‘परिवार की सुख-शांति और सफलता में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका’
विमलसागरसूरी की निश्रा में पारिवारिक सेमिनार सम्पन्न
'पुरुष परिवार का प्रासाद है, जबकि महिला उसकी बुनियाद है'
गदग/दक्षिण भारत। राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में रविवार को पार्श्व बुद्धि वीर वाटिका की दूसरी पारिवारिक सेमिनार को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि मां, बहन, बेटी, भाभी, सास, बहू, ननद, देवरानी और जेठानी, महिलाओं के ये मुख्य रूप हैं।
यदि घर में सास अपनी बहू को बेटी की तरह और बहू अपनी सास को मां की तरह नहीं समझते हैं तो उस परिवार के विवाद को विधाता भी टाल नहीं सकते। इसमें ननद की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण होती है। अगर ननद व भाभी के घनिष्ठ रिश्ते हों तो महिलावर्ग के अधिकांश विवाद समाप्त हो सकते हैं और स्नेह की सुहानी सरिता बह सकती है।आचार्यश्री ने कहा कि परिवार में महिलाओं की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। पुरुष वर्ग चाहकर भी महिलाओं से आगे परिवार का निर्माण या विकास नहीं कर सकता। पुरुष परिवार का प्रासाद है, जबकि महिला उसकी बुनियाद है।
महल की भव्यता और सुदृढ़ता उसकी बुनियाद पर निर्भर करती है। शायद इसीलिए नारी को शक्ति स्वरूपा कहा जाता है। उसके सौम्य, सरल, प्रबल, कठोर, क्रूर और रौद्र, कितने ही रूप हैं। भले ही प्रत्यक्ष दिखाई दें या नहीं, हर सफल पुरुष के पीछे किसी महिला की मजबूत भूमिका होती है। महिला वर्ग का साथ-सहयोग ही परिवार की सुख-शांति और सफलता का आधार बनता है।
जैनाचार्य ने अनेक वीडियो द्वारा अपनी बातों का मार्मिक चित्रण किया। जैनाचार्य ने सास की सरलता, गरीब की मजबूरी, बहू-बेटी का शोषण, कन्याओं की घर वापसी तथा महिलाओं के मनोरोग की अत्यंत प्रभावशाली विवेचना की।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने स्पष्ट किया कि यदि आप महिलाओं के आपसी विवादों के कारण घर में कमजोर हो गए तो बाहर कहीं भी जीत नहीं पाओगे और यदि घर से आप मजबूत हो तो कोई शक्ति आपको आसानी से परास्त भी नहीं कर पाएगी।
संघ के सचिव हरीश गादिया ने बताया कि सेमिनार में वर्षावास प्रवेश के लाभार्थी वीणा और पंकज बाफना परिवार का जैन संघ की ओर से सम्मान किया गया। अनेक जिज्ञासुओं ने अपने अनुभव और विचार सभी के समक्ष व्यक्त किए।


