
असम: देश के लिए कारगिल सहित कई सैन्य अभियानों में लिया भाग, अब घोषित हुए विदेशी!
असम: देश के लिए कारगिल सहित कई सैन्य अभियानों में लिया भाग, अब घोषित हुए विदेशी!
दिसपुर/दक्षिण भारत। असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) एक बार फिर चर्चा में है। इसकी वजह भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त अधिकारी की गिरफ्तारी है। असम पुलिस में सेवारत सब-इंस्पेक्टर मोहम्मद सनउल्लाह (52) को विदेशी घोषित कर दिया गया है, जिसके बाद अब उन्हें डिटेंशन कैंप में रखा जाएगा। कामरूप जिले में स्थित फॉरनर ट्रिब्यूनल ने सनउल्लाह को विदेशी घोषित करने की कार्यवाही की है।
सनउल्लाह भारतीय सेना से कैप्टन के पद से 2017 में सेवानिवृत्त हुए थे। वे उन लोगों में से हैं जिन पर नागरिकता खोने का खतरा मंडरा रहा था। उन्हें 28 मई को कलहीकाश नामक गांव से गिरफ्तार कर लिया गया। सनउल्लाह को डिटेंशन कैंप में उन लोगों के बीच रहना होगा जिन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया है।
एक समाचार एजेंसी से बातचीत करते हुए सनाउल्लाह ने कहा कि मैं भारतीय था, भारतीय हूं और मरते दम तक भारतीय ही रहूंगा। उन्होंने खुद को विदेशी घोषित किए जाने पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि मैंने भारतीय सेना में रहकर 30 साल देश की सेवा की। यह उसका इनाम है।
बता दें कि सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद सनउल्लाह 2018 में असम पुलिस की बॉर्डर विंग में सब-इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हुए थे। असम पुलिस की यह शाखा ऐसे विदेशी नागरिकों के बारे में पता लगाती है जो 25 मार्च, 1971 के बाद असम में बस गए थे। इस तिथि को आधार मानकर ही संबंधित लोगों की नागरिकता निश्चित की जाती है।
हालांकि खुद सनाउल्लाह अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं कर पाए। बोको स्थित फॉरनर ट्रिब्यूनल को फॉरनर एक्ट-1946 की धारा-9 के अंतर्गत ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला जिससे यह सिद्ध हो कि सनाउल्लाह भारतीय हैं। इसके बाद 23 मई को उनके खिलाफ फैसला सुनाया गया। इससे उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं।
इस संबंध में सनउल्लाह के वकील और दामाद शहीदुल इस्लाम का कहना है कि उनकी जन्मतिथि और सेना में भर्ती होने के दस्तावेज मेल नहीं खा रहे। उनकी जानकारी में यह मामला तब आया जब गत वर्ष एनआरसी सूची में सनाउल्लाह का नाम शामिल नहीं था। शहीदुल इस्लाम कहते हैं कि इस घटना से पहले तक बॉर्डर पुलिस की ओर से उन्हें कोई नोटिस नहीं भेजा गया था।
दूसरी ओर, सनउल्लाह के चचेरे भाई अजमल हक बताते हैं कि उनके भाई 1987 में सेना में भर्ती हुए थे। उन्होंने कारगिल युद्ध के अलावा जम्मू-कश्मीर एवं उग्रवाद प्रभावित इलाकों में सेना के अभियानों में भाग लिया। उन्होंने बताया कि साल 2014 में उन्हें जूनियर कमीशन अधिकारी के रूप में प्रोन्नत किया गया और राष्ट्रपति से प्रमाण-पत्र भी मिला।
सनाउल्लाह के मामले के बारे में एक वकील ने दावा किया कि पुलिस द्वारा बिना वेरिफिकेशन के रिपोर्ट बनाई गई और उन्हें मजदूर बताया गया। बता दें कि पिछले साल जुलाई में असम में जारी एनआरसी मसौदे को लेकर काफी विवाद हुआ था। इसमें करीब 40 लाख लोगों के नाम गायब थे। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इसका तीखा विरोध किया था।
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