ये जाएं तो कहां जाएं?

राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से तो यह उम्मीद की जाती है कि वे ऐसे लोगों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता दिखाएं

ये जाएं तो कहां जाएं?

अफगानिस्तान में तो अल्पसंख्यक परिवारों को अंगुलियों पर गिना जा सकता है

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा का यह बयान कि 'अगर लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी सत्ता में आई तो वह संशोधित नागरिकता अधिनियम-2019 (सीएए) को रद्द कर देगी', अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रताड़ित हिंदू, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के लोगों को मायूस करने वाला है। राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से तो यह उम्मीद की जाती है कि वे ऐसे लोगों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता दिखाएं। आज उक्त तीनों देशों में अल्पसंख्यकों की हालत किसी से छिपी नहीं है। वे उधर चरमपंथियों की ओर से भीषण प्रताड़ना और भेदभाव का सामना कर रहे हैं। ऐसे में वे जाएं तो कहां जाएं? उनके लिए एकमात्र उम्मीद की किरण भारत है। वैसे भी इन तीनों देशों में अल्पसंख्यक कितने बचे हैं? अफगानिस्तान में तो अल्पसंख्यक परिवारों को अंगुलियों पर गिना जा सकता है। पाकिस्तान में कुछ लाख बचे हैं। कमोबेश यही स्थिति बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की है। यह भी न भूलें कि सीएए इन लोगों की पूरी आबादी के लिए दरवाजे नहीं खोलता है। यह बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए प्रताड़ित हिंदू, सिक्ख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्मावलंबियों की स्थिति पर नरमी दिखाता है। क्या ये लोग भारत से इतने अपनत्व का अधिकार भी नहीं रखते? अपने धर्म के प्रति समर्पण क्या होता है, ये समुदाय इसकी मिसाल हैं। इन पर चरमपंथियों की ओर से हमले किए जाते हैं। इनके आराधना स्थलों को नुकसान पहुंचाया जाता है। सरकारी दफ्तरों से लेकर अदालतों तक में खुलकर भेदभाव होता है। इनकी बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। कदम-कदम पर धर्मांतरण को लेकर दबाव डाला जाता है। इसके बावजूद ये अपनी आस्था पर अडिग हैं।

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इनमें से जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम हैं (जिनकी तादाद थोड़ी-सी है), वे नागरिकता के लिए यूरोप चले जाते हैं। उन्हें भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उसके बाद जो पीछे रह जाते हैं, उन्हें पूरी उम्मीद भारत से ही होती है। उनके लिए भारत स्वाभाविक आकर्षण इसलिए भी है, क्योंकि यहां उन्हें भाषा, संस्कृति, खान-पान, परंपराओं आदि के मामले में किसी तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता। धार्मिक स्वतंत्रता तो अपनी जगह है ही। वे भारत को अपने पूर्वजों की भूमि मानते हैं, जो ग़लत नहीं है। किसी समय यह संपूर्ण भूभाग भारत ही था। दुर्भाग्य से कालांतर में विखंडन हुआ और हमसे हमारा बहुत कुछ छिन गया, बहुत लोग हमसे बिछड़ गए। इसकी पीड़ा आज तक महसूस होती है। जो हमसे अलग हुए, बिछड़े, उन्होंने भी कालांतर में घोर संकटों का सामना किया और आज तक कर रहे हैं। सत्य है, अपनी जड़ों से कटकर कोई सुखी नहीं रह सकता। वह अपनी पहचान को लेकर हमेशा भ्रम की स्थिति में रहता है। इस समय भारतवासियों का कर्तव्य है कि वे सांस्कृतिक चेतना के अग्रदूत बनें। इससे उन लोगों का भी कल्याण होगा, जो किन्हीं कारणों से हमसे बिछड़े, दूर हुए। सीएए इसी चेतना का एक हिस्सा है। यह अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के पीड़ित व प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को इस बात का एहसास दिलाता है कि वे अकेले नहीं हैं, उनके भारतवासी भाई-बहन उनकी पीड़ा समझते हैं, वे उनके घावों पर मलहम लगाएंगे, वे उनके लिए द्वार खोलेंगे। हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों का यही मत था कि पाकिस्तान (जिसमें आज का बांग्लादेश भी शामिल था) से प्रताड़ित होकर भारत आने वाले लोगों को शरण दी जाए। आज सभी राजनीतिक दलों को उनके मत का सम्मान करना चाहिए, उन्हें उदारता दिखानी चाहिए।

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