पश्चिम बंगाल की राजनीती

पश्चिम बंगाल की राजनीती

पश्चिम बंगाल के बशीर हाट में पिछले कुछ दिनों से तनाव का माहौल है। क्षेत्र में भ़डके दंगों में एक व्यक्ति मारा जा चुका है और साथ ही अनेक लोग घायल भी हुए हैं। इन दंगों से पिछले कई वर्षों से साथ रह रहे प़डोसियों के रिश्तों में भी दरार आई हैं। पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक हिंसा भ़डकने का इतिहास है और पिछले कुछ अरसे से प्रदेश में लगातार ऐसी घटनाओं में वृद्धि हुई है। पिछले ११ महीनों में साम्प्रदायिक हिंसा के ११ ब़डे मामले सामने आए हैं। पश्चिम बंगाल की छवि लगातार ऐसी घटनाओं से ख़राब होती जा रही है। पश्चिम बंगाल में ऐसी घटनों को ब़ढावा देने का आरोप ममता बनर्जी सरकार पर विपक्ष लगा रहा है। पश्चिम बंगाल में २७ प्रतिशत मुसलमान हैं और ममता पर वोट बैंक की राजनीति करने के भी आरोप हैं। भारतीय जनता पार्टी राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है और ऐसे समय में सरकार द्वारा हिन्दुओं को दरकिनार किए जाने के आरोपों का फायदा भी भाजपा को मिलेगा। ममता पर बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में घुसे बांग्लादेशियों को शरण देने के भी आरोप हैं। ऐसे समय में भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय सहित अन्य नेताओं को दंगों के पीि़डत परिवारों से मिलने देने से रोका गया। इस घटना से ममता के खिलाफ मोर्चा खोलने का एक और मौका भाजपा को मिल गया। हालाँकि ममता बनर्जी पक्षपात के आरोपों से इंकार करती रही हैं परंतु उनकी कथनी और करनी में फर्क ऩजर आता है। ममता बनर्जी मुस्लिम समुदाय के कार्यक्रमों में ब़ढच़ढ के भाग लेती ऩजर आती हैं। उनके कार्यकाल में अनेक मौलवियों के लिए वेतन भी दिया जाने लगा। भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपनी पक़ड बनाने के लिए रणनीतिज्ञ कैलाश विजयवर्गीय को कमान थमाई है और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पहले भी विजयवर्गीय ने अनेक राज्यों में कठिन परिवेश में भी पार्टी को ब़ढत दिलाई है। बंगाल में तो मौजूदा स्थिति से उन्हें लाभ मिलेगा क्योंकि भारतीय जनता पार्टी को हिन्दुओं का समर्थक माना जाता है। अगर अगले चुनाव में ध्रुवीकरण होता इसकी जिम्मेदार ममता खुद होंगी। भले ही हिंसा का कारण कोई भी रहा हो परंतु हिंसा पर काबू पाने में पश्चिम बंगाल सरकार विफल ऩजर आ रही है और इसी कारणवश ममता पर भी दबाव पिछले कुछ दिनों में बढा है। अगर ममता राज्य की नारा़ज होती जनता को समय रहते समझाने में सफल नहीं हो पाती हैं तो निश्चित रूप से अगले चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की राह बहुत कठिन हो जाएगी।

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