'जीवन में लक्ष्मी से पहले सरस्वती आवश्यक'
जीवन में लक्ष्मी और सरस्वती, दाेनाें की परम आवश्यकता हाेती है

जैन परंपरा में सरस्वती की साधना बहुत पुरानी है
कडूर/दक्षिण भारत। शहर के नमिनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में रविवार काे वसंत पंचमी के उपलक्ष्य में आयाेजित विशेष अनुष्ठान में साधकाें काे मार्गदर्शन देते हुए जैनाचार्य ने कहा कि जैन परंपरा में सरस्वती की साधना बहुत पुरानी है। आज भी हजाराें वर्ष पुरानी जैन सरस्वती की मूर्तियां, उसके मंत्र और साधना के कल्प उपलब्ध हैं।
उन्होंने कहा कि मथुरा के सरकारी संग्रहालय में सुरक्षित जैन सरस्वती की मूर्ति 1900 वर्ष प्राचीन हैं और उस पर ब्राह्मी लिपि में शिलालेख अंकित हैं। प्राप्त साक्ष्याें के अनुसार, विश्व की यह सबसे पुरानी सरस्वती की मूर्ति हैं। प्राचीन काल में जैनाचार्य अपने मंदबुद्धि के शिष्याें काे ज्ञानवान बनाने के लिए विविध जड़ी-बूटियाें से गुटिकाएं बनाकर उन्हें सरस्वती के सिद्धमंत्राें से अभिमंत्रित करते थे। उनके इन प्रयाेगाें के सैकड़ाें उल्लेख जैनशास्त्राें में देखने काे मिलते हैं। आज भी ऐसे प्रयाेग पूर्ण वैज्ञानिक हैं।आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि जीवन में लक्ष्मी और सरस्वती, दाेनाें की परम आवश्यकता हाेती है। दाेनाें मूल्यवान हैं, लेकिन लक्ष्मी से पहले जीवन में सरस्वती का आगमन आवश्यक है।
सरस्वती के आने के बाद लक्ष्मी सही रास्ते से ही घर में आएगी और उसका व्यय भी गलत रास्ते पर नहीं हाेगा। दूसरी एक महत्वपूर्ण बात सदैव स्मरण में रहनी चाहिए कि जीवन में लक्ष्मी यदि पहले आ गई ताे वह सरस्वती काे घर आने नहीं देगी। सरस्वती किसी के लिये समस्या नहीं बनती, पर लक्ष्मी सरस्वती के लिये समस्या बन सकती है। इसीलिए जीवन में लक्ष्मी की साधना से पहले सरस्वती की आराधना की जानी चाहिए।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि ज्ञान की देवी सरस्वती की कृपा जिस पर भी बरसती है, वह निहाल हाे जाता है। अच्छी बुद्धि, सही निर्णय क्षमता, कार्यकुशलता, वाक् पटुता, गीतगायन, सकारात्मक साेच, भलाई की भावना, सात्विक वृत्ति, सब सरस्वती से आते हैं।
रविवार काे अनुष्ठान के लिए दक्षिण भारतीय शैली की कदम काष्ठ की बनी सरस्वती की मनाेहारी मूर्ति और विशाल ताम्रयंत्र पीठिका पर स्थापित किए गए। विविधि प्राचीन मंत्राें के द्वारा उनकी पंचप्रकारी पूजा की गई। चंदन का चूर्ण, माेगरे के पुष्प, सुगंधित धूप, घृत की ज्याेत तथा नैवेद्य और फल पूजन के लिए सभी साधकाें काे प्रदान किए गए।
स्थानीय श्राद्धालुओं के साथ चिक्कमगलूर, हासन, बाणावर, बिरूर, तरीकेरे, टिपटूर, चलकेरे, भद्रावती, शिवमाेगा आदि क्षेत्राें के 300 से अधिक भक्तगण इस अनुष्ठान में सहभागी बने। ज्ञान और सरस्वती के संगीतमय मंत्रजाप किए गए।