सावन में खुशियों के बीज, बोने आती हरियाली तीज

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को श्रावणी तीज कहते हैं

सावन में खुशियों के बीज, बोने आती हरियाली तीज

Photo: PixaBay

- प्रियंका सौरभ -

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हरियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है| मुख्यत: यह स्त्रियों का त्योहार है| इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है| जगह-जगह झूले पड़ते हैं| स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं| श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को श्रावणी तीज कहते हैं| इसे हरितालिका तीज भी कहते हैं| जनमानस में यह हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है| श्रावण के महिने में चारों ओर हरियाली की चादर सी बिखर जाती है| जिसे देख कर सबका मन झूम उठता है| सावन का महिना एक अलग ही मस्ती और उमंग लेकर आता है| श्रावण के सुहावने मौसम के मध्य में आता है तीज का त्यौहार| स्त्रियां अपने हाथों पर त्योहार विशेष को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार की मेहंदी लगाती हैं| मेहंदी रचे हाथों से जब वह झूले की रस्सी पकड़ कर झूला झूलती हैं तो यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी लगता है, मानो सुहागिन आकाश को छूने चली हैं| इस दिन सुहागिन स्त्रियां सुहागी पकडक़र सास के पांव छूकर उन्हें देती हैं| यदि सास न हो तो स्वयं से बड़ों को अर्थात जेठानी या किसी वृद्धा को देती हैं| इस दिन कहीं-कहीं स्त्रियां पैरों में आलता भी लगाती हैं जो सुहाग का चिह्न माना जाता है| हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है| वास्तव में देखा जाए तो हरियाली तीज कोई धार्मिक त्योहार नहीं वरन महिलाओं के लिए एकत्र होने का एक उत्सव है| नवविवाहित लड़कियों के लिए विवाह के पश्चात पडऩे वाले पहले सावन के त्योहार का विशेष महत्त्व होता है|

धार्मिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इस व्रत का पालन किया था| परिणामस्वरूप भगवान शिव ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया था| माना जाता है कि श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन माता पार्वती ने सौ वर्षों के तप उपरान्त भगवान शिव को पति रूप में पाया था| इसी मान्यता के अनुसार स्त्रियां माता पार्वती का पूजन करती हैं| तीज पर मेहंदी लगाने, चूडियां पहनने, झूला झूलने तथा लोक गीतों को गाने का विशेष महत्व है| तीज के त्यौहार वाले दिन खुले स्थानों पर बड़े-बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत पर या बरामदे में झूले लगाए जाते हैं जिन पर स्त्रियां झूला झूलती हैं| हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेलों का भी आयोजन होता है| हाथों में रची मेंहंदी की तरह ही प्रकृति पर भी हरियाली की चादर सी बिछ जाती है| इस नयनाभिराम सौंदर्य को देखकर मन में स्वतः ही मधुर झनकार सी बजने लगती है और हृदय पुलकित होकर नाच उठता है| इस समय वर्षा ऋतु की बौछारें प्रकृति को पूर्ण रूप से भिगो देती हैं| सावन की तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं| इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए करती हैं|

तीज का आगमन भीषण ग्रीष्म ऋतु के बाद पुनर्जीवन व पुनर्शक्ति के रूप में होता है| यदि इस दिन वर्षा हो तो यह और भी स्मरणीय हो उठती है| लोग तीज जुलूस में ठंडी बौछार की कामना करते हैं| ग्रीष्म ऋतु के समाप्त होने पर काले कजरारे मेघों को आकाश में घुमड़ता देखकर पावस के प्रारम्भ में पपीहे की पुकार और वर्षा की फुहार से आभ्यंतर आनन्दित हो उठता है| ऐसे में भारतीय लोक जीवन कजली या हरियाली तीज का पर्वोत्सव मनाता है| आसमान में घुमड़ती काली घटाओं के कारण ही इस त्योहार या पर्व को कजली या कज्जली तीज तथा पूरी प्रकृति में हरियाली के कारण तीज के नाम से जाना जाता है| इस त्योहार पर लड़कियों को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है| विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर लडक़ी को ससुराल में नहीं छोड़ा जाता है| नवविवाहिता लडक़ी की ससुराल से इस त्योहार पर सिंजारा भेजा जाता है| हरियाली तीज से एक दिन पहले सिंजारा मनाया जाता है| इस दिन नवविवाहिता लडक़ी की ससुराल से वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई भेजी जाती है| इस दिन मेहंदी लगाने का विशेष महत्त्व है|

स्त्रियां आकर्षक परिधानों से सुसज्जित हो भगवती पार्वती की उपासना करती हैं| राजस्थान में जिन कन्याओं की सगाई हो गई होती है, उन्हें अपने भविष्य के सास-ससुर से एक दिन पहले ही भेंट मिलती है| इस भेंट को स्थानीय भाषा में शिंझार (श्रृंगार) कहते हैं| शिंझार में अनेक वस्तुएं होती हैं, जैसे मेहंदी, लाख की चूडियां, लहरिया नामक विशेष वेश-भूषा, जिसे बांधकर रंगा जाता है तथा एक मिष्ठान जिसे घेवर कहते हैं| इसमें अनेक भेंट वस्तुएं होती हैं, जिसमें वस्त्र व मिष्ठान होते हैं| इसे मां अपनी विवाहित पुत्री को भेजती है| पूजा के बाद बया’ को सास को सुपुर्द कर दिया जाता है| पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी यदि कन्या ससुराल में है तो मायके से तथा यदि मायके में है तो ससुराल से मिष्ठान, कपड़े आदि भेजने की परम्परा है| इसे स्थानीय भाषा में तीज की भेंट कहा जाता है| राजस्थान हो या पूर्वी उत्तर प्रदेश, प्राय: नवविवाहिता युवतियों को सावन में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है| सभी विवाहिताएं इस दिन विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं| सायंकाल बन ठनकर सरोवर के किनारे उत्सव मनाती हैं और उद्यानों में झूला झूलते हुए कजली के गीत गाती हैं|

इस अवसर पर नवयुवतियां हाथों में मेहंदी रचाती हैं| तीज के गीत हाथों में मेहंदी लगाते हुए गाये जाते हैं| समूचा वातावरण श्रृंगार से अभिभूत हो उठता है| इस त्योहार की सबसे बड़ी विशेषता है, महिलाओं का हाथों पर विभिन्न प्रकार से बेलबूटे बनाकर मेहंदी रचाना| पैरों में आलता लगाना, महिलाओं के सुहाग की निशानी है| हाथों व पांवों में भी विवाहिताएं मेहंदी रचाती हैं जिसे मेहंदी मांडना’ कहते हैं| इस दिन बालाएं दूर देश गए अपने पति के तीज पर आने की कामना करती हैं जो कि उनके लोकगीतों में भी मुखरित होता है| तीज के दिन का विशेष कार्य होता है, खुले स्थान पर बड़े-बड़े वृक्षों की शाखाओं पर झूला बांधना| झूला स्त्रियों के लिए बहुत ही मनभावन अनुभव है| मल्हार गाते हुए मेहंदी रचे हुए हाथों से रस्सी पकड़े झूलना एक अनूठा अनुभव ही तो है| सावन में तीज पर झूले न लगें, तो सावन क्या? तीज के कुछ दिन पूर्व से ही पेड़ों की डालियों पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले पड़ जाते हैं और नारियां, सखी-सहेलियों के संग सज-संवरकर लोकगीत, कजरी आदि गाते हुए झूला झूलती हैं| पूरा वातावरण ही उनके गीतों के मधुर लयबद्ध सुरों से रसमय, गीतमय और संगीतमय हो उठता है|

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