नज़ीर बने कार्रवाई
आतंकी तत्त्व सरकारी तंत्र में सेंध लगाकर कई राज़ आसानी से हासिल कर सकते हैं
किसी भी नागरिक का शत्रु पक्ष से मिलकर अपने देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश चिंता की बात होती है
जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के साथ काम करने, उनके लिए धन जुटाने और उनकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने के आरोप में तीन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करना ऐसे तत्त्वों के लिए कड़ा संदेश है, जो भारत के संसाधनों का उपयोग कर आतंकियों की हिमायत करते हैं।
इसके साथ यह घटना चिंताजनक भी है, क्योंकि जिन सरकारी कर्मचारियों पर अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करने का दायित्व होता है, अगर उनमें से कुछ लोग देश के शत्रुओं से मिल जाएं तो उसके नतीजे बड़े खतरनाक हो सकते हैं। इनके बूते आतंकी तत्त्व सरकारी तंत्र में सेंध लगाकर कई राज़ आसानी से हासिल कर सकते हैं।बर्खास्त किए गए इन कर्मचारियों में से एक तो पुलिस कांस्टेबल है, जबकि एक राजस्व सेवा का अधिकारी है। इनके अलावा एक विश्वविद्यालय का जनसंपर्क अधिकारी भी बर्खास्त किया गया है। यूं तो किसी भी नागरिक का शत्रु पक्ष से मिलकर अपने देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश चिंता की बात होती है, लेकिन अगर पुलिस कांस्टेबल ही उससे मिल जाए तो इसकी गहन जांच करने की जरूरत है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ विभिन्न अभियानों में सेना के साथ पुलिस का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इस पुलिस बल ने शांति बहाली और आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए बड़े बलिदान दिए हैं। जो तत्त्व आतंकवादियों का हिमायती हो, उसके लिए यहां कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
बर्खास्त किए गए इन कर्मचारियों पर पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के साथ काम करने, आतंकवादियों के आने-जाने में उनकी मदद करने, उनके लिए धन जुटाने, उनकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने के साथ ‘अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने’ जैसे गंभीर आरोप हैं।
यही नहीं, जांच में यह खुलासा भी हुआ कि ये पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकवादी संगठनों की ओर से काम कर रहे थे। आश्चर्य की बात है! अगर सरकारी कर्मचारी ही ऐसी गतिविधियां करने लग जाएं तो शत्रु की क्या आवश्यकता है!
ये तीनों कर्मचारी उच्च शिक्षित हैं। अपना भला-बुरा जानने में सक्षम थे। उन्हें पता था कि वे किनके हाथों की कठपुतली बने हुए थे। मामले में आईएसआई का कनेक्शन सामने आना ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह एजेंसी आतंकवाद के नित नए तरीके विकसित करने के लिए बदनाम है। साथ ही कट्टर और लालची किस्म के लोगों की मनोवृत्ति का फायदा उठाकर संवेदनशील जानकारी लेने के लिए कई ओछे हथकंडे भी आजमाती रहती है। प्राय: उसके निशाने पर सरकारी कर्मचारी और सरहदी/संवेदनशील स्थानों के आसपास रहने वाले लोग होते हैं।
विश्वविद्यालय का जनसंपर्क अधिकारी रह चुका कर्मचारी कट्टर अलगाववादी बताया गया है। वह खुद तो अलगाववादी विचारधारा का समर्थन करता ही था, कश्मीर घाटी में आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों के प्रमुख प्रचारक की भूमिका भी निभाता था! उसने सोशल मीडिया पर भारत से नफरत को जाहिर करने वाली कई पोस्ट की थीं।
बर्खास्त किए गए इन कर्मचारियों के कृत्यों का पता लगाने के लिए भारतीय एजेंसियों की प्रशंसा की जानी चाहिए। अगर उनका ध्यान इनकी ओर नहीं जाता तो पता नहीं ये देश को कितना नुकसान और पहुंचाते। पुलिस और संबंधित एजेंसियों को इसी तरह कड़ी नजर रखनी चाहिए, ताकि कहीं भी ऐसी मानसिकता के लोग मौजूद हों तो उनका पर्दाफाश हो। उन पर कठोर कार्रवाई नज़ीर बननी चाहिए।