सुधारों का मार्ग

‘एक देश, एक चुनाव’ का सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि इससे समय बचेगा, संसाधनों की भी बचत होगी

सुधारों का मार्ग

सत्तारूढ़ दल हो या विपक्षी दल, इस बात को न भूलें कि अब देश का मतदाता बहुत जागरूक हो गया है

‘एक देश, एक चुनाव’ पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का यह बयान विचारणीय है कि इसमें देशहित है और इसका सबसे बड़ा फायदा आम जनता को होगा। चूंकि कोविंद ‘एक देश, एक चुनाव’ की संभावना तलाशने वाली समिति के प्रमुख भी हैं, इसलिए इस मुद्दे पर उनका बयान काफी अहमियत रखता है। चुनाव सुधारों का संबंध देश के लोकतंत्र की मजबूती से तो है ही, आर्थिक विकास से भी बहुत गहरा संबंध है।

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‘एक देश, एक चुनाव’ का सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि इससे समय बचेगा, संसाधनों की भी बचत होगी। जो धन हर साल किसी न किसी चुनाव पर खर्च होता है, बाद में वह विकास कार्यों पर खर्च किया जा सकेगा। इतने बड़े देश में चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं होता है। कई साधन-संपन्न और विकसित देश यह देखकर हैरान होते हैं कि भारत में करोड़ों की आबादी के लिए मतदान की सुविधाओं से लेकर कर्मचारियों द्वारा मतगणना और नई सरकार के चुने जाने तक की लंबी प्रक्रिया को किस तरह अंजाम दिया जाता है! उनका निर्वाचन तंत्र तो कुछ करोड़ की आबादी के लिए समुचित व्यवस्था करने में ही हांफने लगता है।

अभी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव प्रक्रिया पर देश-दुनिया की नजर है। भारत उत्सवों और त्योहारों का देश है। हमारे लिए चुनाव भी किसी उत्सव से कम नहीं हैं। हर साल किसी न किसी राज्य में विधानसभा, नगर निकाय और पंचायतों के चुनाव होते हैं। लोकसभा चुनाव तो सबसे बड़ा चुनावी उत्सव है। इन सबके प्रबंधन पर अरबों रुपए खर्च होते हैं।

दूसरी ओर, देश में आज भी बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है। लाखों युवा डिग्री लेने के बाद भी नौकरी की तलाश में हैं। ऐसे कई स्कूल हैं, जहां पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार के लिए बहुत कुछ करना बाकी है। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बहुत बेहतर नहीं है। ऐसे में संसाधनों का इस प्रकार उपयोग किया जाना चाहिए कि सभी चुनाव हों और विकास कार्यों को भी ज्यादा बजट मिले।

‘एक देश, एक चुनाव’ में इसकी उज्ज्वल संभावनाएं नजर आती हैं। हालांकि इस दिशा में कदम बढ़ाना आसान नहीं होगा। इस दौरान सरकार पर विपक्ष के हमले तेज होंगे। यह आरोप लगेगा कि लोकतंत्र समाप्त किया जा रहा है! इसलिए बहुत जरूरी है कि पहले इस पर काफी विचार-विमर्श हो, विपक्ष की आशंकाओं का निवारण किया जाए, जनता को इसके फायदे बताए जाएं। प्राय: विपक्ष की यह शिकायत होती है कि अगर ‘एक देश, एक चुनाव’ लागू हुआ तो इससे सत्तारूढ़ दल को फायदा मिलेगा।

हालांकि भारत के चुनावी इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं, जब लोगों ने विधानसभा चुनाव में किसी खास दल को वोट दिया और उसके कुछ महीने बाद जब लोकसभा चुनाव हुआ तो किसी और दल पर भरोसा जताया। दिसंबर 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में जनता ने कांग्रेस को सत्ता सौंपी, लेकिन अप्रैल-मई 2019 में लोकसभा चुनाव में भाजपा पर भरोसा जताया।

सत्तारूढ़ दल हो या विपक्षी दल, इस बात को न भूलें कि अब देश का मतदाता बहुत जागरूक हो गया है। वह अपने विवेक, बुद्धि के आधार पर निर्णय लेने में भलीभांति सक्षम है। अगर उसे लगेगा कि राज्य में कोई दल बेहतर प्रदर्शन कर सकता है और केंद्र में दूसरे दल की सरकार बननी चाहिए तो वह तमाम प्रचार, रैलियों, वादों और दावों के बावजूद उसे ही वोट देगा, जिसे देना चाहेगा।

‘एक देश, एक चुनाव’ व्यवस्था के लिए सभी दल सहमति बनाएं। अगर इस व्यवस्था में कोई खामी नजर आती है तो उसे उजागर कर बेहतरी का सुझाव दिया जाए। देश का लोकतंत्र सुधारों से सशक्त होगा। मौजूदा जरूरतों और भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए सुधारों का मार्ग प्रशस्त होना चाहिए।

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