विश्वास की डोर

अपराधी तो बेलगाम हो गए हैं और आम लोग 'पुलिस' के नाम से दी जाने वाली 'धमकियों' से भयभीत हो रहे हैं

विश्वास की डोर

पुलिस और आम जनता के बीच रिश्तों में 'आशंकाओं' और 'सवालों' का फायदा साइबर अपराधी उठा रहे हैं

अपराधियों में पुलिस का खौफ और आम लोगों में उसके प्रति विश्वास दृढ़ होना चाहिए। आज रोजाना ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिनसे पता चलता है कि अपराधी तो बेलगाम हो गए हैं और आम लोग 'पुलिस' के नाम से दी जाने वाली 'धमकियों' से भयभीत हो रहे हैं। अपराधियों पर शिकंजा कसने और आम लोगों का विश्वास जीतने के लिए पुलिस को ऐसे कई कदम उठाने की जरूरत है, जिनसे प्रेरित होकर आम लोग उसके 'आंख-कान' बनने के लिए आगे आएं। हाल में साइबर अपराध के जितने भी बड़े मामले सामने आए, उनमें से ज्यादातर में अपराधियों ने पीड़ितों को 'पुलिस' और 'अन्य जांच एजेंसियों' के नाम पर धमकी दी और उसके बाद उनकी ज़िंदगीभर की कमाई लूट ली। राजस्थान के झुंझुनूं जिले में एक महिला से साइबर अपराधियों ने फोन पर कहा कि 'आपके आधार कार्ड पर एक और मोबाइल नंबर चालू है, जिसका उपयोग गैर-कानूनी गतिविधियों में हो रहा है ... अब पुलिस विभिन्न धाराओं के तहत कड़ी कार्रवाई करेगी!' पुलिस का नाम सुनते ही वह महिला डर गई और उसने किसी तरह एक बड़ी रकम का इंतजाम कर अपराधियों को भेज दी। इसके बावजूद अपराधियों की धमकियां कम नहीं हुईं तो उसने आखिरकार पुलिस की मदद ली। होना तो यह चाहिए था कि वह महिला उस फोन के तुरंत बाद पुलिस की मदद लेती, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। क्यों? ऐसे मामलों में पीड़ित खुद को बेहद डरा हुआ महसूस करता है। साथ ही, इस बात को लेकर मन ही मन में कई तरह के सवालों से घिर जाता है कि अगर मैं पुलिस से मदद मांगने गया/गई, तो किसी मुसीबत में नहीं फंस जाऊंगा/गी?

पुलिस और आम जनता के बीच रिश्तों में 'आशंकाओं' और 'सवालों' का फायदा साइबर अपराधी उठा रहे हैं। इससे उनका नेटवर्क मजबूत होता जा रहा है। निस्संदेह पुलिस में ऐसे कई अधिकारी और कर्मचारी हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और सूझबूझ से साइबर अपराधियों पर खूब सख्ती दिखाई है, साथ ही आम जनता से उनका बर्ताव आदर्श रहा है। देश में जिस तरह से साइबर अपराध बढ़ते जा रहे हैं, अपराधी तत्त्व आम लोगों को लूटने के लिए नई-नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसके मद्देनजर बहुत जरूरी है कि पुलिस और जनता का रिश्ता मजबूत हो, आपसी विश्वास बढ़े। आज स्थिति यह है कि अगर किसी सामान्य व्यक्ति को कोई साइबर अपराधी फोन पर पुलिस के नाम से धमकी दे दे तो वह खुद को असहाय पाता है। अगर उस व्यक्ति ने किसी तरह का अपराध किया ही नहीं है, तो उसे क्यों डरना चाहिए? यह स्पष्ट रूप से 'आपसी विश्वास' (पुलिस-आम जनता) की कमी से उपजी स्थिति का परिणाम है। पुलिस के उच्चाधिकारियों को चाहिए कि वे जनता के साथ विश्वास की इस डोर को मजबूत करें और साइबर अपराधियों के नेटवर्क को ध्वस्त करें। लोगों को बताएं कि पुलिस कानून का राज कायम रखने और आपकी मदद करने के लिए है, लिहाजा आपको पुलिस से डरने की नहीं, बल्कि अपनी समस्या उसके साथ साझा करने की जरूरत है। उन्हें यह भी बताएं कि अपराधों पर कड़ा नियंत्रण रखने के लिए आपका (जनता) सहयोग जरूरी है। हाल में साइबर ठगी के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे हैरान कर देनेवाले हैं! वित्तीय वर्ष 2022-23 में देशभर में साइबर ठगी से संबंधित 11.28 लाख मामले दर्ज हुए थे। उस दौरान लोगों को करोड़ों रुपए का चूना लगाया गया था। हालांकि पुलिस के सहयोग से कई लोगों की रकम वापस भी मिली, लेकिन ठगी की तुलना में वह बहुत कम थी। इसको ध्यान में रखते हुए पुलिस को अत्याधुनिक तकनीक से लैस होना होगा। ऐसी प्रणाली विकसित करनी होगी, जिससे अपराधियों के लिए बचकर निकलना मुश्किल हो और ठगी की पूरी रकम पीड़ित को वापस मिल जाए।

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