तृणमूल, राकांपा और भाकपा पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने का मंडराया खतरा!
तृणमूल, राकांपा और भाकपा पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने का मंडराया खतरा!
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। लोकसभा चुनाव में ‘मोदी रोको’ मुहिम नाकाम होने के बाद अब विपक्ष के कुछ दलों को एक और झटका लग सकता है। इन पर राष्ट्रीय दल का दर्जा खोने का खतरा मंडरा रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के कारण ये दल इस स्थिति में आ गए हैं जहां इनका राष्ट्रीय दल का दर्ज समाप्त हो सकता है। इनमें ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (तृणकां), शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) शामिल हैं।रिपोर्ट में बताया गया है कि इसी हफ्ते भारतीय चुनाव आयोग इन्हें नोटिस भेज सकता है। लोकसभा चुनाव नतीजों के आधार पर ये दल अपना राष्ट्रीय दर्जा बचा पाने की स्थिति में नहीं रहे हैं। लिहाजा अगर चुनाव आयोग इनका राष्ट्रीय दर्जा निरस्त करता है तो ये सिर्फ क्षेत्रीय दल रह जाएंगे।
क्या कहते हैं नियम?
उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, किसी राजनीतिक पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा उसी स्थिति में मिल सकता है या बरकरार रह सकता है, जब वह ये तीन शर्तें पूरी करे: 1. जब कोई पार्टी कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से लोकसभा में 2 प्रतिशत सीटें जीते। 2. लोकसभा या विधानसभा के आम चुनाव में, पार्टी किन्हीं चार या अधिक राज्यों में 6 प्रतिशत मत प्राप्त करे और इसके अलावा वह चार लोकसभा सीटें जीते। 3. जब पार्टी को चार राज्यों में राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता मिले।
अगर चुनाव आयोग उक्त दलों के खिलाफ कार्रवाई करता है तो उस स्थिति में देश में राष्ट्रीय पार्टियां आठ के बजाय सिर्फ पांच रह जाएंगी। अभी तृणमूल कांग्रेस, बसपा, भाजपा, भाकपा, माकपा, कांग्रेस, राकांपा और एनपीपी के पास राष्ट्रीय दल का दर्जा है।
सिकुड़ते जनाधार ने बढ़ाई मुश्किल
साल 2014 में भी राकांपा, तृणमूल, भाकपा और बसपा को चुनाव आयोग ने नोटिस भेजा था। जानकारों की मानें तो इस बार बसपा के लिए राष्ट्रीय दर्जे को लेकर कोई मुश्किल नहीं होगी। चूंकि कई राज्यों में इस पार्टी ने उपस्थिति दर्ज कराई है। वहीं, तृणमूल कांग्रेस, राकांपा और भाकपा का दूसरे राज्यों में जनाधार सिकुड़ता जा रहा है।
ममता बनर्जी की तृणमूल प. बंगाल के बाहर कोई असरदार प्रदर्शन नहीं कर पाई। इसी तरह राकांपा और भाकपा भी दावों के मुताबिक प्रदर्शन करने में विफल रहीं। अगर ये पार्टियां अपना राष्ट्रीय दर्जा नहीं बचा पाती हैं तो यकीनन इसे बड़ा झटका माना जाएगा और इनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी निशाना साधने में नहीं चूकेंगे।