जब कोरोना का अहम हुआ आहत

जब कोरोना का अहम हुआ आहत

जब कोरोना का अहम हुआ आहत

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए विभिन्न सावधानियों पर गौर करना बहुत जरूरी है।

आदमी का भेष धारण कर कोरोना निकला शहर भ्रमण पर

श्रीकांत पाराशर
समूह संपादक, दक्षिण भारत

किसी ने कोरोना के कान भर दिए। कान का कच्चा कोरोना क्रोध से कशमशा उठा। उसे यह सूचना दिल में सीधे तीर की भांति जा चुभी कि तुम अपने आपको तीसमारखाँ समझे बैठे हो और भारत भूमि के मनुष्य तो तुम्हें जूते की नोंक पर रखते हैं। तुमने भले ही विश्वभर में तहलका मचा दिया हो किंतु भारत का व्यक्ति तुमसे डरता नहीं। भारत की भी छोड़िये, भारत के एक प्रदेश कर्नाटक के लोग बिल्कुल नहीं डरते। प्रदेश की भी छोड़िये, इस प्रदेश के एक शहर, यानी इसकी राजधानी बेंगलूरु के लोग तो तुम्हें ठेंगा दिखा दिखा कर चिढा रहे हैं। यहां तुमने हजारों लोगों को संक्रमित कर दिया है, सैंकड़ों लोगों की जान ले ली है परंतु यहां का व्यक्ति बेपरवाह है। यह सुनकर कोरोना का अहम बुरी तरह आहत हुआ। उसे एक बार तो विश्वास नहीं हुआ कि जिसके नाम से दुनिया थर थर कांपती हो, उसको एक शहर के लोग चुनौती दे रहे हैं।

बिना एक मिनट का वक्त गंवाए कोरोना निकल पड़ा बेंगलूरु भ्रमण पर। कुछ दूरी पर ही गया होगा कि उसने देखा एक हाल में दूर दूर बैठकर किसी संस्था के पदाधिकारी “कोरोना से कैसे बचें” विषय पर चर्चा कर रहे थे। उसे अच्छा लगा कि यहां तो लोग डर रहे हैं। मुझ पर ही चर्चा हो रही है।बाकायदा बचाव की बातें की जा रही हैं। मीटिंग खत्म हुई और सब पदाधिकारी फोटो के लिए एकजुट हुए। सबने अपने मुंह से मास्क हटाया और हाथ में पोस्टर लेकर पास पास खड़े होकर फोटो खिंचवाई। पोस्टर में लिखा था, “जान है तो जहान है, घर पर रहें, स्वस्थ रहें।” कोरोना यह देखकर अपने आपको रोक नहीं पाया। एक पदाधिकारी को पूछ ही लिया कि मुंह पर मास्क नहीं, सोशल डिस्टेंसिंग का अता-पता नहीं? पदाधिकारी ने अपनी मजबूरी बताई कि क्या करें फोटो अखबार में आनी है तो पास पास खड़े होना ही होगा। और मुंह पर मास्क लगाएंगे तो पहचानेगा कौन ? मतलब पहचान का संकट। यानी आइडेंटिटी क्राइसिस। कोरोना खुद कनफ्यूज हो गया कि ये सब क्या लोजिक दे रहे हैं।

वह वहां से आगे बढा। कुछ दूरी पर गया तो फिर किसी संस्था के कुछ पदाधिकारी एक मिल्कबूथ पर दूध लेने आने वाले लोगों को निशुल्क मास्क बांट रहे थे। पदाधिकारियों के गले में मास्क लटक रहा था परंतु नाक मुंह खुला हुआ था क्योंकि उन्होंने मास्क लगाया नहीं था, लटकाया था। फोटो खेंची जा रही थी। कोरोना समझ गया कि वही आइडेंटिटी क्राइसिस वाला मामला है तो उसने वह सवाल यहां नहीं दोहराया। उसने नया सवाल किया कि भाई ये दूध लेने आए नागरिकों को आप मास्क बांट रहे हो, इनके पास तो मास्क पहले से ही हैं। उनको बांटो जिनके पास नहीं हैं। संस्था के वालिंटियर ने सफाई दी…हमारी संस्था ने बीस हजार मास्क बांटने का संकल्प लिया है। हम इतने लोग कहां ढूंढते फिरेंगे? इसलिए हमने कुछ ग्रुप बना लिए हैं जिनमें से आधे राशन की दुकानों पर और आधे मिल्कबूथ पर ड्यूटी में हैं। वहां तो लोग आएंगे ही, भले ही बाकी समय घर से न निकलें। जवाब सुनकर कोरोना ने तो सिर पीट लिया। उसे लोजिक समझ में नहीं आया। उसे लगा कि शहर में मास्क बांटना या कोरोना के प्रति जागरूक करना इतना जरूरी नहीं है जितना फोटो खींचना और अखबार में छपवाना तथा सोशल मीडिया पर डालना।

