पुण्य प्रवृत्ति करने से पहले पाप प्रवृत्ति को छोड़ने का ध्येय होना चाहिए: विमलसागरसूरी
भगवान महावीर के सिद्धांत जाति-वर्ग के भेद, प्रांतवाद, भाषा विवाद का समर्थन नहीं करते

हर वर्ग की सुख-शांति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होना चाहिए
गदग/दक्षिण भारत। स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि भगवान महावीरस्वामी के सिद्धांत जाति-वर्ग के भेद, प्रांतवाद, भाषा विवाद आदि का समर्थन नहीं करते।
जैनशास्त्रों का निर्देश है कि हर वर्ग की सुख-शांति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होना चाहिए। हर जीव को उसकी योनि, जाति या वर्ग के आधार पर नहीं, आत्मा के आधार पर देखा जाना चाहिए। आत्म धरातल पर ही सबके साथ उचित व्यवहार होना चाहिए। तीर्थंकर महावीरस्वामी ने वर्ण व्यवस्था से परे सभी को अपने पास दीक्षित किया था।आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि लोगों को अज्ञानता, अंधविश्वास, व्यसन, हिंसा और कुरीतियों से मुक्त करना मानवता का महान् कार्य है। ऐसा किए बिना लोक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की स्थापना नहीं होगी। इसके लिए प्रबुद्ध और समझदार लोगो को आगे आकर जन-जन को ज्ञानदान देकर लोक जागरण का ध्येय सिद्ध करना चाहिये।
गांव-गांव, घर-घर सभी को धर्म के सिद्धांतों की पवित्र और कल्याणकारी बातें समझाकर उनके जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास करना चाहिये। यह धर्मांतरण नहीं, जीवन दिशा के परिवर्तन के रूप में होना चाहिए। इसी प्रकार जनसामान्य की दशा बदल सकती है। अपने तक सीमित रहना स्वार्थपरक मानसिकता है, जबकि सबके के कल्याण की सोचना परमार्थ धर्म है।
रात्रिकालीन ज्ञानसत्र को संबोधित करते हुए गणि पद्मविमलसागरजी ने कहा कि पुण्य प्रवृत्ति करने से पहले पाप प्रवृत्ति को छोड़ने का ध्येय होना चाहिए। जिस वस्तु का दुरुपयोग किया जाता है, वह हमारे लिए दुर्लभ बन जाती है। इसलिए हर वस्तु का सदुपयोग करने का लक्ष्य होना चाहिए किसी भी चीज को बर्बाद नहीं करना चाहिये। जागतिक व्यवस्थाओं के लिये भी आवश्यक है।
जैन संघ के निर्मल पारेख ने बताया कि शनिवार को कषाय जय तप की साधना में सभी चार सौ तपस्वियों ने निराहार उपवास, मंत्रजाप, देववंदना आदि किए। जैन संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि रविवार को प्रातः नौ बजे यहां दूसरा जागरण सेमिनार आयोजित हो रहा है।
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