बांग्लादेशी युवक ने धर्मनिरपेक्षता पर लिखा ब्लॉग तो भड़के कट्टरपंथी, जान बचाकर आया भारत
बांग्लादेशी युवक ने धर्मनिरपेक्षता पर लिखा ब्लॉग तो भड़के कट्टरपंथी, जान बचाकर आया भारत
कोलकाता। पाकिस्तान में आसिया बीबी को ईशनिंदा के मामले में सर्वोच्च अदालत द्वारा निर्दोष करार देने के बाद वहां कट्टरपंथी उसे फांसी देने की मांग कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही मामला हमारे एक और पड़ोसी देश में हुआ है। बांग्लादेश के एक युवक को कट्टरपंथियों के सामने इस कदर मजबूर होना पड़ा कि उसने अपना मुल्क ही छोड़ दिया। अब उसने टूरिस्ट वीजा के आधार पर भारत के कोलकाता में पनाह ले रखी है। आगे कौनसी मंजिल होगी, उसे मालूम नहीं।
इस युवक की उम्र करीब 21 साल और नाम है मोहम्मद सज्जादुल हक। उसका कसूर सिर्फ इतना-सा है कि उसने बांग्लादेश में रहते हुए ब्लॉग लिखा और अपने लेख में धर्मनिरपेक्षता, किसी मजहब से ज्यादा इंसानियत को अहमियत, महिला-पुरुष की बराबरी, हिंदुओं पर जुल्म बंद करने और मानवाधिकारों को समर्थन दिया। इससे वहां कट्टरपंथी भड़क उठे और इस युवक को अपना सबकुछ छोड़कर भारत आना पड़ा।ब्लॉग लिखा और पढ़ाई चौपट
सज्जादुल ढाका के एक कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। जब कॉलेज प्रशासन को उनके बारे में मालूम हुआ तो तुरंत डेढ़ साल के लिए निष्कासित कर दिया। इस तरह सज्जादुल हक की पढ़ाई चौपट हो गई। उनका परिवार बांग्लादेश के चटगांव में रहता है, लेकिन उन्होंने भी समर्थन से इनकार कर दिया।
भारत आने के बाद सज्जादुल हक को अपने परिवार की फिक्र हो रही है। उन्हें डर है कि उनकी अनुपस्थिति में कहीं कट्टरपंथी ताकतें परिजनों को निशाना न बना लें। हालांकि भारत आने के बावजूद उनकी मुसीबतें खत्म नहीं हुई हैं। वे कहते हैं कि यहां भी उनकी हत्या की जा सकती है। सज्जादुल हक ने बताया कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर जुल्म होते हैं। उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो कट्टरपंथियों को यह अच्छा नहीं लगा और वे भड़क उठे।
पहले बनो इंसान
सज्जादुल हक ने ‘बी ह्यूमन फर्स्ट’ यानी पहले इंसान बनो नामक मुहिम चलाई तो वे कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए। नागरिकों की स्वतंत्रता के लिए उठाई गई आवाज की उन्हें इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी कि महज 21 साल की उम्र में अब उनके पास न तो मुल्क है और न ही शिक्षा का प्रबंध। अब आगे कहां जाएंगे, इसके बारे में अनिश्चय की स्थिति है।
दोस्त बने जानी दुश्मन
सज्जादुल कहते हैं कि उनका परिवार बहुत रूढ़िवादी है। जब उन्होंने अपने विचार पेश किए तो जो सबसे अच्छे दोस्त हुआ करते थे, वे जानी दुश्मनों जैसा बर्ताव करने लगे। वे कई दिनों तक अपनी पहचान बदलकर छुपते रहे। उनके बारे में प्रचार किया गया कि वे नास्तिक हो गए हैं, लिहाजा फांसी दे देनी चाहिए। उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक लेख में इस बात का जिक्र किया कि वे इंसान बनकर जीना चाहते हैं। वह पोस्ट खूब वायरल हुई और इसी के साथ धमकियों का सिलसिला शुरू हो गया।
जिंदा जलाने की धमकी
जब उन्हें अपने घर में खतरा महसूस हुआ तो वे एक गांव में अपनी मौसी के पास चले गए, लेकिन कट्टरपंथियों को इसकी भनक लग गई। अब वे मौसी को भी जिंदा जलाने की धमकी देने लगे। आखिरकार सज्जादुल अपना सबकुछ छोड़कर भारत आ गए। गौरतलब है कि बांग्लादेश में कई ब्लॉगर की सिर्फ इस आरोप में ही हत्या कर दी गई कि उन्होंने धर्मनिरपेक्षता का पक्ष लिया था। धमकियों के कारण ही प्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था।
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