कोरोना थोड़ा आगे बढा तो देखा कि दो पुलिस वालों से कोई व्यक्ति बहसबाजी कर रहा था। उसने मसला जानना चाहा तो पता चला कि पुलिस वाले ने उस व्यक्ति का 500 रु. का चालान काट दिया था और वह पैसा देने को तैयार नहीं था। कोरोना ने पुलिसवाले से पूछा कि इसका चालान किस बात का काटा आपने, और यह पैसा दे क्यों नहीं रहा? पुलिसवाला तमतमाया, बोला- साला एक तो वैसे ही धंधा चौपट है। कोरोना के चक्कर में चार महीने से सब कमाई बंद है। हमारे भी बाल बच्चे हैं। मुश्किल से यह पकड़ में आया है जो कम्पलीट लाकडाउन में घर से बाहर निकला है। ऊपर से मुंह पर मास्क भी नहीं लगा रखा है। नियम के अनुसार कोई भी आदमी निर्देशों का पालन नहीं करेगा तो पुलिस चालान काटेगी ही। लेकिन यह आदमी कह रहा है, मैं आदमी नहीं, पत्रकार हूं। जर्नलिस्ट हूं। मुझ पर नहीं लागू होता तुम्हारा कोई कानून। अब बताइए कि पत्रकार क्या पुलिस से बड़ा है? कोरोना ने मन ही मन सोचा किसी एक को अगर मैंने बड़ा बता दिया तो मेरा तो बचना मुश्किल हो जाएगा। दोनों ही तगड़ी प्रजातियां हैं। पुलिस और पत्रकार। ना बाबा ना। जैसे तैसे कोरोना वहां से अपने आपको बचाकर खिसका।

कोरोना वहां से चिकपेट के लिए निकला तो रास्ते में एक प्राइवेट अस्पताल दिखाई दिया। कोरोना ने सोचा क्यों न अस्पताल की स्थिति का आकलन किया जाए। वह अंदर घुस गया। वहां अस्पताल परिसर में प्रवेश पर उसके माथे पर एक पिस्टल जैसी मशीन लगाकर तापमान की जांच की गई। एक महिला स्टाफ रजिस्टर में नाम और नंबर लिख रही थी। उसने नाम पूछा तो कोरोना ने अपना नाम बताया..कोरोना। महिला स्टाफ को हंसी आ गई। उसने देखा व्यक्ति मसखरी कर रहा है।वह नंबर भी पूछना चाहती थी तो दूसरे स्टाफ ने उसे कहा, जाने दो कुछ मत पूछो। यह सेक्रेटरी सर की पहचान वाला होगा। इनसे पंगा नहीं लेना। यह कहकर उन्होंने कोरोना को ट्रस्टियों के कमरे की ओर इशारा कर रास्ता बता दिया।

कोरोना जब वहां पहुंचा तो देखा कि चार पांच लोग चाय बिस्किट का आनंद ले रहे थे। किसी बात पर ठहाका लगा रहे थे। कोरोना ने कहा, क्या बात है अस्पताल में ज्यादा चहल पहल नहीं दिख रही। रोगी कम हैं क्या? एक ट्रस्टी ने तपाक से जवाब दिया कि गत चार महिने से तो सभी कामधंधों की यही हालत है। कोरोना के कारण अधिकांश बेड खाली ही हैं। कोरोना ने पूछा, तो फिर कोरोना मरीजों को जगह मिल जाएगी न ? मामला गड़बड़ होते देख एक चतुर से दिखने वाले व्यक्ति ने मोर्चा संभाला और कहा कि कोई बेड खाली नहीं है। हम अपनी मर्जी से पेशेंट लेते हैं। कोरोना ने कहा कि एक कहता है,बेड खाली हैं। दूसरा कहता है बेड नहीं हैं। कुछ समझ में नहीं आया। उस ट्रस्टी ने फिर से कहा कि आपको समझ में नहीं आया, यह आपकी प्रोब्लम है, हमारी नहीं। यहां हम जो कहते हैं किसी को समझ में नहीं आता। कभी कभी हमको भी नहीं आता। जिनको समझ नहीं आता यह उनकी प्रोब्लम है। हमें समझ नहीं आता, यह हमारी प्रोब्लम है।उन्होंने कहा, हमने जो कह दिया वह फाइनल है। जो करना है कर लो। उनमें से एक ट्रस्टी कोरोना की बांह पकड़कर बाहर ले गया और रास्ते में बोला, यह सबसे ऐसे ही बात करते हैं। बुरा मत मानना। आप मुझे फोन कर लेना, मैं ट्राई करता हूं कि कैसे भी एक बेड एडजस्ट करवा दूं। कोरोना उन सबका व्यवहार देखकर कुछ समझ नहीं पाया कि ये लोग कैसे अस्पताल मैनेज कर पाते हैं।

