गांधी और शास्त्री से यह भी सीखें राजनेता

नेपाल की घटना का बड़ा संदेश है ...

गांधी और शास्त्री से यह भी सीखें राजनेता

राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों को सादगी का पालन करना चाहिए

प्राचीन काल में अच्छे राजा के कई गुणों में से एक गुण यह भी माना जाता था कि वह समय-समय पर वेश बदलकर जनता के हालचाल जाने। एक आम धारणा थी कि अगर राजा चरित्रवान है, खेतों में फसल अच्छी है, राजकाज में रिश्वतखोरी नहीं है, अत्याचार नहीं है, अपराधों पर नियंत्रण है और जनता के लिए मनोरंजन उपलब्ध है तो विद्रोह नहीं होगा। अगर इनमें से एक भी बिंदु में कोई गड़बड़ हुई तो वह कालांतर में विद्रोह का कारण बन सकती है। आज दुनिया के ज्यादातर देशों में लोकतंत्र है, इसलिए राजा की जगह प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति होते हैं। उन्हें भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए, ताकि जनकल्याण की भावना कमजोर न पड़े। नेपाल समेत कई देशों का यह दुर्भाग्य रहा कि वहां 'जनता की भलाई करेंगे' - जैसा नारा देने वाले राजनेता तो खूब उभरे, लेकिन उन्होंने सत्ता प्राप्त करने के बाद खुद का ही भला किया। वे लोकतंत्र को राजतंत्र की तर्ज पर चलाते हुए अपने बच्चों के लिए रास्ता बनाते गए। नेपाल की घटना का एक बड़ा संदेश यह भी है कि राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों को अपने जीवन में सादगी का पालन करना चाहिए। उन्हें यही आदर्श अपने बच्चों को सिखाना चाहिए। अगर किसी देश में आम आदमी आर्थिक अभावों एवं परेशानियों का सामना कर रहा है और राजनेता, अधिकारी तथा उनके बच्चों के ठाठ के चर्चे हैं तो उससे अच्छा संदेश नहीं जाएगा। वहीं, आम आदमी जब यह देखता है कि मैं भले ही कष्ट में हूं, लेकिन देश के राजनेता, अधिकारी और उनके परिजन इस पीड़ा को समझते हैं, तो व्यवस्था के प्रति उसके विश्वास में कमी नहीं आएगी।

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महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने सादगी को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया था। वे आखिरी क्षण तक इस आदर्श को जीते रहे। गांधीजी के एक आह्वान पर लोगों ने विदेशी माल की होली जलानी शुरू कर दी थी। शास्त्रीजी की एक पुकार पर करोड़ों हिंदुस्तानियों ने उपवास रखना शुरू कर दिया था। अमेरिका द्वारा पीएल 480 का गेहूं बंद करने की धमकी का उन्होंने जिस तरह जवाब दिया, वह हमेशा याद रखा जाएगा। शास्त्रीजी ने अपनी पत्नी से कहा था, 'क्या आप ऐसा कर सकती हैं कि आज शाम हमारे यहां खाना न बने? मैं कल देशवासियों से एक वक्त का खाना न खाने की अपील करने जा रहा हूं। मैं देखना चाहता हूं कि मेरे बच्चे भूखे रह सकते हैं या नहीं?' ऐसे सादगी-पसंद राजनेता की सत्यनिष्ठा को उनके विरोधी भी नमन करते हैं। नेपाल में कहने को तो केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था, लेकिन वहां राजनेताओं और उनके परिवारों के ऐशो-आराम गजब के थे। उनके बच्चे सोशल मीडिया पर अपनी अमीरी का प्रदर्शन कर रहे थे। 'वे कितने सुंदर बंगले में रहते हैं, कितने लज़ीज़ पकवान खाते हैं, कितनी महंगी गाड़ियों में घूमते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं, कौनसा मोबाइल फोन रखते हैं और कैसे बेरोक-टोक मस्ती करते हैं' - जैसे वीडियो देखकर आम आदमी ने खुद को ठगा हुआ महसूस किया था। नेपाल के मौजूदा हालात के लिए ओली और उनकी मंडली जिम्मेदार हैं, जिन्होंने जनकल्याण के बजाय खुद के कल्याण का ही ध्यान रखा। जब नेपाल की जनता ने देखा कि हमारे कष्ट दूर नहीं हो रहे और राजनेताओं-अधिकारियों के बच्चे गुलछर्रे उड़ा रहे हैं तो विद्रोह की चिंगारी भड़की। बाकी कसर ओली ने सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाकर पूरी कर दी। जो लोग राजनीति को मौज करने का जरिया समझते हैं, सार्वजनिक धन को ऐशो-आराम पर बर्बाद करते हैं, वे इसी तरह बेआबरू होकर निकलते हैं। राजनेताओं को तपस्वियों की तरह रहना चाहिए। अगर उनके जीवन में सादगी होगी तो अन्य लोग भी इसे अपनाएंगे और उन पर दृढ़ता से विश्वास करेंगे।

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