दो गज दूरी, बहुत है जरूरी

दो गज दूरी, बहुत है जरूरी

श्रीकांत पाराशर
समूह संपादक, दक्षिण भारत राष्ट्रमत

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बेंगलूरु। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज रविवार को अपने मन की बात करते हुए कोरोना के संदर्भ में कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। हालांकि वे हमेशा ही उपयोगी बातें कहते हैं परंतु वर्तमान में कोरोना के संबंध में उनका एक एक शब्द खास मायने रखता है। हमारी तो बात छोड़िये, पूरा विश्व, जो कोरोना से पीड़ित है वह मोदी के एक एक शब्द पर कान लगाए बैठा है। हर कोई गौर कर रहा है कि कोरोना जैसी जानलेवा महामारी पर मोदी आखिर लगाम कसने में कैसे सफल होते दिख रहे हैं? एक तरफ भारत में विपक्ष की नेता सोनिया गांधी बार बार मोदी को पत्र लिखने में लगी हैं (अब तक 7 पत्र लिख चुकी हैं) और उन्हें न जाने क्या क्या सलाह दे रही हैं जबकि विश्व में कई देशों के शोधकर्ता भारत में अप्रत्याशित रूप से कोरोना की गति पर लगती रोक को देखकर शोध अध्ययन करने में जुट गए हैं। वे सोच रहे हैं कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में कोरोना लाशें बिछाने में कामयाब नहीं हुआ, ऐसा मोदी ने क्या प्रबंध कर दिया।

कांग्रेस पिछले दिनों कह रही थी कि मोदी ने भारत में नोटबंदी के फैसले की तरह कोरोना से निपटने के लिए लाकडाउन की घोषणा भी जल्दबाजी में कर दी जबकि पूरी दुनिया यह कहते नहीं थक रही कि मोदी ने सही समय पर लाकडाउन घोषित कर दिया और कोरोना महामारी के रूप में सर्वनाश की ओर धकेले गए देश को बचा लिया अन्यथा आज यहां कोरोना प्रभावितों की संख्या कई लाख तक पहुंच गई होती और कई हजार लोग अब तक मर चुके होते। प्रधानमंत्री अपने विरोधियों के अनावश्यक बयानों पर न तो खुद टिप्पणी करते हैं और न ही उनके सहयोगी मंत्री आदि उन बेतुके बयानों को ज्यादा तूल देते हैं। यह ठीक भी है क्योंकि यह समय किसी भी बात का राजनीतिकरण करने का नहीं है और न ही किसी से उलझने का है। इसलिए मोदी अपना पूरा समय और ऊर्जा कोरोना से निपटने पर चिंतन करने तथा उचित उपायों के क्रियान्वयन पर लगा रहे हैं ताकि कोरोना से लड़ी जा रही यह लड़ाई जल्दी से जल्दी जीती जा सके।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह लड़ाई देश का एक एक व्यक्ति लड़ रहा है। यह जन जन की लड़ाई है। देश का हर नागरिक इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है और इस सामूहिकता के सकारात्मक परिणाम भी सामने आएंगे। मोदी स्वयं तो आश्वस्त हैं ही, हर नागरिक का हौसला बढाने में भी वे कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। एक तरफ जहां राजनेता सफलता का श्रेय लेने की होड़ में एक दूसरे को टंगड़ी लगाने में भी नहीं हिचकते, वहीं मोदी खुद अपने सफल निर्णयों के कारण जीत की ओर बढते कदमों का भी श्रेय स्वयं नहीं लेते बल्कि अपने देश के नागरिकों को देते हैं। इसे ही मोदी होना कहते हैं। हर कोई मोदी नहीं हो सकता। इसमें भी दो राय नहीं कि मोदी की बात को देश की जनता मानती है, इसीलिए वे समय समय पर देश को संबोधित करते हैं अन्यथा देश को संबोधित तो पहले भी किया जाता था, परंतु अगले दिन अखबार में छपने पर ही पता चलता था कि ऐसा कुछ हुआ है। आज बिल्कुल उल्टा है। अगर नागरिकों को कोई कड़वी दवा देने की जरूरत होती है तो स्वयं बड़े डाक्टर नरेन्द्र मोदी सामने आते हैं और समझाते हैं कि देशवासियों के लिए वह दवा क्यों जरूरी है, फिर दवा ले ली जाती है। उस दवा से स्वास्थ्य ठीक होता दिखाई देने लगता है। यही खास बात है मोदी में।

