चंडीगढ़ के प्रिंस मेहरा, जिन्हें कहा जाता है पक्षियों का मसीहा

एक घटना से आहत चंडीगढ़ के मूल निवासी मेहरा ने शहर लौटने के बाद संकटग्रस्त पक्षियों के लिए कुछ करने का फैसला किया

चंडीगढ़ के प्रिंस मेहरा, जिन्हें कहा जाता है पक्षियों का मसीहा

इस कार्य के लिए उन्हें 'बर्डमैन' के तौर पर जाना जाने लगा

चंडीगढ़/भाषा। प्रिंस मेहरा साल 2011 में फिरोजपुर की यात्रा कर रहे थे, जब उन्हें सड़क किनारे एक कूड़ेदान में दो मृत कबूतर मिले, जिनकी बिजली का करंट लगने से मौत हो गई थी।

मेहरा (52) ने कहा, मैंने मरे हुए दोनों कबूतरों को उठाया और पास में एक गड्ढे में उन्हें दफना दिया।

इस घटना से आहत चंडीगढ़ के मूल निवासी मेहरा ने शहर लौटने के बाद संकटग्रस्त पक्षियों के लिए कुछ करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी साइकिल का रूपांतरण कर एक एम्बुलेंस सेवा शुरू की और वह पिछले 11 वर्ष से घायल पक्षियों की देखभाल कर रहे हैं। इस कार्य के लिए उन्हें 'बर्डमैन' के तौर पर जाना जाने लगा।

वह न केवल घायल पक्षियों की देखभाल करते हैं, बल्कि सड़क किनारे पाए जाने वाले अवशेषों का निपटान भी करते हैं।

मेहरा ने कहा, इस घटना के बाद मुझे विचार आया कि मृत पक्षियों का लापरवाही से निपटान किया जाना पर्यावरण के लिए अच्छा नहीं है। यह मानव और पशु दोनों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है।

उन्होंने कहा कि उनकी साइकिल पक्षियों की एंबुलेंस के तौर पर काम करती है, जो सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं से सुसज्जित है।

मेहरा ने कहा, मैं अपनी पक्षी एबुंलेंस लेकर शहर में चारों ओर घूमता हूं और जहां भी मुझे कोई घायल पक्षी मिलता है, मैं उसकी देखभाल करता हूं या उसे घर ले आता हूं। अगर वह गंभीर रूप से घायल होता है, तो मैं उसे यहां के पशुपालन अस्पताल में ले जाता हूं, जहां मैं काम करता हूं।

उन्होंने कहा, जो पक्षी जीवित नहीं रहते, उन्हें मैं सड़क किनारे गड्ढा खोदकर दफना देता हूं। पक्षी भी गरिमापूर्ण तरीके से दफनाए जाने के हकदार होते हैं।

मेहरा को लोगों के फोन भी आते हैं, जो उन्हें मृत या घायल पक्षी के बारे में सूचित करते हैं।

उन्होंने कहा कि अगर किसी मृत पक्षी का ठीक से निपटान नहीं किया जाता है और उसे लावारिस छोड़ दिया जाता है, तो यह बीमारियों के फैलने का कारण बन सकता है।

मेहरा ने कहा, 2011 से, मैं 1,254 पक्षियों को दफना चुका हूं और 1,150 का इलाज किया है।

उन्होंने कहा कि उनके काम को चंडीगढ़ प्रशासन ने भी मान्यता दी है, जिसने उन्हें एक राज्यस्तरीय पुरस्कार दिया है।

मेहरा 1990 से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं।

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