किसने किया दिल्ली को लहूलुहान?
अब दिल्ली भी हिसाब चाहती है
क्या यह 'इंटेलीजेंस फेलियर' था?
दिल्ली में लाल किले के पास धमाके के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके षड्यंत्रकारियों का पता लगाने के संबंध में जो टिप्पणी की है, उससे देशवासियों में विश्वास पैदा हुआ है कि शांति के दुश्मनों को बख्शा नहीं जाएगा। प्रधानमंत्री ने पहलगाम हमले के बाद भी एक जनसभा को संबोधित करते हुए इसी तरह टिप्पणी की थी। फिर, दुनिया ने देखा कि भारत ने एक-एक गुनहगार का हिसाब किया। अब दिल्ली भी हिसाब चाहती है। देश के दिल पर किसने हमला किया? बेगुनाह लोगों की सांसें किसने छीनीं? उसके मददगार कौन हैं? राष्ट्रीय राजधानी में जहां पुलिस और इतनी एजेंसियां हैं, कोई उनकी आंखों में धूल झोंक कर धमाका कैसे कर गया? देशवासी ऐसे कई सवालों के जवाब जानना चाहते हैं, लेकिन संयम और शांति के साथ। यह न भूलें कि ऐसी घटनाओं के पीछे एक बड़ा मकसद और होता है। वह है- 'लोगों के मन में शक और नफरत के बीज बोना, समुदायों में फूट डालना।' सोशल मीडिया पर आ रहीं कुछ टिप्पणियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जिन लोगों ने वारदात को अंजाम दिया, वे उससे अगले मकसद में भी कामयाब हो रहे हैं। इस समय हमें एकजुटता दिखानी चाहिए। यह देश हम सबका है। इसकी सुरक्षा और अखंडता को कायम रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है। ऐसी घटनाएं हमें लहूलुहान तो कर सकती हैं, लेकिन हमारी एकता को नहीं तोड़ सकतीं। इस देश की शांति और सद्भाव को चंद सिरफिरे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। भारतवासियों ने बड़े-बड़े खतरों का डटकर सामना किया है। जिन लोगों ने दिल्ली को दहलाने का षड्यंत्र रचा, आज वे किसी कोने में बैठकर हंस रहे होंगे, लेकिन कभी-न-कभी भारतीय एजेंसियां उन तक पहुंचेंगी।
अक्सर ऐसी घटनाओं के बाद कहा जाता है कि यह तो 'इंटेलीजेंस फेलियर' था। पुलिस और तमाम एजेंसियां इस बात का पता क्यों नहीं लगा पाईं? जाहिर है कि कहीं-न-कहीं चूक हुई है। अन्यथा इतनी बड़ी घटना नहीं होती। यह भी याद रखें कि पुलिस और एजेंसियों को हर बार कामयाब होने के लिए कोशिश करनी होती है। ऐसे कितने ही षड्यंत्र कई बार नाकाम किए गए हैं। जनता को उनकी कोई जानकारी नहीं होती। वहीं, अपराधियों, अलगाववादियों और आतंकवादियों को सिर्फ एक मौका चाहिए। अगर वे उसमें कामयाब हो जाते हैं तो हर तरफ उनका ही जिक्र होता है। भारतीय एजेंसियों ने अपने पिछले अनुभवों से बहुत सीखा है। याद करें, नब्बे के दशक से लेकर 26/11 तक कितने धमाके हुए थे? उसके बाद भी धमाके हुए, लेकिन ये घटनाएं कुछ क्षेत्रों तक सीमित रह गईं। पहले, जो आतंकवादी मुंबई तक पहुंच जाते थे, अब वे एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ही ढेर कर दिए जाते हैं। चूंकि एलओसी और सीमा की कुल लंबाई हजारों किलोमीटर है और वहां भौगोलिक परिस्थितियां अत्यंत चुनौतीपूर्ण हैं, इसलिए कभी-कभार आतंकवादी घुसपैठ करने में कामयाब हो जाते हैं या वे हथियार, विस्फोटक आदि पहुंचा देते हैं। भारतीय सुरक्षा बलों और एजेंसियों को सुनिश्चित करना होगा कि शांति के दुश्मनों का हर दांव नाकाम हो। अब भारत सरकार को एक काम जरूर करना चाहिए। जिस तरह पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तानियों को निकाला था, उसी तरह अब अवैध बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को निकालें। यह कोई असंभव काम नहीं है। सरकार कुछ इच्छाशक्ति दिखाए तो ऐसा कर सकती है। अगर इन्हें अब नहीं निकाला तो भविष्य में सुरक्षा और शांति व्यवस्था से जुड़ीं गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