मन की बात में मोदी ने एक खास बात कही है कि भले ही कोरोना का खतरा एक बार टल भी जाए परंतु इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि खतरा हमेशा के लिए टल गया है बल्कि अब हम सबको कुछ देशों की तरह हमेशा मुंह पर मास्क लगाने की आदत डाल लेनी चाहिए। मास्क लगाने का मतलब यह नहीं होता कि मास्क लगाने वाला व्यक्ति किसी संक्रमण वाली बीमारी से ग्रस्त है। यदि यह धारणा है भी तो इसे बदलना होगा। अब मास्क लगाना सभ्य समाज का प्रतीक बन जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मोदी के इस कथन में गहरा संकेत छिपा लगता है। वे संभवतः हमें यह कहना चाहते हैं कि आने वाले समय में सब कुछ सामान्य सा होता दिखाई देगा। हम अपने कार्यालयों में, अपनी दुकानों में, अपने कामकाज पर जाएंगे और पहले की तरह सब आवश्यक कार्य करेंगे परंतु फिर भी हमें यह याद रखना होगा कि हम कोरोना जैसी लाइलाज बीमारी के मौत के दरवाजे से अपने आपको सुरक्षित लौटा लाने में सफल तो रहे हैं परंतु इस भयानक बीमारी का खतरा पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। इसलिए लाकडाउन के बाद भी मास्क लगाने को अपनी जिंदगी का एक हिस्सा बना लेना चाहिए ताकि हम किसी और भयानक संक्रमण के शिकार न हो जाएं। यह हमारे प्रधानमंत्री की अपनी स्टाइल है, भावी किसी संभावित संकट से आगाह करने संबंधी संकेत देने की।

मोदी ने कहा है, “दो गज की दूरी, बहुत है जरूरी।” मतलब साफ है कि सोशल डिस्टेंसिंग का फार्मूला हम कहीं भूल न जाएं, हमें दो गज की दूरी बनाए रखने को गंभीरता से लेना है। वे जानते हैं कि यह मानव स्वभाव है कि जैसे ही समस्या खत्म होती दिखाई देती है वैसे ही मनुष्य उस समस्या के प्रति लापरवाह हो जाता है और पुनः उस संकट से घिर जाता है। यह हमारा सौभाग्य है कि मोदी जैसा समझदार प्रधानमंत्री हमें मिला है अन्यथा कोरोना संकट से हमारा देश कैसे निपटता, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है और उस कल्पना मात्र से शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है। बहरहाल, हमारा देश उस बड़े संकट के समक्ष सख्ती से अडिग खड़ा दिखाई दे रहा है और हमें पूरी विजय भी मिलेगी, इसमें कोई आशंका नहीं है।

मोदी की “मन की बात” में एक और खास बात सुनी गई। उन्होंने सबको अपने व्यवहार में सकारात्मकता को पर्याप्त महत्व देने की सलाह दी है। वे केवल दूसरों को ऐसी सलाह नहीं देते बल्कि उसको पहले अपने व्यवहार में भी लाते हैं। आज के संबोधन में ही देखिए, उन्होंने कोरोना से लड़ने में जिन जिन की भागीदारी है उन सबके प्रति आभार जताया, देश के ऐसे साहसिक योद्धाओं के कार्य की खुलकर सराहना की परंतु उन लोगों पर एक शब्द भी नहीं बोला जो कहीं न कहीं इस संघर्ष में अवरोध का काम करते रहे हैं। वे चाहते तो ऐसे तत्वों को लताड़ लगा सकते थे परंतु उन्होंने दुष्टों को नजरंदाज करना उचित समझा। ऐसा करना सामान्यतया किसी के लिए भी आसान नहीं है। यह उनका बड़प्पन ही है। हमें उन पर गर्व है और होना भी चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री एक अनुभवी अभिभावक की तरह हमारा पूरा खयाल रख रहे हैं। हम उनके सुझावों का अनुसरण कर उनके कदमों को ताकत प्रदान कर सकते हैं। हम सबको अपने जीवन में कदम कदम पर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढना चाहिए। इतना बदलाव तो अब कोरोना संकट से आना ही चाहिए।

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