अध्यक्ष पद के लिए ‘राहुल की हां और ना’ को लेकर कांग्रेस में दुविधा की स्थिति!

अध्यक्ष पद के लिए ‘राहुल की हां और ना’ को लेकर कांग्रेस में दुविधा की स्थिति!

पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया 21 अगस्त से आरंभ होनी है और इसे 20 सितंबर तक पूरा होना है


नई दिल्ली/भाषा। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का समय नजदीक आने के साथ ही पार्टी के भीतर इस बात को लेकर ऊहापोह की स्थिति पैदा हो गई है कि अगर राहुल गांधी फिर से कमान संभालने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो फिर विकल्प क्या होगा ?

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पार्टी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के भीतर इन विकल्पों को लेकर मंथन चल रहा है कि अगर राहुल गांधी तैयार नहीं होते हैं तो गांधी परिवार के किसी विश्वासपात्र नेता को कमान सौंपी जाए या फिर सोनिया गांधी ही अगले लोकसभा चुनाव तक अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालती रहें।

पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया 21 अगस्त से आरंभ होनी है और इसे 20 सितंबर तक पूरा होना है।

उधर, कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के प्रमुख मधुसूदन मिस्त्री ने कहा, ‘मतदान के लिए डेलीगेट की सूची तैयार है। हमारी ओर से हम तैयार हैं। कांग्रेस कार्य समिति को चुनाव की तिथि तय करनी है।’

पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और इसके बाद से सोनिया गांधी पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रही हैं।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी समेत कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं की राय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए राहुल गांधी को अध्यक्ष पद संभालना चाहिए, हालांकि राहुल गांधी की तरफ से इस पर ‘हां’ का इंतजार है।

कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘इसमें कोई दो राय नहीं है कि ज्यादातर नेताओं और कार्यकर्ताओं की यही भावना है कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनें। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि खुद वह तैयार हों। मेरी जानकारी के हिसाब से फिलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद संभालने के लिए तैयार हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद जब नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ा था, उसके बाद से कई मौकों पर पार्टी के नेता उनसे फिर से अध्यक्ष बनने का आग्रह कर चुके हैं, लेकिन उनकी तरफ से ‘हां’ में जवाब नहीं आया। अब अध्यक्ष के चुनाव की दिशा उनकी ‘हां और ना’ पर निर्भर करती है।’

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘अगर गांधी परिवार से इतर भी कोई अध्यक्ष बन जाता है तो ऐसी स्थिति में भी राहुल गांधी पार्टी का एक प्रमुख चेहरा बने रहेंगे।’

उनका यह भी कहना है कि अगले कुछ दिनों में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर पूरी स्थिति साफ हो सकती है। सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी के अध्यक्ष नहीं बनने की स्थिति में कुछ विकल्पों और नामों पर चर्चा हो रही है।

कांग्रेस से जुड़े एक सूत्र ने बताया, ‘राहुल गांधी के अध्यक्ष नहीं बनने की स्थिति में जिन वैकल्पिक नामों को लेकर चर्चा है उनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम प्रमुख है। उनके नाम पर गांधी परिवार को भी शायद ही कोई आपत्ति हो। हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि गहलोत मुख्यमंत्री पद का छोड़कर अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए इच्छुक नजर नहीं आते।’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए गहलोत के अलावा मुकुल वासनिक, मल्लिकार्जुन खरगे, कुमारी सैलजा और कुछ अन्य नामों पर भी विचार किया जा सकता है।’

कांग्रेस के एक अन्य नेता ने कहा, ‘राहुल गांधी के अध्यक्ष नहीं बनने पर एक विकल्प यह भी हो सकता है कि सोनिया गांधी अगले लोकसभा चुनाव तक अध्यक्ष पद पर बनी रहें और दो-तीन वरिष्ठ नेताओं को कार्यकारी अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाए।’

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘सेंटर फॉर पोलिटकल स्टडीज’ के एसोसिएट प्रोफेसर मणींद्र नाथ ठाकुर का कहना है कि कांग्रेस इस समय दुविधा की स्थिति में है।

उन्होंने कहा, ‘सोनिया गांधी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना कर रही हैं। राहुल गांधी को लेकर यह समस्या है कि जैसे ही उन्हें अध्यक्ष पद की कमान सौंपी जाएगी, उसी समय से वह विरोधियों के निशाने पर आ जाएंगे... एक समस्या यह भी है कि गांधी परिवार के पास मनमोहन सिंह जैसा कोई विश्वासपात्र व्यक्ति नहीं है।’

ठाकुर ने कहा कि फिलहाल कांग्रेस के पास एक बेहतर विकल्प यही है कि सोनिया गांधी अध्यक्ष रहें और उनके साथ कुछ नेता प्रमुख सहयोगी की भूमिका में हों।

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई का कहना है कि राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद नहीं संभालने के पीछे वाजिब कारण दिए हैं और देश में एक तरह का वंशवाद विरोधी माहौल भी है जो राहुल की दावेदारी को कमजोर बनाता है।

उन्होंने कहा, ‘कुछ लोगों का मानना है कि सोनिया गांधी अध्यक्ष बनी रहें और उनके साथ दो-तीन कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए जाएं।’

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