आपसी विवाद है प्रगति में सबसे बड़ी बाधा: आचार्यश्री विमलसागरसूरी
आचार्यश्री ने आदिचुनचनगिरि मठ में श्रद्धालुओं काे संबाेधित किया

'समझदार लाेग विवाद की अग्नि काे विकराल हाेने से बचा सकते हैं'
हिरियूर/दक्षिण भारत। बेंगलूरु की ओर विहाररत आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी ने आदिचुनचनगिरि मठ में श्रद्धालुओं काे संबाेधित करते हुए जैनाचार्य ने कहा कि मनुष्य काे परिस्थिति के अनुसार नहीं, परिणामाें काे देखकर चलना चाहिए। परिस्थितियां जीवन काे जितना प्रभावित नहीं करतीं, उतने परिणाम असरकारक या खतरनाक हाे सकते हैं।
उन्होंने कहा कि किसी भी बात काे लेकर काेई विवाद कभी भी आकार ले सकता है। आसपास के समझदार लाेग विवाद की उस अग्नि काे विकराल हाेने से बचा सकते हैं। मनुष्य के बुद्धिमान हाेने की यही परीक्षा है। जाे लाेग विवादाें के अग्निकुंड में आहुतियां देकर खुश हाेते हैं वे किसी अपराधी से कम नहीं माने जा सकते। यह गहन पापप्रद मानसिकता है। जब ऐसे लाेगाें के जीवन में कभी विवाद हाेते हैं ताे दुनिया उसका मुफ्त में तमाशा देखती है। ऐसे लाेगाें काे बचाने काेई नहीं आता।आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि परस्पर संवाद और तालमेल प्रगति का मूलमंत्र है। यदि आप किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं ताे सर्वप्रथम विवादाें काे टालने का प्रयत्न करना चाहिए। राष्ट्र, प्रान्त, धर्म, समाज, संगठन, व्यापार और परिवार, सभी क्षेत्राें में आपसी विवाद प्रगति काे अवरुद्ध करते हैं और उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं काे क्षीण बनाते हैं।
उन्होंने कहा कि विवादाें से काेई विशेष लाभ नहीं हाेता। उन्हें टालना मनुष्य की बुद्धिमानी है। व्यक्ति का अहंकार अथवा उसकी जिद विवाद की पैदाइश और बढ़ाेतरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बुद्धि की वक्रता और जड़ता किसी भी बात, घटना और परिस्थिति के विविध आयामाें काे समझने में निष्फल रहती है। विवाद के परिणाम दुःखदायी हाेते हैं और उसकी चरम सीमा विनाश लाती है। प्रयत्न पूर्वक सरलता और समझदारी से विवादाें काे सुलझाया जा सकता है। गणि पद्मविमलसागरजी ने भी अपने विचार प्रकट किए।