तो असली गुनहगार है कौन? क्या सच में जांच एजेंसियों से कोई ब़डी चूक हुई है?इस बात को फिलहाल स्पष्ट तो नहीं किया जा सकता है परंतु यह फैसला सीबीआई सहित इस मामले से जुडी सभी जांच टीमों की असफलताओं जरूर उजागर करता है। यह मामला कई दिनों तक सुर्खियों में बना रहा और इस पर चर्चा भी बहुत हुई। इस मामले में जांच एजेंसियों पर किसी तरह के राजनैतिक दबाव की बात भी सामने नहीं आई। नौ सालों के लम्बे समय के बाद भी हमारी जांच एजेंसियां इस बात की पुष्टि नहीं कर पायीं हैं कि आखिरकार हत्यारा कौन था? सवाल यह भी है कि सीबीआई द्वारा दोषी पाए गए राजेश और नूपुर तलवार के खिलाफ एक मजबूत मुकदमा क्यों नहीं बना? सवाल यह भी है कि क्या आरुषि और हेमराज को कभी न्याय मिल सकेगा? शायद ही इतने लम्बे समय के बाद कोई भी जांच अधिकारी सुबूतों को इकट्ठा कर पुनः नए सिरे से जांच करने में सक्षम हो सकता है ।