जैसा बोया, वैसी फसल

जैसा बोया, वैसी फसल

याद रखा जाए कि इन ताकतों का मकसद सिर्फ खैबर पख्तूनख्वा तक सीमित रह जाना नहीं है


अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया तो पाकिस्तानी खेमे में सबसे ज्यादा खुशी की लहर थी। आईएसआई के तत्कालीन प्रमुख फैज हमीद तो काबुल जाकर मुबारकबाद दे आए थे। उस समय भारत समेत कई देशों के रक्षा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि पाक अभी जश्न मना रहा है, लेकिन बहुत जल्द यह इसे महंगा पड़ने वाला है। यह ‘भविष्यवाणी’ एक साल पूरा होने से पहले ही सत्य सिद्ध हो गई थी। अब उसके प्रभाव और खुलकर सामने आ रहे हैं। पाकिस्तान में अफगान सरहद की ओर से हमले बढ़ गए हैं। इसमें उसके फौजी धड़ाधड़ मारे जा रहे हैं। पाक को समझ नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे!

मंगलवार को उसके तीन फौजी खैबर पख्तूनख्वा के कुर्रम जिले में मारे गए। अफगान सरहद से गोलीबारी की घटनाएं बढ़ गई हैं। अगर पाकिस्तान यह सोचता है कि उसे जल्द राहत मिल जाएगी, तो यह उसकी बड़ी ग़लतफ़हमी है। ये हमले और बढ़ेंगे तथा उसे भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। इसे तो अभी शुरुआत ही समझें। जैसे-जैसे अफगानिस्तान में हथियारबंद ताकतें मजबूत होंगी, उसके निशाने पर पाकिस्तान होगा।

याद रखा जाए कि इन ताकतों का मकसद सिर्फ खैबर पख्तूनख्वा तक सीमित रह जाना नहीं है। वे इस्लामाबाद पर परचम लहराना चाहती हैं, जिनके हिमायती वहां मौजूद हैं। अगर इसके विरोध में पाक फौज सामने आएगी तो आतंकवादी उस पर हमला करने से नहीं चूकेंगे। कहा भी जाता है कि जो जैसा बोता है, वैसा काटता है। पाकिस्तान ने जनरल जिया-उल हक के ज़माने में सीआईए से डॉलर लेकर जिस तरह आतंकवाद को परवान चढ़ाया, अब उसकी आग में वह खुद झुलस रहा है। यह आग कब पेशावर, इस्लामाबाद, रावलपिंडी से लेकर कराची तक फैल जाएगी, जनरल बाजवा भी नहीं जानते।

भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए भस्मासुर जैसी मंशा रखने वाला पाक इस साल में अब तक आतंकी हमलों में ही कई दर्जन फौजी गंवा चुका है। उसकी फौज अफगानिस्तान के आतंकवाद की आग कश्मीर तक पहुंचाना चाहती थी, जिसे हमारे वीर सैनिकों ने बुझा दिया, लेकिन अब झुलसने का समय पाकिस्तान के लिए है। जिस तरह आतंकवादी 2007 में स्वात के बड़े इलाके पर कब्जा कर चुके थे, अब वे फिर इसी फिराक में हैं। इस मंशा से उनके हमले बढ़ रहे हैं। उन्होंने खैबर पख्तूनख्वा के दो जिलों में बम धमाके कर करीब आधा दर्जन लोगों को मौत के घाट उतारकर एक बार फिर फौज और सरकार को चुनौती दे दी है। धमाके में अमन समिति के पूर्व प्रमुख इदरीस खान का मारा जाना पाक के लिए बड़ा झटका है।

आतंकवादियों ने दो पुलिसकर्मियों को भी उड़ा दिया, जिससे पता चलता है कि वे कितने बेखौफ होकर कार्रवाई को अंजाम दे रहे हैं। इदरीस की छवि एक शांतिप्रिय और फौज समर्थक शख्स की रही, लेकिन वे 13 वर्षों से आतंकवादियों की हिट लिस्ट में थे और आखिरकार निशाना बन गए। पाकिस्तान की दोषपूर्ण नीतियों का खामियाजा अब उसके नागरिक भुगत रहे हैं। आमतौर पर यह माना जाता रहा है कि जनता का एक बड़ा हिस्सा ऐसे आतंकवादियों से सहानुभूति रखता है, लेकिन इस घटना के बाद बड़ी संख्या में लोगों का सड़कों पर उतरना बताता है कि पूर्व की तुलना में अब स्थिति कुछ अलग है।

हालांकि यह आश्चर्यजनक है कि पाकिस्तान की यही जनता उन आतंकवादियों के समर्थन में खड़ी हो जाती है, जो भारत में आतंकवाद फैलाते हैं। जनता ही उन्हें चंदा देकर मजबूत करती है। अब जबकि पाक में हालात बिगड़ते जा रहे हैं और कई जगह नकाबपोश आतंकवादी खुले दनदना रहे हैं तो उन्हें घबराहट हो रही है। वास्तव में पाकिस्तान को इस तबाही तक लेकर आने में उसकी फौज और सरकार का ही नहीं, जनता का भी अहम किरदार है, जो ‘भारत-विरोध’ के नाम पर हर अनुचित गतिविधि की पक्षधर रही है।

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