इतिहास दोबारा लिखने के शाह के बयान को इतिहासकार डेलरिम्पल का मिला साथ, जताई सहमति
इतिहास दोबारा लिखने के शाह के बयान को इतिहासकार डेलरिम्पल का मिला साथ, जताई सहमति
कोलकाता/दक्षिण भारत। ब्रिटिश लेखक और इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के उस बयान से सहमति जताई है जिसमें उन्होंने इतिहास को फिर से लिखे जाने पर जोर दिया था। प्रसिद्ध लेखक ने कहा कि हर पीढ़ी को अपने नजरिए से इतिहास को लिखना चाहिए।
विलियम ने ये विचार अपनी नई किताब ‘द अनार्की’ के विमोचन समारोह में व्यक्त किए। इसके लिए उन्होंने टाटा स्टील कोलकाता लिटरेरी मीट में शिरकत की। विलियम ने कहा कि उन्होंने करीब छह साल पहले बिना किसी योजना के यह किताब लिखनी शुरू की और इसके बेस्टसेलर होने के बारे में सोचा भी नहीं था।बता दें कि ‘द अनार्की’ में ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के ताकतवर होने और भारत पर कब्जा जमाने की कहानी है। किताब के अनुसार, इस कंपनी की वजह से इतिहास ने उथल-पुथल भरे कई दौर देखे। विलियम ने कहा कि यह कंपनी ब्रिटेन से यहां कारोबार करने आई थी लेकिन मुगल शासकों से सत्ता छीनकर स्वयं हुकूमत पर काबिज हो गई।
विलियम ने दलील दी कि ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटेन से थी लेकिन यह ब्रिटिश तो बिल्कुल नहीं थी। उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि जब इस कंपनी की स्थापना हुई, दुनिया की जीडीपी में ब्रिटेन का हिस्सा सिर्फ तीन प्रतिशत था। वहीं, मुगल शासन की हिस्सेदारी 37 प्रतिशत थी। उन्होंने बताया कि 1756 से 1803 के बीच भारत ने औद्योगिक उत्पादन की दृष्टि से चीन को पछाड़ दिया था।
इतिहास को दोबारा लिखे जाने के सन्दर्भ में अमित शाह के बयान पर जब विलियम से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अमूमन वे उनसे सहमत नहीं होते, लेकिन इतिहास के पुनर्लेखन को लेकर सहमत हैं और हर पीढ़ी को इसे अपने दृष्टिकोण से लिखना चाहिए।
इस दौरान उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के उस दौर का जिक्र किया जब यह आर्थिक संकट से गुजर रही थी और उस पर दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा था। करीब ढाई दर्जन बैंकों की हालत भी ठीक नहीं थी। तब इस कंपनी को बेलआउट पैकेज दिया गया। उस दौर की पीढ़ी ने ऐसा कभी सोचा नहीं था लेकिन 2008-09 में भी हम ऐसा संकट देखते हैं। ऐसे में अगर उसके बारे में पढ़ते हैं तो सतर्क रह सकते हैं।