छल और प्रलोभन

ऐसे बहकावे में आने के बाद संबंधित व्यक्ति के मन में दूसरों के प्रति घृणा का भाव पैदा होना स्वाभाविक है

छल और प्रलोभन

जो संसाधन बच्चे के विकास के लिए जरूरी हों, वे अवश्य दिलाएं, लेकिन उसके साथ स्वधर्म और संस्कृति का ज्ञान भी दें

देश में धर्मांतरण की बढ़तीं घटनाएं चिंता का विषय हैं। धर्म कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जिसके लिए किसी को बहलाया-फुसलाया जाए या किसी तरह का प्रलोभन दिया जाए। यह तो वह मार्ग है, जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार करते हुए विकारों पर विजय पाता है। आसान शब्दों में कहें तो यह मनुष्य को मनुष्य होना सिखाता है। उसमें सद्गुणों को जगाते हुए ईश्वर की प्राप्ति कराता है। इसमें किसी भी तरह के छल और प्रलोभन के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। 

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हाल में धर्मांतरण के जो मामले सामने आए हैं, वे कुछ चौंकाने वाले भी हैं। गाजियाबाद में जैन परिवार का एक नाबालिग लड़का यह कहकर घर से निकल जाता था कि वह जिम जा रहा है, वहां कसरत करेगा। परिजन यह सोचकर खुश थे कि अच्छी बात है, सेहत का ध्यान रख रहा है। एक दिन पता लगाया तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। वह लड़का किसी जिम में नहीं जा रहा था। जिम तो एक बहाना था। उसने अपने पिता के सामने कबूल किया वह धर्मांतरण कर चुका है! 

जब उसके मोबाइल फोन, लैपटॉप आदि को खंगाला तो मालूम हुआ कि वह एक ऐसे कथित उपदेशक के वीडियो देखा करता था, जिस पर अन्य समुदायों के लोगों की आस्था के अपमान, धन शोधन और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं। यहां तक कि वह 'उपदेशक' भारत छोड़कर जा चुका है। इस संबंध में लड़के के पिता ने उप्र विधि-विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई। 

पता चला कि उस लड़के का दो साल पहले महाराष्ट्र के एक बड़े शहर में रहने वाले किसी शख्स से ऑनलाइन गेमिंग ऐप के जरिए परिचय हुआ था। उसके बाद वह मासूम किशोर को अपने प्रभाव में लेने लगा। वह उसे अपने मजहब के शब्दों के उच्चारण से गेम में जीत का झांसा भी देता था। उसके साथ काफी देर तक बातें करता था।  

इन सबका नतीजा यह हुआ कि वह लड़का मन ही मन अपने पूर्वजों के धर्म से दूर हो गया। क्या ऐसे किशोर और युवा, जो इस प्रकार के लोगों के प्रभाव में जल्द आ जाते हैं, उनका किसी गैर-कानूनी गतिविधि में उपयोग नहीं किया जा सकता? यह जांच का विषय होना चाहिए। यह भी पता लगाना चाहिए कि इस कड़ी में और कितने लोग शामिल हैं, जो बहला-फुसलाकर या प्रलोभन देकर धर्मांतरण करवाते हैं? यह तो सिर्फ एक उदाहरण है, जो सोशल मीडिया के कारण सामने आ गया। बहुत संभव है कि ऐसी कई घटनाएं सामने ही न आएं।

निस्संदेह हमारा संविधान हर व्यक्ति को उसकी इच्छा के अनुसार धर्म अपनाने और उसकी पूजन-पद्धति का पालन करने की अनुमति देता है। अगर कोई बालिग शख्स किसी धर्म विशेष का अध्ययन कर उसकी शिक्षाओं से प्रभावित होता है, उसे अपना लेता है और उसी में जीवन व्यतीत करना चाहता है तो यह उसकी इच्छा है, जिसका सम्मान करना चाहिए। 

समस्या तब पैदा होती है, जब उसके पीछे छल और प्रलोभन का एजेंडा हो। प्राय: इसके शिकार लोगों के मन में भारत की संस्कृति, पूर्वजों के धर्म और संतों के विरुद्ध घृणा का विष घोल दिया जाता है; मानवता, सद्भाव और सबकी आस्था का सम्मान करने की जगह यह पट्टी पढ़ा दी जाती है कि 'आप ही सर्वश्रेष्ठ हैं, बाकी सब तुच्छ हैं ...!' 

ऐसे बहकावे में आने के बाद संबंधित व्यक्ति के मन में दूसरों के प्रति घृणा का भाव पैदा होना स्वाभाविक है। आज माता-पिता अपने बच्चों को महंगे मोबाइल फोन, लैपटॉप और संसाधन तो दिला देते हैं, लेकिन व्यस्तता या किसी अन्य कारण से यह ध्यान नहीं दे पाते कि उनका उपयोग किन कार्यों के लिए हो रहा है। 

जो संसाधन बच्चे के विकास के लिए जरूरी हों, वे अवश्य दिलाएं, लेकिन उसके साथ स्वधर्म और संस्कृति का ज्ञान भी दें। उनके वैज्ञानिक पक्ष से अवगत कराएं। संतों के प्रवचन सुनाएं। 'धर्मांतरण' शब्द पढ़ने/सुनने में छोटा लगता है, जबकि इसके प्रभाव बहुत गंभीर और दूरगामी हैं। धर्मांतरण की वजह से भारत मां और हमारे पूर्वजों ने क्या कुछ खोया है, यह जानने के लिए इतिहास पढ़ें और उससे सीखें।

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