कांटों का ताज

काकड़ की 'कमियां' ही उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री के पद तक ले आईं

कांटों का ताज

काकड़ को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाकर पाक फौज ने असंतुष्ट पश्तूनों को साधने की कोशिश की है

पाकिस्तान में बलोचिस्तान प्रांत से सीनेट सदस्य अनवार-उल हक काकड़ को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त कर फौज ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। हालांकि तीर कितना कारगर सिद्ध होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि काकड़ ने अपने सिर पर 'कांटों का ताज' पहना है। उनके सामने मुल्क की बदहाल अर्थव्यवस्था है, खजाना खाली पड़ा है और आतंकवादी हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। 

निवर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और भंग की जा चुकी नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता राजा रियाज अहमद के बीच विचार-विमर्श के बाद काकड़ के नाम पर 'सहमति' जरूर बनी, लेकिन आखिरी मोहर रावलपिंडी से ही लगी। 

फौज इस कुर्सी पर ऐसे व्यक्ति को बैठाना चाहती थी, जो उसकी 'हां में हां' मिलाए और 'हीरो बनने की कोशिश' कर कोई मुसीबत खड़ी न करे, जैसा कि वह पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के मामले में ग़लत-फ़हमी का शिकार हो गई थी। पाक फौज दूध से मुंह जलाकर छाछ भी फूंक-फूंककर पी रही थी। आखिरकार उसकी खोज काकड़ पर पूरी हुई। 

काकड़ बलोचिस्तान से आते हैं, लेकिन वे पश्तून हैं। वे बलोचिस्तान अवामी पार्टी (बीएपी) के सदस्य हैं, जिसे फौज का 'आशीर्वाद' प्राप्त है। वे ऐसे नेता भी नहीं हैं, जिनका कोई खास जनाधार हो या जिनकी एक आवाज पर पूरे पाकिस्तान में लोग सड़कों पर उतर आएं और फौज के लिए समस्या पैदा कर दें। 

काकड़ की ये ही कमियां उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री के पद तक ले आईं। अगर वे लोकप्रिय नेता होते, जो किसी मुद्दे को लेकर फौज के सामने खड़े हो सकते, तो उन्हें किसी सूरत में यह पद नहीं दिया जाता।

काकड़ को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाकर फौज ने असंतुष्ट पश्तूनों को साधने की कोशिश की है। इसके अलावा यह संदेश देना चाहती है कि वह बलोचिस्तान के नेताओं को भी उच्च पद दे सकती है। चूंकि बलोचों में अलगाववाद जोरों पर है। बलोचिस्तान में आए दिन फौज पर हमले हो रहे हैं। अभी काकड़ के लिए सबसे बड़ी परीक्षा अर्थव्यवस्था में जान फूंकना है।

पाकिस्तानी रुपए ने खुले बाजार में तिहरा शतक लगाते हुए डॉलर के मुकाबले 302 का आंकड़ा छू लिया है। कारोबारियों को डॉलर मिलने में बड़ी दिक्कत हो रही है। हाल में विदेशी कर्ज मिलने के बाद कुछ राहत महसूस हुई थी, लेकिन यह गर्म तवे पर पानी की कुछ बूंदों की तरह है। जैसे ही मांग बढ़ेगी, डॉलर का अकाल शुरू हो जाएगा। इससे आयात बिल बढ़ जाएगा, जिसके नतीजे में महंगाई में वृद्धि होगी। 

पाक में चर्चा है कि काकड़ आईएमएफ की पसंद हैं। वे उसके निर्देशों को सख्ती से लागू करेंगे, जिसका अर्थ है- जनता पर और ज्यादा आर्थिक बोझ बढ़ेगा। वहीं, पाक मीडिया में चर्चा है कि आईएमएफ चालू वित्त वर्ष में रुपए का 20 प्रतिशत तक अवमूल्यन चाहता है। अगर ऐसा हुआ तो अगले साल जून में डॉलर 330 से 340 रुपए तक जा सकता है। इससे जनता में असंतोष बढ़ेगा, विरोध प्रदर्शन होंगे। 

अगर मुद्रा का इतना अवमूल्यन पीटीआई या पीएमएल-एन के शासन काल में होता तो जनता के प्रति उनकी जवाबदेही बढ़ जाती। अब ये पार्टियां यह कहने की स्थिति में होंगी कि मुल्क में महंगाई के जिम्मेदार काकड़ हैं, हमने तो इस पर काफी नियंत्रण रखा था। 

कुल मिलाकर, यह कहना उचित होगा कि पाक फौज को निकट भविष्य में बिगड़ने वाले हालात का ठीकरा फोड़ने के लिए एक व्यक्ति की तलाश थी। सौभाग्य / दुर्भाग्य से अनवार-उल हक काकड़ मिल गए और इस भूमिका के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गए।

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