भस्मासुर
पाक अब तक इस भ्रम में है कि आतंकवादी दो तरह के, 'अच्छे आतंकवादी' और 'बुरे आतंकवादी', होते हैं
पाकिस्तानी जिन तालिबानियों की तारीफ करते नहीं थकते थे, अब वे ही उनका खून बहा रहे हैं
अफगानिस्तान, भारत और कई देशों को परेशान करने के लिए पाकिस्तान ने आतंकवादियों की शक्ल में जो भस्मासुर तैयार किए थे, वे अब उसी के गले पड़ रहे हैं। सच है, अगर बबूल का पेड़ बोएंगे तो आम की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। पाक ने यह सोचकर दहशत की फसल तैयार की थी कि इससे अफगानिस्तान को पांचवां सूबा बनाएगा, भारत में अशांति फैलाएगा और दुनिया के अन्य देशों में धाक जमाएगा, लेकिन कालचक्र ऐसा घूमा कि अब पाक को दिन में तारे नजर आने लगे हैं। बम धमाके, आत्मघाती हमले तो रोज की बात थी।
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के बन्नू में आतंकवादियों ने आतंकरोधी विभाग के दफ्तर को ही बंधक बना लिया! जिस विभाग का काम आतंकवादियों से लड़ना है, अगर उस पर ही आतंकवादी कब्जा जमा लें तो ऐसे विभाग की कार्यक्षमता पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। पाक के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने संसद में यह घोषणा कर अपनी पीठ जरूर थपथपा ली कि बन्नू दफ्तर में मौजूद सभी आतंकवादी मारे गए, लेकिन वे यह स्वीकार करने को तैयार नहीं होंगे कि हर आतंकवादी के साथ एक जैसा सलूक होना चाहिए।पाक अब तक इस भ्रम में है कि आतंकवादी दो तरह के, 'अच्छे आतंकवादी' और 'बुरे आतंकवादी', होते हैं। जो आतंकवादी भारत या किसी अन्य देश को नुकसान पहुंचाता है, उसे पाक में 'अच्छा आतंकवादी' माना जाता है, लेकिन जो आतंकवादी पाक में ही धावा बोल दे, उसे 'बुरा आतंकवादी' कहा जाता है। पाक को अब तो यह सबक ले लेना चाहिए कि कोई आतंकवादी 'अच्छा' नहीं होता। आतंकवादी संगठन मानवता के शत्रु होते हैं। उन्होंने धीरे-धीरे खुद को इतना सबल कर लिया कि अब वे अपने आकाओं (पाक फौज, आईएसआई) की भी नहीं सुन रहे।
टीटीपी के जिन आतंकवादियों ने बन्नू में जवानों और अधिकारियों को बंधक बनाया था, अतीत में (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से) उनके पालक-पोषक वे ही रहे हैं। अब चूंकि टीटीपी मजबूत हो गई है तो उसके आतंकवादी पाक फौज को बंधक बनाने से भी नहीं हिचक रहे। जब अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया था तो सबसे ज्यादा खुशी का माहौल पाकिस्तान में था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने तो इसे गुलामी से आज़ादी करार दिया था। यही हाल पाक टीवी चैनलों पर आने वाले कथित बुद्धिजीवियों का था, जबकि भारतीय विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे थे कि जल्द ही इसके भयानक नतीजे सामने आएंगे। आखिरकार वही हुआ।
पाकिस्तानी जिन तालिबानियों की तारीफ करते नहीं थकते थे, अब वे ही उनका खून बहा रहे हैं। पाक को इस भ्रम से बाहर निकल आना चाहिए कि वह आतंकवादियों के बूते अपना दबदबा बनाकर रख सकेगा। उसके आतंकवादियों का भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा लगातार खात्मा हो रहा है। आज जिस तरह नई टेक्नोलॉजी आ रही है और उसमें निरंतर सुधार होते जा रहे हैं, अब आतंकवादियों के मारे जाने की संभावना भी बढ़ती जाएगी। पाक ने आतंकवादियों पर जो पैसा, श्रम और संसाधन निवेश किए हैं, उनके बदले मुनाफे की कोई गुंजाइश नहीं है। इसमें घाटा ही घाटा है।
देर-सबेर यह बात उसे समझ में आएगी, लेकिन तब तक वक्त निकल चुका होगा। उसके नए थल सेना प्रमुख जनरल मुनीर के पदभार ग्रहण करते ही आतंकवाद की जोरदार लहर आई है, जिसमें फौज और पुलिस के जवान धड़ाधड़ मारे जा रहे हैं। अगर यह पड़ोसी देश अपने नागरिकों को खुशहाल भविष्य देना चाहता है तो आतंकवाद से पूरी तरह नाता तोड़ना होगा। वरना जो जहरीली खेती वह करता रहा है, उसकी उपज ही उसे महाविनाश की ओर ले जाएगी।