तुर्की से सबक
बढ़ते शहरीकरण के बीच भारत में भी भवन निर्माण संबंधी गतिविधियों में काफी तेजी आई है
वैज्ञानिक समुदाय ऐसी भवन निर्माण तकनीक पर काम करे, जो भूकंप के शक्तिशाली झटकों में भी जीवन को सुरक्षित रखे
तुर्की और सीरिया में आए जबरदस्त भूकंप ने इन देशों को जान-माल का भारी नुकसान पहुंचाया है। खासतौर से तुर्की से आ रहीं तस्वीरें अत्यंत हृदय विदारक हैं। कई लोग घंटों से मलबे तले दबे हैं। परिजन इस उम्मीद में टकटकी लगाए खड़े हैं कि शायद कोई चमत्कार हो जाए और उनके अपनों की जान बच जाए। किसी परिवार में बच्चे अनाथ हो गए, तो किसी में सिर्फ बड़े-बुजुर्ग बच गए। इन्सान ने विज्ञान के क्षेत्र में इतनी तरक्की कर ली, लेकिन आज भी प्राकृतिक आपदाओं पर पूरी तरह जीत नहीं मिली है।
जिस तरह तूफान, चक्रवात, वर्षा आदि के बारे में समय पूर्व सूचना हासिल की जा सकती है, अभी ऐसी कोई प्रणाली विकसित नहीं की जा सकी है, जो भूकंप के बारे में सटीक भविष्यवाणी कर दे। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में वैज्ञानिक भूगर्भ की हलचल का और गहराई से अध्ययन कर यह भविष्यवाणी करने में सक्षम होंगे कि कब और कहां भूकंप आने वाला है।तुर्की में भूकंप के बाद विशेषज्ञों के विश्लेषण पर ध्यान देने की जरूरत है कि आखिर वहां इतने बड़े पैमाने पर तबाही क्यों आई। जिन इलाकों में मकानों को ज्यादा नुकसान हुआ, वे भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील थे। यही नहीं, उन्हीं इलाकों में रियल एस्टेट क्षेत्र में उछाल आया था। बिल्डरों ने खूब मकान बनाए और लोगों ने खूब खरीदे थे। इस दौरान निर्माण कानूनों की जमकर अनदेखी की गई।
विशेषज्ञ काफी समय से चेतावनी दे रहे थे कि नियमों का उल्लंघन कर जिस तरह यहां इमारतें खड़ी की जा रही हैं, ये भूकंप के बड़े झटके बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी। प्रशासन से लेकर निर्माण स्थल तक, हर जगह लापरवाही बरती गई। आखिरकार वही हुआ, जिसकी आशंका जताई जा रही थी।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में आपातकालीन योजना के प्रोफेसर डेविड एलेक्जेंडर तो यह तक कह रहे हैं कि आपदा घटिया निर्माण के कारण आई है, भूकंप के कारण नहीं! अगर सच में ऐसा है तो मामला बहुत गंभीर है, क्योंकि इस बात की भरपूर संभावना है कि इसी तर्ज पर तुर्की के अन्य हिस्सों में मकान बनाए गए होंगे। तुर्की के चैंबर ऑफ आर्किटेक्ट्स के अध्यक्ष आईप मुहकू के इस बयान पर ध्यान देना चाहिए, जिनका मानना है कि यह सामान्य ज्ञान है कि इस सप्ताह के दो बड़े भूकंपों से प्रभावित क्षेत्रों में कई इमारतों को घटिया सामग्रियों से बनाया गया था और अक्सर सरकारी मानकों का पालन नहीं किया गया।
यह अनदेखी पुरानी इमारतों में बरती गई थी, लेकिन हाल के वर्षों में जो अपार्टमेंट बनाए गए, उनमें भी खूब लापरवाही बरती गई। इमारतों का ढांचा कमजोर रखा गया। ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कंपनियों ने धड़ाधड़ इमारतें खड़ी कर दीं, लेकिन जब 7.8 तीव्रता का पहला भूकंप आया तो ये भरभरा कर गिर गईं। लोगों को बचकर निकलने का मौका नहीं मिला, चूंकि उस समय सुबह के 4.17 बजे थे, जब ज्यादातर लोग सो रहे थे।
राष्ट्रपति एर्दोआन भी स्वीकार कर रहे हैं कि खामियां रही हैं। ऐसा नहीं है कि तुर्की में सरकारी स्तर पर भवन निर्माण संहिता का अभाव है। वहां यह मौजूद है, लेकिन उसके अधिकांश हिस्से कागजों तक सीमित हैं। धरातल पर उनका गंभीरता से पालन नहीं किया जाता। वहां के न्याय मंत्री का यह कहना उचित ही है कि धराशायी हुईं इमारतों की जांच की जाएगी। जिस स्तर पर लापरवाही बरती गई, उसका पता लगाया जाएगा और जो लोग इसके जिम्मेदार हैं, उनकी जवाबदेही तय की जाएगी।
बढ़ते शहरीकरण के बीच भारत में भी भवन निर्माण संबंधी गतिविधियों में काफी तेजी आई है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि इनमें नियमों का कड़ाई से पालन किया जाए। ऐसी इमारतों को चिह्नित किया जाए, जिनके निर्माण में लापरवाही बरती गई है। उन्हें सुदृढ़ किया जाए। वैज्ञानिक समुदाय ऐसी भवन निर्माण तकनीक पर काम करे, जो भूकंप के शक्तिशाली झटकों में भी जीवन को सुरक्षित रखे।