विस्तारवादी रणनीति

विस्तारवादी रणनीति

चीन का दुस्साहस है कि वह हमारे अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है, ताकि झूठे दावे को मजबूती के साथ पेश कर सके


नीदरलैंड में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ डेल्फ्ट तथा नीदरलैंड डिफेंस एकेडमी ने ‘हिमालय क्षेत्र में बढ़ता तनाव: भारत में चीनी सीमा अतिक्रमण का भू-स्थानिक विश्लेषण’ विषयक अध्ययन के बाद जो निष्कर्ष जारी किए हैं, वे प्रासंगिक हैं। वास्तव में हर भारतीय इस तथ्य से भलीभांति परिचित है कि अक्साई चिन क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण आकस्मिक घटना नहीं है। ऐसा बिलकुल नहीं है कि अचानक भारत-चीन के रिश्तों में तनाव भड़का और चीन अतिक्रमण के बहाने ढूंढ़ने लगा। 

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चीन की मंशा पूरी दुनिया पर वर्चस्व स्थापित करने की है। एक निरंकुश कब्जा, जहां उसके शीर्ष नेता के हुक्म का पालन हो, अभिव्यक्ति की कोई आजादी न हो, लोग किसी रोबोट की तरह उसके शीर्ष नेता के सामने झुकें और उसके लिए हमेशा अच्छी-अच्छी बातें लिखें, बोलें। उसने कई देशों पर आर्थिक शिकंजा कसा भी है। वह अपनी सैन्य शक्ति की धौंस जमाता रहता है, लेकिन एक देश उसकी राह में सबसे बड़ी रुकावट है। वह है- भारत। हमारा देश उसकी विस्तारवादी रणनीति को आगे नहीं बढ़ने देता। उक्त शोध का यह कहना उचित है कि चीन के साथ संघर्ष की जो स्थिति है, अगर उसे पश्चिम और पूर्व में बांट दें, जो अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के इलाकों के आसपास है, चीन की यहां रणनीति में थोड़ा-सा अंतर है। पश्चिम में चीन की ओर से जो अतिक्रमण है, वस्तुत: रणनीतिक रूप से तय किया गया है। उसका मकसद इसे स्थायी नियंत्रण में बदलना है। 

अब तक भारतीय सेना के साथ चीन कई बार बातचीत कर चुका है। जब बातचीत होती है तो ऐसा प्रतीत होता है कि सबकुछ ठीक होने जा रहा है। फिर कहीं से खबर आती है कि इस बार चीन ने एक और इलाके में घुसपैठ की है या उसके बाद भारतीय सैनिकों के साथ तनाव की स्थिति पैदा हुई।

दरअसल चीन चाहता है कि विवादों का कोई हल न निकले, बल्कि ये कायम रहें। चूंकि विवाद सुलझ गए तो उसे अपनी हद में रहने के वचन का पालन करना होगा। इसलिए चीन विवाद पैदा करके रखना चाहता है, जिससे लगातार दबाव बनाए रख सके। साथ-साथ अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाता रहता है और सोशल मीडिया के जरिए यह संदेश देने की कोशिश करता रहता है कि उसकी पीएलए अजेय है, उसे हराना नामुमकिन है! हालांकि भारतीय सेना ने गलवान में उसका यह घमंड तोड़ दिया था। आज तक चीन अपने हताहत सैनिकों की वास्तविक संख्या सार्वजनिक नहीं कर सका है। 

चीन का दुस्साहस है कि वह हमारे अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है, ताकि झूठे दावे को मजबूती के साथ पेश कर सके। जब कभी बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा वहां जाते हैं तो वह उसका तीखा विरोध करता है। 

हालांकि भारत सरकार जैसे को तैसा की नीति के अनुरूप उसके दावे का खंडन करती है, जो कि न्यायोचित है। शोधकर्ताओं का यह कहना भारत की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है कि चीन अक्साई चिन को इसलिए भी विकसित करने का इरादा रखता है, क्योंकि यह रणनीतिक क्षेत्र है। अगर यहां उसकी सेना मजबूत स्थिति में होगी तो भविष्य में किसी टकराव या युद्ध की स्थिति में वह फायदा उठाने की कोशिश करेगा। इतना ही नहीं, यह तिब्बत और शिनजियांग के बीच अतिमहत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति है, जहां भारत को और मजबूत होना चाहिए तथा चीन के विस्तारवादी मंसूबों को विफल करने के लिए कठोरता से जवाब देना चाहिए।
 

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