अब कोरोना पहुंचा रीयल डेस्टिनेशन चिकपेट। यानी कि अल्टीमेट डेस्टिनेशन। उसने सोचा कि चिकपेट को भीड़भाड़ वाला क्षेत्र बताया जाता है, यहां क्या हालात हैं यह देखना जरूरी है। वहां उसे कुछ लोग टहलते हुए दिखे। एक व्यक्ति को रोककर कोरोना ने पूछा कि दुकानें कितने दिनों से नहीं खुल रही हैं। उस व्यक्ति ने कहा, आप किस मीडिया से हैं। मैं व्यापारियों का प्रतिनिधि हूं और यहां की हालत की आफिशियल जानकारी मैं ही आपको दूंगा। और कोई दे भी दे, तो आप मानना मत। मैं रीयल एक्टिविस्ट हूं। व्यापारियों के हित के लिए किसी भी हद तक जा सकता हूं। मैं कहता हूं कि सरकार अगर बाजार नहीं खोलेगी तो हम खोल लेंगे। हम अब नहीं रुकेंगे। कोरोना ने कहा, तो फिर आप खोल क्यों नहीं रहे ? आप तो अपनी दुकान खोल लीजिए फिर सब खोल लेंगे।

उस एक्टिविस्ट ने कहा, मेरे अकेले के दुकान खोलने से क्या ग्राहक थोड़े ही आ जाएंगे। कोरोना के डर के मारे कोई ग्राहक नहीं फटक रहा। इस छुपे रुस्तम कोरोना ने फिर सवाल किया, तो फिर कुछ दिन बंद रहने दो। सबके लिए ठीक रहेगा ना? एक्टिविस्ट ने अपनी परेशानी बताई। कहा, मैं तो इसलिए आवाज उठा रहा हूं क्योंकि आवाज उठाना मेरा ही काम है। मैं नहीं उठाऊंगा तो फिर कौन उठाएगा? व्यापारियों की आवाज ही दब जाएगी। मैं ही उनकी आवाज हूं। आवाज उठाने से मेरी पहचान है। चुप रहूंगा तो लोग मुझे पहचानेंगे नहीं। भूल जाएंगे। कोरोना ने सोचा, अच्छा यहां भी वही पहचान का संकट है। आइडेंटिटी क्राइसिस। कोरोना उस कार्यकर्ता से बात कर ही रहा था कि एक दूसरा व्यापारी खुद चलकर उसके पास आ गया। कोरोना ने पूछा कि आप कौन हैं, यहां क्यों घूम रहे हैं? उसने कहा, मैं भी व्यापारी हूं परंतु दुकान खोलने के पक्ष में नहीं हूं। जान है तो जहान है। जब सब ठीक हो जाएगा तभी बाजार खुलना चाहिए। कोरोना ने कहा, फिर आप यहां बाजार में क्या कर रहे हैं? घर में रहें, स्वस्थ रहें।

उस व्यापारी ने कहा, ये लोग चैन से रहने भी नहीं देते। इनमें से कोई दुकान खोलेगा तो हम भी खोलेंगे। इनको अकेले को व्यापार नहीं करने देंगे। ये तो कमा लेंगे, हम रह जाएंगे। हमको भी दुकान किराया देना है, कर्मचारियों की सैलरी देनी है, घर पर हमारे भी बाल बच्चे हैं। इन्होंने अगर दुकान खोली तो हम भी तुरंत खोलेंगे। हम तो चाबी साथ ही लेकर आए हैं। कोरोना ने कहा, तो क्या आप लोगों में एकता नहीं है ? उस व्यापारी ने कहा कि व्यापारियों में एकता हो तो कोरोना क्या, हम कोरोना के बाप से निपट सकते हैं। बाप का नाम सुना तो कोरोना वहां से भी भागा। उसने देखा यदि अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो व्यापारियों को लड़ाकर रखना ही एकमात्र रास्ता है। पूरा बेंगलूरु में कुछ भी हो, चिकपेट में कभी बाजार खोलो, कभी बंद करो। राजनीतिज्ञों को भी इस विवाद में घुसेड़ दो। यहां अनिश्चितता की स्थिति बनी रहेगी। अब हाल ऐसा है कि कोरोना कब तक रहेगा किसी को पता नहीं। सब एक दूसरे को पूछते रहते हैं और अपने आपको दिलासा देते रहते हैं। कोरोना अभी आश्वस्त है कि जब तक सब एक नहीं होंगे, ठीक से दिशा निर्देशों का पालन नहीं करेंगे, जब तक लापरवाही बरतते रहेंगे, मास्क पहने बिना घूमते रहेंगे, पास पास खड़े होकर फोटो खिंचवाकर अखबारों को भेजते रहेंगे तब तक अपने को कोई खतरा नहीं है। अपन अपना दबदबा कायम रखेंगे।

Google News
Tags:

About The Author

Post Comment

Comment List

Advertisement

Latest News