भाषा कानून का पालन न करने वालों पर सख्त हुई सरकार
भाषा कानून का पालन न करने वालों पर सख्त हुई सरकार
बेंगलूरु। राज्य सरकार ने ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई करने का मन बना लिया है जो राज्य में कन्ऩड भाषा अनिवार्य रुप से पढाने के कानून कन्ऩड भाषा सीखना अधिनियम २०१५ का पालन नहीं कर रहे हैं। इस कानून के तहत राज्य में कक्षा एक से कक्षा तीन तक पढने वाले सभी विद्यार्थियों को कन्ऩड भाषा सीखनी अनिवार्य है चाहे उनकी मातृभाषा कन्ऩड हो या नहीं हो। जिन विद्यार्थियों की मातृभाषा कन्ऩड नहीं है उन्हें यह तीसरी भाषा के रुप में पढना अनिवार्य है। राज्य लोक निर्देश ने राज्य में इस नियम का पालन सही ढंग से हो रहा है या नहीं, यह पता लगाने के लिए अधिकारियों को भी नियुक्त कर दिया है। सरकार के इस कदम के बाद अब राज्य के सभी स्कूलों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वह अपने यहां कक्षा एक से कक्षा तीन तक कन्ऩड की शिक्षा अनिवार्य रुप से दें।उल्लेखनीय है कि राज्य में केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (बोर्ड) और भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (आईसीएसई) से मान्यता प्राप्त स्कूलों द्वारा अपने यहां पढने वाले बच्चों को न तो दूसरी भाषा और न ही तीसरी भाषा के रूप में कन्ऩड भाषा की शिक्षा दी जाती थी। राज्य में कन्ऩड भाषा को अनिवार्य करने संबंधी कानून को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा है। वर्ष २०१५-१६ के दौरान यह कानून सिर्फ राज्य के स्कूलों में कक्षा एक मंे पढने वाले बच्चों के लिए लागू किया गया था इसके एक वर्ष बाद वर्ष २०१६-१७ के अकादमिक सत्र से इसे दूसरी कक्षा में पढने वाले विद्यार्थियों के लिए लागू किया गया और मौजूदा अकादमिक सत्र से यह कक्षा तीन तक के बच्चों के लिए अनिवार्य किया जा चुका है।लोक निर्देश विभाग को इस बात की जानकारी मिल गई थी कि कुछ स्कूलों द्वारा नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है और लोक सूचना निदेशालय ने सभी जिलों में इस कानून को लागू करने के लिए अधिकारियों को नियुक्त किया है। यह कानून अल्पसंख्यक और आवासीय स्कूलों के लिए भी लागू होता है। इस कानून से बचने के लिए स्कूलों के सामने कोई रास्ता नहीं है और कानून का पालन करना ही उनके लिए आखिरी विकल्प है। इस कानून के प्रति सरकार की सख्ती के कारण शहर के कई सीबीएसई और आईसीएसई तथा इंटरनेशनल स्कूलों के प्रमुखों को इस बात की चिंता सता रही है कि यदि सरकार इस कानून को सख्ती से लागू करती है तो उनके यहां पढने वाले बच्चों का परिणाम प्रभावित हो सकता है क्योंकि इन स्कूलों में काफी संख्या में ऐसे बच्चे भी हैं जिनकी मातृभाषा कन्ऩड नहीं है।