अपयश के भागी

पाक ने जो संपोले अफगानिस्तान और भारत को डसने के लिए पाले थे, अब वे अपने ही घर में विष-वमन कर रहे हैं

अपयश के भागी

पाक की ओर वही सबकुछ लौटकर आ रहा है, जो उसने दुनिया को दिया था

पाकिस्तान के थल सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के लिए यही कहना उचित है कि सिर मुंडाते ही ओले पड़ गए! बल्कि यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि ओलों के साथ पत्थर भी पड़ रहे हैं। मुनीर ने सेना प्रमुख की कुर्सी क्या संभाली, पाक पर कयामत बरपा हो गई। टीटीपी ने तूफान मचा रखा है। उसके आतंकवादी काबू में नहीं आ रहे हैं। हर दिन धमाके कर रहे हैं। वे राजधानी इस्लामाबाद में भी आत्मघाती हमला कर तहलका मचा चुके हैं। कोई नहीं कह सकता कि अगला निशाना रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय होगा या संसद! 

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पाक ने जो संपोले अफगानिस्तान और भारत को डसने के लिए पाले थे, अब वे अपने ही घर में विष-वमन कर रहे हैं और शिकार पाकिस्तानी हो रहे हैं। यह तो होना ही था। पाक की ओर वही सबकुछ लौटकर आ रहा है, जो उसने दुनिया को दिया था। बेशक जनरल मुनीर अपने मुल्क के हालात देखकर फिक्रमंद होंगे, क्योंकि ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब वहां आतंकवादी हमला नहीं करते। इससे मुनीर की छवि को बट्टा लग रहा है। उनके पदग्रहण से पहले जो हवा बनाई गई थी, उन्हें बेहद सख्त प्रशासक कहा जा रहा था, वे सब बातें हवा-हवाई साबित हो रही हैं। 

मुनीर अपयश के भागी हो रहे हैं, इसलिए अपने नेताओं को भी चेता रहे हैं कि पाक सबसे नाजुक दौर से गुजर रहा है, लिहाजा राष्ट्रीय आम सहमति बनाई जाए और इन मुश्किलों से बाहर निकला जाए। मुनीर जानते हैं कि फौजी जनरलों के लिए ऐश और मौज तब तक ही है, जब तक कि पाकिस्तान वजूद में है। जिस दिन यह टूटा, उसके बाद सबकुछ चौपट हो जाएगा।

इस समय पाक का विदेशी मुद्रा भंडार खाली है। कभी चीन तो कभी सऊदी अरब से मांगकर गुजारा चलाया जा रहा है। कभी-कभार अमेरिका की कृपा से अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं डॉलर भेज देती हैं। कोरोना के कारण ये देश भी तंगी का सामना कर रहे हैं। पिछले साल आई भयंकर बाढ़ से करोड़ों परिवार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। जनता मुआवजा मांग रही है। 

उधर, टीटीपी नित-नई मांग कर रही है। पाक में निवेश नहीं आ रहा है। कंपनियां नौकरियों में कटौती कर रही हैं। आतंकवाद और कट्टरपंथ चरम पर है। अफगानिस्तान से तनावपूर्ण संबंध हैं। ईरान से भी 'ठंडी हवाओं' के झोंके नहीं आ रहे। भारत के साथ पहले ही दुश्मनी है। आंतरिक कलह जोरों पर है। राजनीतिक दलों में सत्ता की छीना-झपटी निचले स्तर पर आ गई है। ऐसे हालात में मुनीर करेंगे तो क्या करेंगे? बहुत संभव है कि वे मार्शल लॉ घोषित कर दें! 

पाक में पूर्व में सैन्य तानाशाह 'देश बचाने' का नारा लगाकर तख्तापलट करते आए हैं। मुनीर भी ऐसा कर दें तो इसमें आश्चर्यचकित होने वाली बात नहीं है। इस समय टीटीपी के हमलावर सेना और सशस्त्र बलों को निशाना बना रहे हैं। बहुत संभव है कि चुनावी मौसम आते-आते वे रैलियों में भी धमाके शुरू कर दें। इससे मुनीर को यह दावा करने का मौका मिल जाएगा कि राजनेता पाकिस्तान को सही दिशा में लेकर नहीं जा सकते, इसलिए उसकी रक्षा करने के लिए मार्शल लॉ लगाना ही होगा! 

पाकिस्तान पूरी दुनिया के लिए नजीर है कि दूसरों के लिए नफरत, हिंसा और तबाही के ख्वाब पालने वाला एक दिन खुद ही अपने हथियारों से लहूलुहान हो जाता है। कर्मफल अटल है। वह कर्ता को उसी तरह ढूंढ़ लेता है, जैसे बगीचे में कई फूलों और पत्तियों पर मंडराने के बाद कोई मधुमक्खी अपने छत्ते को ढूंढ़ लेती है। अगर पाक को अपनी करनी का ज़रा भी पछतावा होता तो उसके हालात कुछ और होते।

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