डिजिटल युग में फर्जी खबरें
फर्जी खबरें समाचार उद्योग के साथ-साथ समाज के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई हैं
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प्रियंका सौरभ
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आजकल फर्जी खबरें समाचार उद्योग के साथ-साथ समाज के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई हैं| इंटरनेट क्रांति ने फर्जी खबरों को फैलाने के लिए एक नरम आधार प्रदान किया है और यह गलत सूचना, समाचार में अशुद्धि, भ्रामक समाचारों, अर्धसत्य और कभी-कभी अत्यधिक सनसनीखेज रिपोर्टिंग का प्राथमिक कारण बन गया है, जो जनता का ध्यान खींचने और उन्हें गुमराह करने के लिए किया जाता है| सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सूचना इतनी तेज गति से फैलती है कि विकृत, गलत या झूठी सूचना वास्तविक दुनिया में कुछ ही मिनटों में लाखों उपयोगकर्ताओं के लिए प्रभाव पैदा करने की जबरदस्त क्षमता रखती है| फ़ेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स और व्हाट्सएप जैसे मैसेजिंग ऐप फ़र्जी ख़बरें फैलाने के लिए उपजाऊ प्लेटफ़ॉर्म बन गए हैं| इस पृष्ठभूमि में यह पेपर फ़र्जी ख़बरों की चुनौतियों, समाज पर इसके प्रभाव, फ़र्जी ख़बरों को फैलाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को विनियमित करने में सरकार की भूमिका, सोशल मीडिया के स्व-नियमन और सबसे बढ़कर नागरिकों और युवाओं की ज़िम्मेदारी का मूल्यांकन करने का इरादा रखता है, जो देश का भविष्य हैं|
गलत सूचना की समस्या का मुकाबला करने और वाक् स्वतंत्रता की सुरक्षा के बीच संतुलन हासिल करने में कई दिक्कतें हैं| फर्जी समाचार या भ्रामक सूचना जैसे शब्दों के लिए स्पष्ट परिभाषाओं का अभाव कानूनी अस्पष्टता उत्पन्न करता है, जिससे वाक् स्वतंत्रता संबंधी अधिकारों का उल्लंघन किए बिना सामग्री को विनियमित करना मुश्किल हो जाता है| गलत सूचना से निपटने के उद्देश्य से किए गए विनियामक उपाय अक्सर सरकारी अतिक्रमण का कारण बन जाते हैं, जहॉं अधिकारी फर्जी खबरों (फेक न्यूज) पर अंकुश लगाने के परिप्रेक्ष्य में असहमति की मुद्दों को दबा सकते हैं| अस्पष्ट विनियमन और कानूनी कार्रवाई के डर से व्यक्तियों में स्व-सेंसरशिप की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सकती है विशेष रूप से मीडिया, राजनीतिक व्यंग्य या सक्रियता में, जिससे रचनात्मकता और खुले विचार-विमर्श पर असर पड़ता है|
वाक् स्वतंत्रता ,व्यक्तियों को राय व्यक्त करने की अनुमति प्रदान करती है जो सदैव सत्यापित तथ्यों के साथ संरेखित नहीं हो सकता है, जिससे गलत सूचना और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है| गलत सूचना पर नियामक नियंत्रण ,अनजाने में खोजी पत्रकारिता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है जिसमें अक्सर शक्तिशाली संस्थाओं के संबंध में असुविधाजनक सच्चाइयों को उजागर करना शामिल होता है| हालॉंकि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े खतरों को रोकने के लिए फर्जी खबरों (फेक न्यूज) पर अंकुश लगाना आवश्यक है परंतु अति उत्साही दृष्टिकोण वाक् स्वतंत्रता सहित नागरिक स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है| कानून में स्पष्ट और विशिष्ट परिभाषाएँ होनी चाहिए कि फर्जी ख़बरें क्या होती हैं जो जानबूझकर फैलाई गई गलत सूचना और वैध राय के बीच अंतर स्पष्ट करना| उदाहरण के लिए: भारत यूरोपीय संघ के डिजिटल सेवा अधिनियम के समान एक रूपरेखा अपना सकता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन किये बिना स्पष्ट रूप से अवैध सामग्री को रेखांकित करता है| सामग्री की तथ्य-जॉंच के लिए स्वतंत्र, गैर-सरकारी निकायों की स्थापना से सरकारी पूर्वाग्रह का जोखिम कम हो सकता है और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकती है| जवाबदेही और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है| सामग्री हटाने के अनुरोधों के लिए न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करने से मनमाने निर्णयों को रोकने में मदद मिलती है और व्यक्तियों के स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकारों की रक्षा होती है| गलत सूचना का दीर्घकालिक समाधान मीडिया साक्षरता में सुधार करने में निहित है, जिससे जनता को स्वतंत्र रूप से समाचार स्रोतों और सूचना का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने में सक्षम बनाया जा सके|