चरखे से हारा ब्रिटिश तंत्र, मास्क से हारेगा कोरोना

चरखे से हारा ब्रिटिश तंत्र, मास्क से हारेगा कोरोना

चरखे से हारा ब्रिटिश तंत्र, मास्क से हारेगा कोरोना

मास्क तैयार करते हुए सिंधुरी। फोटो: सोशल मीडिया

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। ब्रिटिश परतंत्रता में भारतवासी अनेक कष्टों का सामना कर रहे थे। अंग्रेजों ने ऐसी आर्थिक नीतियां बनाईं जिनसे भारत की अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश राज का अत्याचारी शिकंजा कसता गया। ऐसी परिस्थितियों में बापू ने चरखे के जरिए आजादी की अलख जगाई। चरखे से सूत काता और उन लोगों के लिए वस्त्र बनाए जिन्हें इनका अभाव था। बापू ने चरखे को एकजुटता का सूत्र बना दिया।

आज कोरोना काल में मास्क एकजुटता का प्रतीक बन रहा है। देशभर में ऐसे कई लोग हैं जो मास्क बनाकर जरूरतमंदों को वितरित कर रहे हैं। निश्चय ही, उनके ये प्रयास महात्मा गांधी की शिक्षाओं एवं सिद्धांतों के अनुरूप हैं।

कर्नाटक के उडुपी की निवासी 10 वर्षीया सिंधुरी भी एक कोरोना योद्धा हैं। वे घर पर सिलाई मशीन से मास्क तैयार करती हैं और जरूरतमंदों को इनका वितरण करती हैं। उन्होंने कई विद्यार्थियों को भी मास्क बांटे हैं।

सिंधुरी दिव्यांग हैं। उनके बाएं हाथ की कोहनी से नीचे का हिस्सा नहीं है। हालांकि, यह शारीरिक चुनौती उनकी राह में बाधा नहीं बन पाई। उन्होंने पूरे उत्साह के साथ सिलाई मशीन निकाली और मास्क तैयार करने लगीं।

बताया गया कि सिंधुरी का बाएं हाथ का हिस्सा जन्म से ही नहीं है। वे पढ़ाई में बहुत प्रतिभाशाली हैं। मास्क बनाने के सेवाकार्य में उनकी मां भी सहयोग करती हैं। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और सेवा भावना से सिंधुरी समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं।

महात्मा गांधी का जीवन हमें जीवन मूल्यों, आदर्शों, संयम और त्याग के साथ चुनौती का सामना करने का संदेश देता है। आज कोरोना महामारी निश्चित रूप से परीक्षा की घड़ी है, जिसमें बापू के सिद्धांत हमारे लिए प्रकाशस्रोत बनेंगे और भारत महामारी पर विजय प्राप्त करेगा।

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