नीतीश मुसलमानों को मनाने में जुटे
नीतीश मुसलमानों को मनाने में जुटे
नई दिल्ली। भाजपा के साथ सरकार बनाने के तुरंत बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी जेडीयू के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की बैठक बुलाई। इसका मकसद अल्पसंख्यकों से जुड़े अपने राजनीतिक प्लान पर चर्चा करना था। बैठक और विश्वास मत के दौरान विधानसभा में नीतीश कुमार ने उन कार्यों का खासतौर पर जिक्र किया, जो उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए किया था। सीएम की इन गतिविधियों को वैसे मुसलमानों को मनाने की कोशिशों का हिस्सा माना जा रहा है, जो बीजेपी के साथ मिलने के उनके कदम को संदेह भरी नजरों से देख रहे हैं।बिहार में मुसलमान वोटर्स बड़ी संख्या में हैं और इस समुदाय को राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद के करीब माना जाता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि नए राजनीतिक समीकरण में आरजेडी का मुस्लिम-यादव गठजोड़ और मजबूत हुआ है। अगर जेडीयू के बागी नेता शरद यादव भी लालू के साथ हो जाते हैं, तो इससे बीजेपी-नीतीश की आरजेडी के पारंपरिक यादव वोट में सेंध लगाने की कोशिशों को और नुकसान पहुंचेगा। लिहाजा, नीतीश के पास अल्पसंख्यक वोटरों को पॉजिटिव मेसेज भेजने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है। उन्होंने पहले ही अपनी साख बचानी है। हालांकि, नीतीश कुमार ने ही बीजेपी गठबंधन में रहने के दौरान ही बिहार में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की शाखा खोलने का रास्ता साफ किया था।अब यह देखने वाली बात होगी कि वह मौजूदा कार्यकाल में इन मुद्दों पर बीजेपी से किस तरह निपटते हैं। जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 19 अगस्त को होनी है। पार्टी सूत्रों ने बताया कि इस बैठक में इन सब चीजों को लेकर तस्वीर साफ हो सकती है। नीतीश की कोशिश होगी कि 2019 के लोकसभा चुनावों में अल्पसंख्यक वोटर उनके खिलाफ ‘आक्रामक’ रुख न अख्तियार करें। इसमें बीजेपी और जेडीयू के मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना है। हालांकि, हालात अब बदल चुके हैं। उनकी पार्टी का मुस्लिम चेहरा और राज्यसभा सांसद अली अनवर बीजेपी के साथ गठबंधन के मुद्दे पर शरद यादव के साथ हो चुके हैं। अली अनवर को पसमांदा मुस्लिमों के बीच पॉपुलर माना जाता है। इस बीच, जेडीयू सूत्रों का कहना है कि अल्पसंख्यकों की नाराजगी दूर करने की सीएम की कोशिशों पर बीजेपी को किसी तरह की आपत्ति नहीं है। पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘अगर नीतीश को बिहार में बीजेपी की जरूरत है, तो बीजेपी को भी राजनीतिक तौर पर बिहार के बाहर भी एक ओबीसी चेहरे की जरूरत है। लिहाजा, इस बात का इंतजार कीजिए, जब बीजेपी को देश के बाकी हिस्सों में राजनीतिक ग्रोथ के लिए उनकी (नीतीश) की सेवाओं की जरूरत होगी।’ इस बीच, कांग्रेस पार्टी के विधायकों में भी फूट पड़ने की खबर है। कांग्रेस के पास 27 विधायक हैं और अगर इनमें से कुछ टूटते हैं, तो जेडीयू के लिए यह फायदेमंद स्थिति होगी।