वह अंधेरी रात जब पाकिस्तानी फौज ने ट्रेन रोक कर 448 से ज्यादा मारवाड़ियों का किया था कत्ल

वह अंधेरी रात जब पाकिस्तानी फौज ने ट्रेन रोक कर 448 से ज्यादा मारवाड़ियों का किया था कत्ल

वह अंधेरी रात जब पाकिस्तानी फौज ने ट्रेन रोक कर 448 से ज्यादा मारवाड़ियों का किया था कत्ल

बांग्लादेश में वह जगह जहां 448 से ज्यादा निहत्थे मारवाड़ियों और बंगालियों को पाक फौज और रजाकारों ने मौत के घाट उतारा। फोटो: The Daily Star

ढाका/दक्षिण भारत। सैदपुर रेलवे स्टेशन (16 दिसंबर, 1971 से पहले पूर्वी पाकिस्तान और वर्तमान में बांग्लादेश) पर यह आधी रात थी। मंद प्रकाश में, ज्यादातर हिंदू मारवाड़ी और कुछ बंगाली, समाज के विभिन्न तबकों से ताल्लुक रखने वाले ये लोग एक प्लेटफॉर्म के पास खड़े थे। वे गहरे तनाव में थे और यहां तक कि जो एक-दूसरे को जानते थे, वे भी बात नहीं कर रहे थे।

वे सभी उत्सुकता से उस ट्रेन का इंतजार कर रहे थे जो चिल्हाटी बॉर्डर से पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के लिए रवाना होगी। उस ट्रेन में 450 से अधिक मारवाड़ी सवार थे, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि यह उन्हें रेलवे स्टेशन से सिर्फ दो किमी दूर ही ले जा सकेगी और यही उनकी ज़िंदगी का आखिरी सफर होगा।

उस भयावह रात उन्हें धोखा दिया गया और पाकिस्तानी फौज के जवानों और सशस्त्र रजाकारों द्वारा एक पूर्व नियोजित नरसंहार के तहत मौत के घाट उतार दिया गया। उस नरसंहार का नेतृत्व कय्यूम खान और इजहार अहमद नामक दो शख्स कर रहे थे, जो बिहार मूल के थे। उनके हत्यारे साथी गोलाहाट पॉइंट के पास घात लगाकर इन निर्दोष लोगों का इंतजार कर रहे थे।

उन्होंने ट्रेन में सवार सभी लोगों की चाकू और बंदूक की संगीनों से हत्या कर दी। सिर्फ दस-बारह वो लड़के और नौजवान खुशकिस्मत थे जो अंधेरे में किसी तरह अपनी जान बचाकर भागने में सफल रहे।

बांग्लादेश के ‘द डेली स्टार’ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, जब घटना के साक्षी तीन लोगों से बात की तो उन्होंने उस रात की रोंगटे खड़े कर देने वाली आपबीती सुनाई। एक शख्स बताते हैं कि 13 जून, 1971 को उस बर्बरता में पाकिस्तानी फौज और उसके रजाकारों ने कम से कम 448 मारवाड़ियों और बंगालियों का बेरहमी से कत्ल कर दिया। इतिहास में यह गोलाहाट नरसंहार के नाम से जाना जाता है।

हत्यारों ने पूरा परिवार छीन लिया
अब 65 साल के नीझू कुमार अग्रवाल उस रात हुए कत्लेआम से बच गए, लेकिन उनके परिवार के नौ सदस्यों का पाकिस्तानी फौज और रजाकारों ने कत्ल कर दिया। जान गंवाने वालों में नीझू के पिता और बड़े भाई भी थे।

वे बताते हैं, ’12 जून की दोपहर से, सैदपुर छावनी के दो सैन्य वाहन हमें अपने घरों से रेलवे स्टेशन तक ले जाने के लिए लगे हुए थे। हमें फौजी जवानों ने कहा था कि जल्दी करो, क्योंकि जिन्हें देर हो जाएगी, उनके लिए ट्रेन के डिब्बों में जगह नहीं होगी।’

किसी पर भी रहम नहीं
ये मारवाड़ी जैसे ही स्टेशन पहुंचे, उन्हें सिविल ड्रेस में जवानों और रजाकारों ने वहां खड़ी ट्रेन के डिब्बों में धकेल दिया। नीझू बताते हैं, ‘मौके से, पाकिस्तानी जवानों ने 20 मारवाड़ी लड़कियों को अगवा कर लिया और दहशत के मारे उनके माता-पिता मामूली विरोध तक नहीं कर सके।

13 जून के शुरुआती घंटों में, ट्रेन ने सैदपुर-चिल्हाटी मार्ग पर अपनी यात्रा शुरू की। उस कत्लेआम के चश्मदीद, 70 वर्षीय तपन कुमार दास कहते हैं कि ट्रेन बहुत धीमी रफ्तार से चली और गोलाहाट इलाके में आकर रुक गई।

निहत्थों पर टूट पड़े
ट्रेन में सवार मारवाड़ी और बंगाली लोगों के हृदय आंसुओं में डूबे थे। अचानक पाकिस्तानी फौज के जवानों और रजाकारों ने ट्रेन को घेर लिया। उनके हाथों में संगीन लगीं बंदूकें और तेज धार वाले चाकू थे। इसके बाद वे उन निहत्थे लोगों पर टूट पड़े और उन्हें मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया।

हत्यारों पर इन मासूमों की चीख-पुकार का कोई असर नहीं हुआ और वे लगातार उनकी छाती, गले, पेट और शरीर के अन्य हिस्सों पर वार करते जा रहे थे। उन पर मानो निर्दोष लोगों की जान लेने का जुनून सवार था। उन्होंने महिलाओं और बच्चों तक को नहीं बख्शा। इस दौरान उन्होंने जमकर लूटमार की और रुपए, गहने, कीमती सामान आदि लेकर चले गए।

‘दया करो, चाकू मत घोंपो, मुझे गोली मार दो’
65 वर्षीय बिनोद अग्रवाल बताते हैं, जब पाकिस्तानी फौजी और रजाकार संगीन व चाकू घोंपकर लोगों का कत्ल कर रहे थे, तब उन लोगों ने अनुरोध किया कि हमें ऐसी तकलीफ देने के बजाय गोली मार दी जाए, ताकि मौत कुछ आसान हो। इस पर पाकिस्तानी जवानों ने कहा, ‘पाकिस्तान सरकार तुम जैसे लोगों पर अपनी गोलियां बर्बाद नहीं करेगी।’

देखते ही देखते ट्रेन खाली हो गई और जमीन पर कटी हुईं लाशें पड़ी थीं। बंगाल की भूमि खून से लथपथ थी। फिर हत्यारों ने रेलवे पटरियों के आसपास घुटनों तक गहरे गड्ढे खोदे और लाशों को उनमें पटकर मिट्टी डाल दी। नरसंहार के दौरान बिखरे इंसानी खून की गंध और गड्ढों की कम गहराई के कारण यहां जंगली जानवरों और कुत्तों ने भी धावा बोला और वे लाशें निकालकर खाने लगे।

गौरतलब है कि ब्रिटिश शासन के दौरान राजस्थान से कई मारवाड़ियों ने सैदपुर को अपना घर बनाया था। उन्होंने इस इलाके को कारोबार से समृद्ध किया और कई लोगों को रोजगार दिया, लेकिन उन्हें क्या पता था कि एक दिन उनके ही मुल्क में उन्हें सिर्फ इस वजह से कत्ल ​कर दिया जाएगा क्योंकि वे हिंदू थे।

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